अष्टान्हिाका महापर्व सिद्धचक्र महामण्डल विधान का तीसरा दिन


अष्टान्हिाका महापर्व सिद्धचक्र महामण्डल विधान का तीसरा दिन

मनुष्य का जीवन पानी की तरह है। जिसका कोई रंग नहीं होता। उसे जिस रंग में मिला दो वह उसके जैसा ही बन जाता है। उसी प्रकार यदि हम जीवन को पाप के पानी में मिलाएंगे तो जीवन पशु तुल्य बन जाएगा और यदि इसी जीवन को पुण्य के पानी में मिलाएंगे तो यह प्रभु

 

मनुष्य का जीवन पानी की तरह है। जिसका कोई रंग नहीं होता। उसे जिस रंग में मिला दो वह उसके जैसा ही बन जाता है। उसी प्रकार यदि हम जीवन को पाप के पानी में मिलाएंगे तो जीवन पशु तुल्य बन जाएगा और यदि इसी जीवन को पुण्य के पानी में मिलाएंगे तो यह प्रभुतुल्य बन जाएगा। उक्त विचार आचार्य शान्तिसागरजी महाराज ने अष्टान्हिका महोत्सव के तहत श्रीसिद्धचक्र महामण्डल विधान के तीसरे दिन आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किये।

आचार्यश्री ने कहा कि जन्म देना तो भगवान के हाथ है, लेकिन मनुष्य को अपनी मृत्यु को सुधारना खुद मनुष्य के हाथ में है। मरना तो निश्चित है चाहे वह हंस कर मरे या रो- रोकर। आचार्यश्री ने कहा कि रावण और विभीषण दोनों एक ही मां की सन्तान थे। लेकिन रावण दुराचारी था और विभीषण सदाचारी थे। इसका परिणाम यह हुआ कि प्रभु श्रीराम ने रावण का गला उतार दिया जबकि विभीषण ने प्रभु श्रीराम को गले में उतार लिया। आज आदमी तन के रोग से, मन के शोक से और धन के भोग से दुखी रहता है। तन की तृष्णा, मन की मौज और धन का धोखा ही इंसान के दुखों का मूल कारण है।

आचार्यश्री ने कहा कि अगर मनुष्य तन को तीर्थ से, मन को महावीर से और धन को धर्म से जोड़ दे तो मनुष्य जीवन से दुखों का भी अन्त हो जाएगा।

चातुर्मास समिति के कार्यवाहक अध्यक्ष सेठ शान्तिलाल नागदा एवं मुख्य संयोजक जनकराज सोनी ने बताया कि विधान के तीसरे दिन की धर्मसभा के पुण्यार्जक रोशनलाल देवड़ा, झमकलाल मुण्डलिया, श्रीमती लहरीबाई गदावत आदि थे। प्रचार- प्रसार मंत्री पारस चित्तौड़ा ने बताया कि सायंकाल विभिन्न धार्मिक एवं मांगलिक कार्यों के तहत भक्ति संध्या एवं गुरू आरती सम्पन्न हुई। विधान में आस-पास के क्षेत्रों के श्रद्धालुओं का आना तीसरे दिन भी जारी रहा।

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