नेचुरल फाईबर एवं रिसाईकिल यार्न से बनी ज्वैलरी देख जनता अभिभूत
फाईबर यार्न के रिसाईकल से बनी ज्वेलरी ,कॉपर, सिल्वर,ब्रास के वायर एवं केले के तने सेे रेशे से एवं सिरामिक से बनी ज्वैलरी की शिल्प प्रदर्शनी “सुकृति“ का आज पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के बागोर की हवेली स्थित कलाविथि में मुख्य अतिथि सीपीएस स्कूल की निदेशिका अलका शर्मा एंव विशिष्ठ अतिथि रंगकर्मी विलास जानवे ने किया।
फाईबर यार्न के रिसाईकल से बनी ज्वेलरी ,कॉपर, सिल्वर,ब्रास के वायर एवं केले के तने सेे रेशे से एवं सिरामिक से बनी ज्वैलरी की शिल्प प्रदर्शनी “सुकृति“ का आज पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के बागोर की हवेली स्थित कलाविथि में मुख्य अतिथि सीपीएस स्कूल की निदेशिका अलका शर्मा एंव विशिष्ठ अतिथि रंगकर्मी विलास जानवे ने किया।
प्रदर्शनी संचालिका बड़ौदा की हिना गज्जर एवं कोमल गज्जर ने बताया कि इस ज्वैलरी में इण्डो-वेस्टर्न डिजाईन का भी उपयोग किया गया है। उन्होंने बताया कि काफी शोध के बाद केले के तने के रेशे एवं फाईबर यार्न से ज्वेलरी को तैयार किया है। इसके अलावा सिल्वर और ब्रास के वायर से बनी विभिन्न प्रकार के आभूषण तथा नेकलेस, ब्रेसलेट,एंकलेट्स आदि शामिल है। प्रदर्शनी में हेडमेड बुक मार्क, हेयर एसेसरिज, पेन ड्राईव बेंगलर्स और की-चैन आदि को भी शामिल किया गया है।
केले के तने के फाईबर यार्न से बनी ज्वैलरी को प्रथम बार देश में लाने वाली इन दोनों बहिनों ने बताया कि इस प्रकार के रेशे से बनी ज्वैलरी 4-5 साल तक आसानी से चलती है। फाईबर यार्न को रिसाईकिल कर उसे ज्वैलरी बनाना अपने आप में कलात्मक कार्य है। कला पारखियों के लिए वे हर वर्ष नवाचार कर नए उत्पाद का सृजन करती हैं।
कोमल ने बताया कि केले के तने के रेशे का उपयोग विभिन्न देश अपने यहाँ करते आये हैं लेकिन भारत में इसका उपयोग बहुत कम मात्रा में होता है क्योंकि हम उसे वेस्ट समझ कर फेंक देते हैं। हमने उस वेस्ट का बेस्ट उपयोग ज्वैलरी डिजाइन में करने का प्रयास किया है।
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