फतहसागर पाल पर रिमझिम बौछारों में बीच गवरी देखने उमडी भीड
जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग तथा माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान के संयुक्त तत्वावधान मेवाड़ के प्रसिद्ध लोक नृत्य गवरी का आगाज बुधवार को फतहसागर की पाल पर हुआ। रिमझिम बौछारों एवं सुहावने मौसम के बीच पाल पर थाली-मादल की मधुर आवाज ने हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
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उदयपुर, जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग तथा माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान के संयुक्त तत्वावधान मेवाड़ के प्रसिद्ध लोक नृत्य गवरी का आगाज बुधवार को फतहसागर की पाल पर हुआ। शुभारंभ अवसर पर विभाग की अतिरिक्त आयुक्त (द्वितीय) श्रीमती अंजली राजौरिया ने गवरी के मुख्य पात्रों को श्रीफल एवं मालाएं भेंट की। रिमझिम बौछारों एवं सुहावने मौसम के बीच पाल पर थाली-मादल की मधुर आवाज ने हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
इस अवसर पर गिर्वा के अमरपुरा गांव के गवरी कलाकारों ने गणपति कालूकीर, गोमा-मीणा, भीयावड़, लाखा बंजारा आदि की प्रस्तुतियां दी। गवरी प्रारंभ होने से लेकर समाप्ति तक लोगो की भीड देखी गई। यह नृत्य भगवान शिव व माता पार्वती की विभिन्न लीलाओं पर आधारित है।
टीआरआई निदेशक दिनेशचन्द्र जैन ने बताया कि जनजातीय पारम्परिक कला एवं संस्कृति का संरक्षण एवं प्रोत्साहन देने तथा देशी-विदेशी पर्यटकों से रूबरू कराने के उद्देश्य से मेवाड़ के प्रसिद्ध जनजाति लोक नृत्य नाटिका ‘‘गवरी’’ का शहर के प्रमुख पर्यटक स्थलों पर किया जा रहा है। इसी क्रम में गुरुवार 5 सितम्बर को गोगुन्दा तहसील के करनाली गांव की गवरी का मंचन इसी स्थान पर किया जाएगा।
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