गांधी व सुभाष पर की गयी टिप्पणी की घोर निंदा
महात्मा गांघी एवं नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के सन्दर्भ में उच्चतम न्यायलय के पूर्व न्यायाधीश एवं प्रेस परिषद के पूर्व अध्यक्ष मार्कण्डे काटजू की टिप्पणियॉ की डॉ मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित परीसंवाद में घोर निंदा की गयी।
महात्मा गांघी एवं नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के सन्दर्भ में उच्चतम न्यायलय के पूर्व न्यायाधीश एवं प्रेस परिषद के पूर्व अध्यक्ष मार्कण्डे काटजू की टिप्पणियॉ की डॉ मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित परीसंवाद में घोर निंदा की गयी।
राजनीतिशास्त्री प्रोफण् अरुण चतुर्वेदी ने कहा कि काटजू इन दिनों जो बहस चलाना चाहते है उसका एक उद्देश्य तो साफ़ है कि वे मीडिया में बने रहना चाहते है। इस बहस का कोई अर्थ नहीं कि चर्चा हो कि कौन किसका एजेंट है। जब सब तरफ संकट के बादल घीरे है तब हम भारत के निर्माताओ को याद करे उनसे प्रेरणा ले और अगर उनके सहयोग से अँधेरा कम हो तो उसके लिए प्रयास होने चाहिए ।
स्वयं काटजू को विश्लेषित करने में यह परेशानी है कि उन्हें महज मसखरा कह कर नहीं टाला जा सकता है। उन्हें किसी का एजेंट कह कर भी सम्बोधित नहीं किया जा सकता क्योकि वे जल्द ही अपने विचार बदल देते है।
विद्याभवन पॉलिटेक्निक महाविद्यालय के प्राचार्य अनिल मेहता ने कहा कि महात्मा गांधी पूर्णतया आध्यात्मिक एवं भारतीय संस्कृति के अग्रदूत थे वही नेताजी राष्ट्रीयता के प्रखर उदघोषक। काटजू महज खबरों में बने रहने के लिए विवाद को जन्म दे रहे है।
गांधी स्मृति मंदिर के अध्यक्ष सुशील दशोरा ने कहा कि महात्मा गांधी व नेताजी के सन्दर्भ में अनर्गल प्रलाप करना विकृत मानसिकता दर्शाता है। झील मित्र संस्थान के तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि देश की आज़ादी के नायक व राष्ट्रपिता के सन्दर्भ में उलुल जुलूल विचार व्यक्त करना कमजोर मानसिकता और अहम को दर्शाता है।
संवाद का संयोजन करते हुए ट्रस्ट सचिव नन्द किशोर शर्मा ने कहा कि गांधी और सुभाष के आदर्श आज भी प्रासंगिक है और भविष्य में बने रहेंगे। गांधी और सुभाष के नेतृत्व में भारत ने आज़ादी पायी है। उन्हें किसी देश का एजेंट कहना कुटिल मानसिकता का परिचायक है।
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