स्व- शक्ति की उत्पत्ति ही महात्म्य है: आचार्यश्री कनकन्दीजी
सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन में चातुर्मासिक धर्मसभा में आचार्यश्री कनकनन्दी गुरूदेव ने उपस्थित श्रावकों को लोकानुप्रेक्षा का उपसंहार करते हुए कहा कि अनुपे्रक्षा के माध्यम से शिक्षा लेकर स्वयं पर प्रयोग करते हुए आयात्मिक शक्ति का प्रगटीकरण ही उसका महात्म्य है।
सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन में चातुर्मासिक धर्मसभा में आचार्यश्री कनकनन्दी गुरूदेव ने उपस्थित श्रावकों को लोकानुप्रेक्षा का उपसंहार करते हुए कहा कि अनुपे्रक्षा के माध्यम से शिक्षा लेकर स्वयं पर प्रयोग करते हुए आयात्मिक शक्ति का प्रगटीकरण ही उसका महात्म्य है।
हम जो कुछ भी स्वाध्याय करते हैं उसे स्वयं पर लागू करना ही यथार्थ धर्म शिक्षा है। आचार्यश्री ने कहा कि अनुप्रेक्षा होने पर ही परिणामों में उपशान्तता आती है। धर्म पालन का भी वास्तविक फल साम्य स्वरूप परमानन्द स्वरूप सत्य स्वरूप है। इसे सत्य- साम्य- सुख अमृत अथवा शुद्ध- बुद्ध आनन्द या सत्यम शिवम सुन्दरम भी कहते हैं।
प्रचार- प्रसार मंत्री पारस चित्तौड़ा ने बताया कि धर्मसभा में श्रमणी आर्यिका श्री सुवत्सलमती माताजी द्वारा आचार्यश्री रचित कविता चौबीस अनुप्रेक्षाएं आध्यात्मिक दृष्टि से अनित्य एवं नित्य भावना का स्वरूप उद्घाटित किया।
अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद कोठारी ने बताया कि दिगम्बर जैन संस्कृति के महान आचार्यश्री शान्ति सागरजी गुरूदेव (दक्षिण) की पुण्यतिथि भी आदिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर सेक्टर 11 में मनाई गई। इस दौरान सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने उपस्थित होकर आचार्यश्री को याद किया।
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