भाव प्रधानता व तार्किकता के बीच सन्तुलन कायम करता है चिन्तन: प्रफुल्ल चन्द्र कार


भाव प्रधानता व तार्किकता के बीच सन्तुलन कायम करता है चिन्तन: प्रफुल्ल चन्द्र कार

’’ मनुष्य के व्यक्तित्व के भाव पक्ष व तर्क पक्ष में निरन्तर आदान-प्रदान चलता रहता है। किसी एक पक्ष की प्रधानता न हो व सन्तुलन बना रह सके इसके लिए आवश्यक है कि मनुष्य चिन्तन के लिए समय निकाले। अकेले पैदल यात्रा इस चिन्तन के लिए समय जुटाने का एक अच्छा साधन है।’’

 
भाव प्रधानता व तार्किकता के बीच सन्तुलन कायम करता है चिन्तन: प्रफुल्ल चन्द्र कार

’’ मनुष्य के व्यक्तित्व के भाव पक्ष व तर्क पक्ष में निरन्तर आदान-प्रदान चलता रहता है। किसी एक पक्ष की प्रधानता न हो व सन्तुलन बना रह सके इसके लिए आवश्यक है कि मनुष्य चिन्तन के लिए समय निकाले। अकेले पैदल यात्रा इस चिन्तन के लिए समय जुटाने का एक अच्छा साधन है।’’

उक्त विचार बलवंत पारेख सेन्टर फाॅर जनरल सिमेन्टिक्स एण्ड अदर ह्युमन साइंसेज, बड़ोैदा के निदेशक प्रो. प्रफुल्ल चन्द्र कार ने जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के अंग्रेजी विभाग व्दारा “टाईम बाईन्डिग एण्ड सोशियल  रेस्पोन्सबिलिटी” विषय पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला के दूसरे दिन अपने उद्बोधन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि नीत्षे ने ’एक्सटर्नल रिकरेन्स ’’ का विचार इस प्रकार की यात्राओं में ही विकसित किया जब वो एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी की चोटी निहारते पूरी श्रंखला को अनुभव कर रहे थे ।

प्रो. कार ने कहा कि यथार्थ की पूर्ण अनुभूति संभव नहीं है । हम यथार्थ के किसी एक पक्ष को ही देख पाते हैं। ’’थेलेमो-कोर्टिकल इंटीग्रेषन एण्ड एक्सटेषनल डिवाईसेज’’ विषय पर अपने व्याख्यान में उन्होंने कहा कि मौन का भाषा में परिवर्तित करते समय पूर्ण यथार्थ है अभिव्यक्त कर पाना एक कठिन चुनौती है क्योंकि जो यथार्थ को उतना ही समझ में आ जाए यह संभव नहीं। हम यथार्थ को उतना ही समझ पाते हैं जितना हमारी इन्द्रियाॅं उसे अनुभव कर पाती है।

इससे पूर्व सेन्टर की एकेडेमिक एसोसिएट बिन्नी बी.एस. ने पावर पाईंट प्रजेन्टेशन के माध्यम से ’स्ट्रक्चरल डिफरेन्षियल एण्ड द कांषसनेस आफ एब्स्ट्रेक्टिंग’’ विषय पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि किसी भी परिघटना, व्यक्ति या विचार को स्वीकार करने से पूर्व हमें उसके प्रति एक स्वच्छ संषयात्कम दृष्टि रखनी चाहिये। उनका कहना था कि दृष्टि में लोचशीलता रखने से मनुष्य दुराग्रहों से बच जाता है।

अनेकों उदाहरणों के माध्यम से उन्होंने बताया कि एक ही तथ्य की विभिन्न रूपों में प्रस्तुति संभव है। शेक्स पियर के नाटक की नायिका ओफिलिया के विभिन्न चित्रकारों द्वारा बनाऐ चित्रों व राजा रवि वर्मा दवारा  शकुन्तला की विविध छवियों को दिखाकर उन्होंने यह दर्षाया कि साहित्यिक कृतियों से लिए पात्रों को भिन्न-भिन्न कलाकार। कितनी विविधता से चित्रित करते हैं।

भाव प्रधानता व तार्किकता के बीच सन्तुलन कायम करता है चिन्तन: प्रफुल्ल चन्द्र कार

विश्वविद्यालय के अकादमिक प्लानिंग निदेषक डाॅ. जी.एम. मेहता ने बताया कि बुधवार को संभागियों को पाॅंच समूहों में विभाजित कर उन्हें टास्क दी गई । मेहजबीन सादड़ीवाला ने संभागियों को पाठ्यक्रम सामग्री वितरित कर उन्हें अपनी प्रस्तुतियाॅं तैयार करने के बारे में प्रषिक्षण दिया। दोपहर बाद एक पैनल डिशक्शन रखा गया जिसमें प्रो. पी.सी.कार, प्रो. जी.एम.मेहता, बिन्नी बी.एस, डाॅ. शारदा भट्ट, प्रो. सी.वी.भट्ट, डाॅ. जयश्री सिंह, प्रो हेमेन्द्र चण्डालिया, डाॅ. ऋचा माथुर, प्रो. मुक्ता शर्मा आदि ने भाग लिया। परिचर्चा में सोनिका गुर्जर ऋितम्भरा त्रिवेदी, मेघना माथुर आदि ने भाग लिया। आयोजन सचिव प्रो. मुक्ता शर्मा ने बताया कि गुरूवार को अर्नेस्ट हेमिंग्वे के उपन्यास ’’आॅल्ड मेन एण्ड द सी’’ पर आधारित फिल्म दिखाई जाऐगी, व प्रतिभागी अपनी प्रस्तुतियाॅं भी देंगे।

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