प्राध्यापकों ने ली वेतनमान के सम्बन्ध में हाईकोर्ट कि शरण
छठे वेतन आयोग में स्कूली प्राध्यापकों की ग्रेड पे तथा पे बैंड को प्रधानाध्यापक, माध्यमिक विद्यालय से कम रखने के राज्य सरकार के फैसले को कुछ प्राध्यापकों ने राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी है और प्राध्यापकों का वेतनमान प्रधानाध्यापक, माध्यमिक विद्यालय के समकक्ष किए जाने की अभ्यर्थना की है। उदयपुर, राजसमंद तथा धौलपुर के प्राध्यापकों द्वारा दायर क
छठे वेतन आयोग में स्कूली प्राध्यापकों की ग्रेड पे तथा पे बैंड को प्रधानाध्यापक, माध्यमिक विद्यालय से कम रखने के राज्य सरकार के फैसले को कुछ प्राध्यापकों ने राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी है और प्राध्यापकों का वेतनमान प्रधानाध्यापक, माध्यमिक विद्यालय के समकक्ष किए जाने की अभ्यर्थना की है। उदयपुर, राजसमंद तथा धौलपुर के प्राध्यापकों द्वारा दायर किए गए वाद संख्या 10778/2013 में न्यायालय ने पिछले शुक्रवार को नोटिस जारी कर राज्य सरकार से इस संबंध में दो सप्ताह में जवाब देने के लिए कहा है।
वाद में कहा गया है कि प्राध्यापक तथा प्रधानाध्यापक, माध्यमिक विद्यालय राजस्थान शिक्षा सेवा नियम-1970 में उल्लेखित राज्य सेवा के एक ही ग्रुप “एफ” में होने के कारण समकक्ष केडर में हैं तथा दोनों ही पदों की पदोन्नति एक ही पद अर्थात प्रधानाचार्य, उच्च माध्यमिक विद्यालय पर होती है, किंतु वेतनमान भिन्न कर देने से गंभीर विसंगति उत्पन्न हो गई है।
इस वाद में प्राध्यापकों ने गुहार लगाई है कि प्रधानाध्यापकों के संगठन ने 1998 में राज्य सरकार को असत्य व झूठी जानकारी देकर पांचवें वेतन आयोग में वेतन समकक्षता भंग करवाई थी तथा प्रधानाध्यापक, माध्यमिक विद्यालय का 6500-10500 से बढवाकर 7500-12000 करवाया इस प्रकार दोनों पदों के प्रारंभिक वेतनमानों में 1000 रुपए का अंतर हो गया जो आज छठे वेतन आयोग में एक बड़ा रूप ले चुका है।
प्राध्यापकों ने अपने वाद में केन्द्रीय विद्यालय संगठन से सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत प्राप्त सूचना तथा केन्द्र सरकार के गजट को इस संबंध में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत कर कहा है कि केन्द्र सरकार में प्रधानाध्यापक माध्यमिक विद्यालय का पद अस्तित्व में ही नहीं है तथा पांचवें वेतन आयोग में केन्द्र में 7500-12000 का वेतनमान उप-प्रधानाचार्य के पद को दिया गया है जो प्राध्यापक तथा प्रधानाध्यापक मावि दोनों ही पदों से एक श्रेणी उच्च का पद है।
इस प्रकार प्रधानाध्यापक मावि का वेतनमान गलत तथ्यों के आधार पर उच्च श्रेणी के पद के समकक्ष किया गया था जबकि राज्य सेवा नियमों की समकक्षता के आधार पर प्राध्यापक तथा प्रधानाध्यापक मावि दोनों ही पदों का वेतनमान समकक्ष होना चाहिए।
वाद में यह भी कहा गया है कि प्रधानाध्यापकों के संगठन ने छठे वेतन आयोग की विसंगतियां दूर करने के लिए गठित कृष्णा भटनागर समिति के समक्ष भी इसी तरह के झूठे तथ्य प्रस्तुत किए थे जिसे भटनागर समिति ने अस्वीकार कर दिया था।
इस अस्वीकृति के बावजूद राज्य सरकार ने प्रधानाध्यापक मावि के पद का वेतनमान केन्द्र सरकार में उच्च श्रेणी के पद उपप्रधानाचार्य के बराबर करके गंभीर वेतन विसंगति पैदा कर दी है, जिससे प्राध्यापकों की पदोन्नति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
रिट में कहा गया की प्राध्यापक व प्रधानाध्यापक मावि दोनों ही पदों पर पदोन्नति वरिष्ठ अध्यापक पद से होती है जिसमें से प्राध्यापक पद की योग्यता स्नातकोत्तर मय शिक्षा स्नातक है जबकि प्रधानाध्यापक मावि पद की योग्यता इससे कम यानि स्नातक मय शिक्षा स्नातक ही है। ऐसे में जो कम योग्यताधारी तथा कनिष्ठ वरिष्ठ अध्यापक जब पदोन्नत होकर प्रधानाध्यापक बनता है तो उसे अधिक वेतनमान मिलता है, इसके विपरीत अधिक योग्यताधारी वरिष्ठ अध्यापक को प्राध्यापक पर पदोन्नत होने पर कम वेतनमान मिलता है।
इससे वरिष्ठ अध्यापकों को भी हानि उठानी पड़ रही है। छठे वेतन आयोग में स्कूली प्राध्यापकों की ग्रेड पे तथा पे बैंड को प्रधानाध्यापक, माध्यमिक विद्यालय से कम रखने के राज्य सरकार के फैसले को कुछ प्राध्यापकों ने राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी है और प्राध्यापकों का वेतनमान प्रधानाध्यापक, माध्यमिक विद्यालय के समकक्ष किए जाने की अभ्यर्थना की है।
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