कच्छ से असम तथा कश्मीर से कर्नाटक तक की कलाओं ने जमाया रंग
दस दिवसीय शिल्पग्राम उत्सव के उद्घाटन अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम में कच्छ से असम तथा कश्मीर से कर्नाटक तक की कला शैलियों का रंग देखने को मिला। वहीं तीन नृत्यों के फ्यूजन में तीनों का अलग फ्लेवर देखने को मिला। कार्यक्रम की शुरूआत पूर्वोत्तर राज्य असम के
दस दिवसीय शिल्पग्राम उत्सव के उद्घाटन अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम में कच्छ से असम तथा कश्मीर से कर्नाटक तक की कला शैलियों का रंग देखने को मिला। वहीं तीन नृत्यों के फ्यूजन में तीनों का अलग फ्लेवर देखने को मिला। कार्यक्रम की शुरूआत पूर्वोत्तर राज्य असम के ‘‘भोरताल’’ से हुई। हाथों में मंजीरे लिये असमिया गीत पर कलाकारोें ने असम की लोक संस्कृति को दर्शाया। इसके बाद मणिपुर का ‘‘लाय हरोबा’’ नृत्य में नर्तकों ने आपसी तारतम्य से प्रस्तुति केा रोचक बनाया।
इस अवसर पर तीन अलग-अलग नृत्य शैलियों का फ्युज़न आयोजन की मोहक और लुभावनी प्रस्तुति बन सकी। इस प्रस्तुति में महाराष्ट्र का ‘‘लावणी नृत्य’’, ऑडीशा का ‘‘गोटीपुवा’’ तथा ‘‘कत्थक’’ का सम्मिश्रण कलात्मक ढंग से किया गया जिसमें एक ओर लावणी में बजने वाली ‘नाल’ की लयकारी थी तो दूसरी ओर तबले की थिरकन। तीनों नृत्यों का अपना अलग-अलग रंग और मूड एक नये फ्लेवर के साथ शिल्पग्राम के रंगमंच पर नज़र आया। लावणी में सौन्दर्य के साथ ठुमके नजर आये तो कत्थक के तत्कारों तथा चक्करदार लेती नर्तकियों ने जहाँ नर्तन का लास्य बिखेरा वहं ऑडीशा के बाल कलाकारों ने ‘‘गोटीपुवा’’ में अपनी आंगिक क्रियाओं तथा मनेारम दृश्यबंधों व संरचना से दर्शकों को अचम्भित कर दिया।
इस अवसर पर जयपुर के सौरभ भट्ट व उनके साथियों ने हास्य झलकी ‘‘ट्रेन’’ से दर्शकों को हंसाया। कर्नाटक का पूजा कुनीथा कार्यक्रम की सुंदर प्रस्तुति बन सकी। जम्मू व कश्मीर से आये कलाकारों ने लोकप्रिय गीत ‘‘भुम्बरो भुम्बरो….’’ पर ‘‘रौफ’’ नृत्य से दर्शकों को अपनी संस्कृति से रूबरू करवाया। इस अवसर पर ही गुजरात के डांग आदिवासियों ने ‘डांग’ नृत्य में आकर्षक पिरामिड बनाये। इसके अलावा उद्घाटन समारोह में सिक्किम का ‘‘घाटू’’ नृत्य तथा पश्चिम बंगाल का ‘‘डेडिया’’ सराहनीय पेशकश रही।
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