उपरजिस्ट्रार के अधिकार क्षेत्र मे नही है संविधान निरस्त करना-प्रो. अग्रवाल
जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के प्रतापनगर स्थित केम्पस के मुख्य द्वार पर मंगलवार सैकडो छात्र-छात्राओं व कर्मचारियों ने उप रजिस्ट्रार सहकारी संस्था के अश्विन वशिष्ठ के खिल
जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के प्रतापनगर स्थित केम्पस के मुख्य द्वार पर मंगलवार सैकडो छात्र-छात्राओं व कर्मचारियों ने उप रजिस्ट्रार सहकारी संस्था के अश्विन वशिष्ठ के खिलाफ 02.09.2014 को विश्वविद्यालय के स्वीकृत संविधान संशोधन को निरस्त करने के विरोध में जोरदार प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन म ेंविद्यापीठ के डबोक, प्रतापनगर, सरस्वती यूनिट श्रमजीवीमहाविद्यालय के सैकडा छात्र-छात्राओं ने अश्विन वशिष्ठ के खिलाफ नारेबाजी की।
विद्यापीठ के रजिस्ट्रार प्रो. सी.पी.अग्रवाल ने बताया कि गौरतलब है कि पूर्वप्रशासन एव ंकुछ बाहरी लोगों के दबाव में आकर उप रजिस्ट्रार अश्विन वशिष्ठ ने 15 माह पूर्व जिस संविधान संशोधन को मान्यता दी गई उसेनिरस्त कर दिया, उक्त कार्यवाही करने से पूर्व उप रजिस्ट्रार ने विश्वविद्यालय को अपना पक्ष रखने का मौका नही ंदिया।
जबकि संविधान निरस्त करने का अधिकार उप पंजीयक के अधिकार क्षेत्र सेबाहरहै।कार्यालय रजिस्ट्रार सहकारी समितियां, राजस्थान, जयपुर के क्रमांक फा.सविरा/रजि./मि.स./2159 दिनांक 11.11.2005 के बिन्दु 06 में स्पष्ट उल्लेख है कि‘‘बहुधा संस्थाओं के क्रियाकलापों के सम्बन्ध मेंशिकायतें प्राप्त होती है एवं उन पर जांच कराने का अनुरोध भी प्राप्त होता है।
उल्लेखनीय है कि अधिनियम में जांच करने अथवा इस क्रम में किसी प्रकार की शास्ति आरोपित करने का किसी प्रकार का प्रावधान नहींहै।अतः इकाई अधिकारी संस्था के क्रिया कलापोंसेदूररहे।’’संस्था के संविधान की जिन धाराओं का उल्लेख कर संविधान निरस्त किया गया उन धाराओं का उल्लेख पूर्व स्वीकृत संविधान 2007 एवं वर्तमान संविधान वर्ष 2014 मे है ही नहीं।
कार्यालय रजिस्ट्रार सहकारी समितियां राजस्थान जयपुर दिनांक 21.03.2012 के पत्र क्रमांकरजि./मिस/2/59 पैरा 3 के अनुसार‘‘संस्था रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1958 की धारा 4-ख के अनुसार यदि किसी संस्थका अध्यक्ष, सचिव या संस्था के नियमों और विनियमों द्वारा अथवा संस्था के शासी निकाय के किसी संकल्प द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई अन्य व्यक्ति, जोकि अधिनियम की धारा 4 एवं 4-क की पालना कियेजाने के लिये दायित्वाधीन है, उक्त धारा 4 एवं4 क के उपबन्धों के अन्तर्गत रजिस्ट्रार, संस्थाये को सूचना प्रस्तुत करने में असफल रहता है तो वह दोष सिद्ध होने पर 500/- रूपयेतक के आर्थिक दण्ड का भागीदार होगा।
और ऐसे अपराध के लिये प्रथम दोषसिद्ध के पश्चात् भीउक्त धाराओं की पालना में व्यक्ति क्रम चालू रहने की दशा में प्रत्येक दिन जिस के दौरान व्यक्ति क्रम चालू रहता है के लिये 50/- रूपयेसे अनधिक आर्थिक दण्ड अधिरोपित कियेजाने के भी प्रावधानहै।’’
इसी प्रकार‘‘उक्त धारा 4 ख की उपधारा 02 के अनुसार यदिकोईव्यक्ति धारा 04 एवं 04 क के अधीन रजिस्ट्रार को प्रस्तुत किये गए किसी विवरण में या नियमों /विनियमो ंमें किये गए परिवर्तनों की प्रति में जान बूझकर र्कोइ मिथ्या प्रविष्ट या लोप करताहै या कराता है तो वह दोष सिद्ध होन पर दो हजार रूपये तक के अर्थदण्ड के लियेदण्डनीय होगा।’’इसी क्रम में उचित होगा कि‘‘धारा 04 ग के अन्तर्गत उक्तानुसार किसी भी संस्था के विरूद्ध कार्यवाही प्रारम्भ किये जाने से पूर्व सम्बन्धित संस्था को एक माह का समय देते हुए उक्त प्रावधानों की पालना कर लिये जाने हेतु नोटिस जारी किया जावे।’’
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