इन्द्रिय ज्ञान जीव मूर्तिक भी हैं: आचार्य कनकनन्दी
वैज्ञानिक धर्माचार्य आचार्यश्री कनकनन्दी गुरूदेव ने आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में आयोजित प्रात:कालीन धर्मसभा मेें उपस्थित श्रावकों व जिज्ञासुजनों को आध्यात्मिक रहस्यों से अवगत कराते हुए कहा कि वस्तुत: जीव स्वभावत: अमूर्तिक होते हुए भी व्यवहार से जीव कर्म सहित होने से मूर्तिक भी माना गया है और क्षयोपाशमिक ज्ञान पूर्ण अमूर्तिक होता तो क्षयोपाशमिक ज्ञान अमूर्तिक द्रव्य को नहीं जानता।
वैज्ञानिक धर्माचार्य आचार्यश्री कनकनन्दी गुरूदेव ने आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में आयोजित प्रात:कालीन धर्मसभा मेें उपस्थित श्रावकों व जिज्ञासुजनों को आध्यात्मिक रहस्यों से अवगत कराते हुए कहा कि वस्तुत: जीव स्वभावत: अमूर्तिक होते हुए भी व्यवहार से जीव कर्म सहित होने से मूर्तिक भी माना गया है और क्षयोपाशमिक ज्ञान पूर्ण अमूर्तिक होता तो क्षयोपाशमिक ज्ञान अमूर्तिक द्रव्य को नहीं जानता।
इससे सिद्ध होता है कि इन्द्रियजन्य ज्ञान पौद्गलिक (मूर्तिक) है। आचार्य अमृतचन्द्र सूरी ने जीव को मूर्तिक सिद्ध करने के लिए बहुत ही व्यावहारिक एवं अनुभवपरक एक तर्क दिया है कि आत्मा मूर्तिक होने के कारण वह मदिरा से पागल हो जाती है, किन्तु अमूर्तिक आकाश को मदिरा मदकारिणी नहीं बना सकती।
जैसे अग्नि कुटिया को तो जला सकती है लेकिन उसमें समाये आकाश को नहीं जला पाती। इस सन्दर्भ में आचार्यश्री ने आधुनिक विज्ञान व विज्ञानियों केे उदाहरणों से भी इस विषय को और स्पष्ट रूप से बताया।
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