मेहनत का फल कृपा से नहीं पराक्रम से मिलेगाःआचार्य शिवमुनि

मेहनत का फल कृपा से नहीं पराक्रम से मिलेगाःआचार्य शिवमुनि

श्रमण संघीय आचार्य डाॅ. शिवमुनि महाराज ने कहा कि सेवा, भक्ति, भावना बहुत प्रशंसनीय होती है, लेकिन मेहनत का फल किसी की कृपा से नहीं, पराक्रम करने से मिलेगा और उसके बाद मिलने वाली सफलता आपके कदम चूमेंगी। वे आज भगवान हिरणमगरी सेक्टर तीन स्थित महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे।

 
मेहनत का फल कृपा से नहीं पराक्रम से मिलेगाःआचार्य शिवमुनि

श्रमण संघीय आचार्य डाॅ. शिवमुनि महाराज ने कहा कि सेवा, भक्ति, भावना बहुत प्रशंसनीय होती है, लेकिन मेहनत का फल किसी की कृपा से नहीं, पराक्रम करने से मिलेगा और उसके बाद मिलने वाली सफलता आपके कदम चूमेंगी। वे आज भगवान हिरणमगरी सेक्टर तीन स्थित महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे।

ध्यानगुरू आचार्य सम्राट ने कहा कि हम परम सौभाग्यशाली है कि हमें भगवान महावीर का शासन मिला हैं जब हम किसी को नजदीक से देखते है तब या तो उसकी अच्छाई या बुराई नजर आती है। भगवान महावीर स्वामी जीवन में अकेले चलें जैसे सिंह जंगल में अकेला चलता है। वैसे ही मुनि भी अकेला चलता है। उसे किसी का भय नहीं होता है। उन्होंने कहा कि अपने कर्म पर विश्वास करो। जो भाग्य में लिखा हैं उसको आने से कोई भी रोक नहीं सकता हैं।

आचार्यश्री ने कहा कि जीवन में वाणी का बहुत महत्त्व है। वाणी से ही हम किसी को मित्र तो किसी को शत्रु बना लेते हैं। वाणी का उपयोग तोल-मोल करके बोलना चाहिए। भगवान महावीर साढ़े बारह वर्ष तक बोले ही नहीं। जब बोले तो आगम की रचना हुई। हम कितना ज्यादा बोलते है। दिन में तो लोग बोलते ही है और कुछ लोग तो रात को नींद में भी बोलते है।

उन्होंने कहा कि हम अपने बच्चों के लिए क्या-क्या नहीं करते है। पढ़ा दिया, लिखा दिया। नौकरी लगवा दी, शादी करा दी, घर बना दिया। अपने लिए क्या किया। शरीर के लिए तो सब कर देते हैं। भीतर जो आत्मा है उसके लिए क्या किया। आपने सारा जीवन ऐसे ही गवां दिया। अंतिम समय हाथ क्या आएगा, साथ क्या जाएगा। भगवान महावीर की ध्यान साधना से जीवन रूपान्तरित होता है। ध्यान की अनुभूति सबसे अलग हैं। वर्तमान युग में हर मनुष्य दुःखी है, परेशान हताश और निराश है। ऐसे समय में ध्यान सबके लिए आशा की किरण है। आपको तय करना है कि आपने मेडिसिन खानी है या मेडिटेशन करना हैं।

हम भगवान महावीर को सिर्फ जानते है, भगवान की मानते नहीं है। आपने मूल स्वरूप जानना है। आत्मा का अनुभव करना हैं। आत्मा अजर अमर हैं। शरीर नाशवान हैं वह तो मिटेगा, बिखरेगा। मौत आने से पहले जाग जाना और मृत्यु को महोत्सव बनाना ही साधना है। संसार की मोह माया में हम अपने अस्तित्व को भूल जाते है। जीवन में जो सत्य है उसको जानने के लिए पुरूषार्थ करो।

इससे पूर्व युवाचार्य श्री महेन्द्र ऋषि आदि ठाणा 10 सेक्टर 14 से विहार करके सेक्टर तीन पधारें। बीएसएनएल चौक पर हजारों की सुख्या में एकत्रित श्रावक -श्राविकाओं ने आचार्य श्री का भावभीना स्वागत किया। प्रवचन सभा का आयोजन हुआ जिसमें महिला मण्डल ने मधुर भजनों से आचार्यश्री का अभिनन्दन किया गया। प्रवचन सभा को युवाचार्य श्री महेन्द्र ऋषि म.सा., महाश्रमण श्री जिनेन्द्र मुनि म.सा., प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि म.सा. ने भी जिनवाणी का रसास्वादन कराया गया। मंच का संचालन श्रीसंघ के महामंत्री ने किया गया।

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