धर्म के मार्ग पर चलने वाले का जीवन होता है सुखमय
इस अवसर पर लकड़वास में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए संस्कार धर्म से आते है और धर्म के मार्ग पर चलने वाले का जीवन सुखमय होता है। जीवन में कुछ पाना चाहते है तो उसके लिए पुण्य संचय आवश्यक है और पुण्य का संचय दान,दया व अहिंसा से होता है। धर्म संस्कार का मूल स्वभाव दया है। दया से आपके भीतर अहिंसा का भाव जागृत होगा ओर अहिंसा के भाव से आपके भीतर दान की प्रवृत्ति जागृत होगी। उन्होेंने कहा कि मन्दिर जाना धर्म है लेकिन किसी दीन दुखी,किसी असहाय की मदद करना उससे भी बड़ा धर्म है। ये तीनों
राष्ट्रसंत गुरू मां गणिनी आर्यिका सुप्रकाशमति माताजी ससंघ के नेतृत्व में 55 हजार किमी. की यात्रा करते संस्कार यात्रा आज निकटवर्ती गांव लकड़वास पंहुची जंहा उसका भव्य स्वागत किया गया।
संस्कार यात्रा के राष्ट्रीय संयोजक ओमप्रकाश गोदावत ने बताया कि प्रातः सात बजे यात्रा के लकड़वास पंहुचने पर अनेक स्थानों पर माताजी का पादप्रक्षालन हुआ। गोदावत ने बताया कि 52 वर्षीय माताजी पूरे दिन में एक बार आहार पानी लेते है और उनका दीक्षाकाल 36 वर्ष का हो चुका है। सुप्रकाशमति माताजी ने मात्र 13 वर्ष की आयु में संसारिक मोह त्याग कर संयम जीवन अपनाया था और पूरे भारत में संस्कार यात्रा का श्ंखनाद करते हुए पूरे देश में पैदल यात्रा निकलने का प्रण लिया जो आज तक अनवरत रूप से जारी है।
इस अवसर पर लकड़वास में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए संस्कार धर्म से आते है और धर्म के मार्ग पर चलने वाले का जीवन सुखमय होता है। जीवन में कुछ पाना चाहते है तो उसके लिए पुण्य संचय आवश्यक है और पुण्य का संचय दान,दया व अहिंसा से होता है। धर्म संस्कार का मूल स्वभाव दया है। दया से आपके भीतर अहिंसा का भाव जागृत होगा ओर अहिंसा के भाव से आपके भीतर दान की प्रवृत्ति जागृत होगी। उन्होेंने कहा कि मन्दिर जाना धर्म है लेकिन किसी दीन दुखी,किसी असहाय की मदद करना उससे भी बड़ा धर्म है। ये तीनों आपस में जुड़े हुए है।
संस्कार यात्रा समिति के प्रकाश सिंघवी ने बताया कि गुरू माँ का 9 व 10 जून को प्रवास निकटवर्ती गांव कानपुर में रहेगा तथा 11 जून रविवार को प्रातः 7 बजे नगर प्रवेश होगा।
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