साम्राज्यवाद व साम्प्रदायिकता के विरूद्ध संघर्ष ही भगत सिंह को स
सरदार भगत सिंह, डॉ. राममनोहर लोहिया, गणेश शंकर विद्यार्थी व अवतार सिंह ‘पाश’ पर पाक्षिक समता संवाद रविवार 22 मार्च को महावीर समता सन्देश कार्यालय पर संम्पन्न हुआ।
सरदार भगत सिंह, डॉ. राममनोहर लोहिया, गणेश शंकर विद्यार्थी व अवतार सिंह ‘पाश’ पर पाक्षिक समता संवाद रविवार 22 मार्च को महावीर समता सन्देश कार्यालय पर संम्पन्न हुआ।
संवाद का प्रारंभ करते हुए समाजवादी विचारक व समाजकर्मी शंकरलाल चौधरी ने कहा कि शहीदे आजम भगतसिंह पर चर्चा करने का अर्थ पूरी व्यवस्था पर बात करना है। भगत सिंह को मात्र स्वाधीनता संग्राम के एक सैनानी की तरह नहीं बल्कि साम्राज्यवाद, साम्प्रदायिकता व सामन्तवाद के विरूद्ध संघर्ष करने वाले राजनैतिक विचारक के रूप में याद करने की आवश्यकता है।
उनके जन्म के सौ वर्ष बाद भी उनको याद किया जाना उनके महत्व को प्रतिपादित करता है। शुरूआती दौर में गुरूद्वारों से जुड़ी जमीन पर काम करने वाले मजदूरों के हित में हो रहे संघर्ष में शामिल हुए। उनके प्रारंभिक जीवन को देखा जाए तो वे साम्राज्यवादी सत्ता को अराजक हिसंक तरीके से भगाना चाहते थे। किन्तु उसके बाद की उनकी यात्रा एक परिपक्व राजनैतिक विचारक व योद्धा की विकास यात्रा है।
एक राष्ट्रव्यापी संघर्ष की भूमिका व संगठन के निर्माण का प्रयास उनके राजनैतिक सोच के विस्तार का संकेत है। अर्जुन, प्रताप व कीर्ति में छपे उनके लेख उनके वामपंथी रूझान का परिचय देते है। भगत सिंह व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन चाहते थे। सिर्फ अंग्रेजों को हटाकर भारतीयों का सत्ता पर काबिज हो जाना उनकी दृष्टि में आजादी नहीं थी।
श्री चौधरी ने कहा कि भगत सिंह की जन्म शताब्दी के अवसर पर किए गए एक सर्वेक्षण में सामने आया कि ग्रामीण क्षेत्रों में 36 प्रतिशत युवा भगत सिंह को अपना आदर्श मानते थे व शहरी क्षेत्रों में 60 प्रतिशत युवा उन्हे अपना आदर्श मानते थे। किन्तु भगत सिंह को चाहने वाले युवा भी समाजवादी आदर्शो से विमुख हैं क्योंकि युवाओं में समाजवादी आंकाक्षा पर मीडिया व अवसरवादी बौद्धिक लोग पर्दा डाल देते है।
उन्होंने कहा कि भगत सिंह मानवतावादी थे। आज फिर शोषणकारी व्यवस्था हावी हो रही है जिसे धार्मिक कट्टरता, बाजारवाद और फांसीवाद के सहारे मजबूत बनाया जा रहा है। युवाओं को इस व्यवस्था को पलटने के लिए संगठित प्रयास करने की आवश्यकता है।
समाजशास्त्री प्रो. नरेश भार्गव ने कहा कि हाल के वर्षो में विचारधारा के स्तर पर पुनर्पाठ का चलन है। उन्होंने कहा कि सरदार भगत सिंह व डॉ. राममनोहर लोहिया के भी पुनर्पाठ की आवश्यकता है। प्रो. भार्गव ने आधुनिक इतिहासकार रामचंद्र गुहा की पुस्तकों ‘‘व्हेयर हैव द कंजर्वेटिव आइडियोलोजीज गोन’’ तथा ‘‘मेकर्स ऑफ मॉडर्न इण्डिया का उल्लेख करते हुए कहा कि लोहिया व भगत सिंह दोनो का संघर्ष वैचारिक था। उन्होने कहा कि पूर्व के राजनेताओं में जो बौद्धिक कलेवर था वैसा आज के राजनेताओं में दिखाई नहीं देता। उन्होंने कहा कि भगत सिंह व डॉ. लोहिया को वर्तमान समय में समझने के लिए बौद्धिक विमर्श आवश्यक है।
जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के अंग्रेजी के प्रोफेसर हेमेन्द्र चण्डालिया ने पंजाब के क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाश के बलिदान का उल्लेख किया व बताया कि उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से दक्षिण पंथी ताकतों को चुनौती दी। उन्हें 1988 में खालिस्तानी आंतकवादियों ने गोली मार दी थी। प्रो. चण्डालिया ने पाश की कविता ‘‘सबसे खतरनाक’’ की पंक्तियों का पाठ भी किया।
महावीर समता सन्देश के प्रधान सम्पादक हिम्मत सेठ ने कं्रातिकारी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी का स्मरण किया व वर्तमान में पत्रकारिता के व्यवसायीकरण पर क्षोभ व्यक्त किया। संवाद में इंजीनियर पीयूष जोशी, शिक्षाविद रोशन सेठ, सतीश भटनागर, श्यामसुन्दर नंदवाना, सुशील दशोरा आदि ने भी भाग लिया।
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