आत्मा के अनन्त में लीनता ही परम ब्रह्मचर्य: आचार्य कनकनन्दी जी
आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में आचार्य कनकनन्दी गुरूदेव ने पर्यूषण पर्व की समापन वेला में उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म के स्वरूप का धार्मिक व्यवहारिक वैज्ञानिक दृष्
आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में आचार्य कनकनन्दी गुरूदेव ने पर्यूषण पर्व की समापन वेला में उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म के स्वरूप का धार्मिक व्यवहारिक वैज्ञानिक दृष्टि से प्ररूपण करते हुए बताया कि क्षमा, मादन, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, अकिंचन्य धर्म की अन्तिम परिणिति यानि स्वयं की पूर्णता अथवा स्व- स्वभाव जैसे चैतन्य स्वरूप आत्मा के अनन्त वैभव में स्थिर होना या लीन हो जाना ही परम ब्रह्मचर्य है। आचार्यश्री ने कहा- लेकिन गृहस्थ अपेक्षा इस्फा प्रारम्भ स्वदार सन्तोष से होता है जो इसका जघन्य बिन्दू है। ट्रस्ट अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद शर्मा ने बताया कि आचार्यश्री ने भारतीय जनों को वर्तमान दुर्दशा के लिए कुशील, अश्लील, व्यभिचार वृत्ति को दोषी ठहराया जिसके फलस्वरूप समाज, राष्ट्र में अशान्ति व कलह बढ़ रहा है। वर्तमान की शिक्षा भी युवकों को सभ्यता संस्कृति, दया व सम्वेदना से दूर कर रही है।
प्रचार प्रसार मंत्री पारस चित्तौड़ा ने बताया कि धर्मसभा में आचार्यश्री ने ब्रह्मचर्य के आध्यात्मिक व वैज्ञानिक रहस्यों से उपस्थितजनों को अभिप्रेरण प्रदान की। गुरूदेव के अन्तराष्ट्रीय शिष्य डॉ. नारायणलाल कच्छारा ने शोध- बोध, विज्ञान की उपलब्धियों की जानकारी दी।
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