संस्कृति और समाज की आधारशिला का दायित्व शिक्षकों का: चण्डीप्रसाद भट्ट


संस्कृति और समाज की आधारशिला का दायित्व शिक्षकों का: चण्डीप्रसाद भट्ट

प्रख्यात पर्यावरणीय कार्यकर्ता एंव चिपकों आन्दोंलन के संस्थापक, पद्म भूषण तथा मैग्नेसे अवार्ड चण्डीप्रसाद भट्ट ने आह्वान किया कि व्यक्ति को समाज का आदर्श और अच्छा नागरिक बनाने में शिक्षा की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है। शिक्षा का उद्देश्य न केवल व्यक्ति के मानसिक विकास से जुड़ा है बल्कि राष्ट्र के विकास का आधार केवल व्यक्ति ही है।

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संस्कृति और समाज की आधारशिला का दायित्व शिक्षकों का: चण्डीप्रसाद भट्ट

प्रख्यात पर्यावरणीय कार्यकर्ता एंव चिपकों आन्दोंलन के संस्थापक, पद्म भूषण तथा मैग्नेसे अवार्ड चण्डीप्रसाद भट्ट ने आह्वान किया कि व्यक्ति को समाज का आदर्श और अच्छा नागरिक बनाने में शिक्षा की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है। शिक्षा का उद्देश्य न केवल व्यक्ति के मानसिक विकास से जुड़ा है बल्कि राष्ट्र के विकास का आधार केवल व्यक्ति ही है।

उन्होंने कहा कि अच्छे समाज की कल्पना राष्ट्र की जरूरतों, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, देशकाल और सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर की जा सकती है। शिक्षा ही इन सभी आवश्यकताओं की पूर्ति का सशक्त माध्यम है; जो हमें एक योग्य शिक्षक द्वारा प्राप्त होती है। अवसर था गुरूवार को जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के प्रतापनगर स्थित कम्प्यूटर एण्ड आई टी सभागार में शिक्षक दिवस पर आयोजित व्याख्यान माला तथा सम्मान समारोह में शिक्षकों तथा छात्रों को मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित कर रहे थे।

शिक्षक का स्तर भी सुधरे – उन्होंने कहा कि देश को अन्य देशों की शिक्षा व्यवस्था जैसा सुदृढ़ बनाने हेतु योग्य नागरिकों का निर्माण और इसके लिए उत्तम चरित्र निर्माण करने वाली शिक्षा एवं शिक्षक आवश्यक है। यह उत्तम शिक्षा योग्य एवं चरित्रवान संस्कारवान शिक्षकों द्वारा ही सम्भव है। योग्य शिक्षक शिक्षण एवं शिक्षा व्यवसाय सम्मान एवं आवश्यक सुविधा प्रदान करने से ही सुलभ होंगे।

संस्कृति और समाज की आधारशिला का दायित्व शिक्षकों का: चण्डीप्रसाद भट्ट

मुख्य अतिथि कुलाधिपति प्रो. भवानीशंकर गर्ग ने कहा कि शिक्षा को यदि सच्चे मायने में समाज निर्माण करने में सहयोग देना है तो उसे समाज के प्रत्येक नागरिक को इस प्रकार शिक्षित करना होगा कि वह उसका आदर्श एवं अच्छा नागरिक बना सके व अपने को नये परिवर्तन के अनूकूल ढाल सके।

अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि शिक्षा एक क्रांति है और शिक्षा प्राप्ति एक यज्ञ, शिक्षा सिर्फ रोजगार प्राप्त करने का माध्यम नहीं है, वह सामाजिक रीति-नीतियों को जानने, समझने का पैमाने पर भी नहीं है। शिक्षा का छिद्रान्वेषण की प्रवृति विकसित करने का नाम भी नहीं है। किताबे पढ़ लेना, रट लेना भी शिक्षा प्राप्ति का उद्देश्य नहीं है शिक्षा इन सबसे परे है। शिक्षा वह है जो हम हमारे देश के निर्माण के लिए होनहार तथा योग्य युवकों को तैयार करें।

सम्मान समारोह में विद्यापीठ के सभी विभागों के कुल 60 शिक्षकों को शॉल ओढ़ाकर, श्रीफल, प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर शिक्षकों ने अपने विचार रखे।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. हीना खान एवं डॉ. अमी राठौड़ ने किया तथा धन्यवाद रजिस्ट्रार डॉ. प्रकाष शर्मा ने दिया। इस अवसर पर डॉ. ललित पाण्डे, डॉ. लक्ष्मीनारायण नन्दवाना, डॉ. हरीष शर्मा, डॉ. सी.पी.अग्रवार, डॉ. शषि चित्तौड़ा, डॉ. सरोज गर्ग, प्रो. एन.एस.राव, डॉ. मनीष श्रीमाली, डॉ. हेमषंकर दाधीच, डॉ. एस.के.मिश्रा, डॉ. प्रदीप पंजाबी, डॉ.गिरीष नाथ माथुर, डॉ. सुनीता सिंह, कौषल नागदा, डॉ. शैलेन्द्र मेहता तथा डॉ. अमिया गोस्वामी सहित विद्यापीठ के समस्त कार्यकर्ता एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

 

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