
गौरी–
नाम होने से क्या होता है
तुम गाय तो नहीं थीं
थीं तो स्त्री ही
और वो भी बोलने वाली, लिखने वाली
ग़लती सिर्फ तुम्हारी थी
गौरी!
क्या तुम नहीं देख रही थीं
कि हिन्दू को मारकर हिन्दुत्व ज़िन्दा हो रहा है
कि रसूल के दीन को धमाके में उड़ाकर शुद्धतावादी इस्लाम जाग रहा है
कि यीशू की करुणा को सूली पर लटकाकर श्वेत ईसाई राष्ट्रवाद फिर से अंगड़ाई ले रहा है
कि सूफी नानकपंथ को लज्जित कर गुरुभेषी बाबाओं की सेनायें डोल रही हैं
इनके आगे नतमस्तक ना होकर
तुम इनसे भिड़ रही थीं
ग़लती सिर्फ तुम्हारी थी
गौरी!
क्या तुमने नहीं पढ़ा था
दिव्य, पवित्र ग्रन्थों में
कि स्त्री को पुरुष की अनुगामिनी होना चाहिए
प्रश्न नहीं, पालना करनी चाहिए
पढ़ना-लिखना नहीं, बस सुनना और करना चाहिए
हज़ारों वर्षों से पौरुष की संस्थापना करते धर्मों को
यह तुम्हारी चुनौती थी
ग़लती सिर्फ तुम्हारी थी
गौरी!
क्या तुमने इतना भी नहीं सोचा
कि तुम गाय नहीं थीं
होतीं, तो रम्भातीं
मजाल है जो रोकता कोई
जहाँ चाहतीं बैठतीं, चरतीं, विचरतीं
कोई टोकता तो वही तुम्हारे हत्यारे
काट डालते सैंकड़ों निरीह मनुष्यों को
लेकिन तुम गाय ना होकर
बेबाक ख़बरनवीस थीं
ग़लती सिर्फ तुम्हारी थी
गौरी!
गाय ना होकर स्त्री होना
पढ़ना, लिखना, बोलना
धर्म-ध्वज-प्रणाम की जगह प्रेम और इन्सानियत की कहना
सड़ती व्यवस्थाओं पर सवाल करना
गरजते राष्ट्राध्यक्षों को सच की चुनौती देना
सिक्कों के बदले क़लम बेचने वालों को आईना दिखाना
अब, कितने ”पाप“ गिनाऊँ, गौरी
ग़लती सिर्फ तुम्हारी थी
गौरी!
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Poem contributed by Himalay Tehsin