स्वयं को जानना-देखना ही मोक्षमार्ग है, वही मुक्ति है


स्वयं को जानना-देखना ही मोक्षमार्ग है, वही मुक्ति है

प्रज्ञामहर्षी उदयमुनि ने वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान में धर्मसभा को संबोधित करते हुये कहा कि ज्ञान दर्शन आत्मा का गुण है परन्तु वह कि कामका कि स्वयं को तो जाने नहीं और प

 
स्वयं को जानना-देखना ही मोक्षमार्ग है, वही मुक्ति है

प्रज्ञामहर्षी उदयमुनि ने वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान में धर्मसभा को संबोधित करते हुये कहा कि ज्ञान दर्शन आत्मा का गुण है परन्तु वह कि कामका कि स्वयं को तो जाने नहीं और परायों को अपना जाने-माने। वह अज्ञान और मिथ्यात्व है।

उन्हीं के बल से मिथ्या मोएहादि करके अनन्त कर्म बंधकर अनन्त जन्म मरण का अनन्त दुख पाता है। यह चतुर्गतिरूप संसार मार्ग है। स्वयं के ज्ञान गुण से स्वयं को जाने, पर को भी जाने, पर पराया जाने तो वह ज्ञान है।

जानने-देखने अनुभव करने की शक्ति शरीर या पांचो इन्द्रीयों और मन में नहीं है। इनके माध्यम से जो भी जाना जाता है वह पुदगल (मिट्टी) का ही जानना है। पुद्गल के गुण है, वर्ण-गंध-रस-स्पर्शा इन्हें इन्द्रियों से जाना-देखा जा सकता है परन्तु आत्मा में तो वर्ण-गंध-रस-स्पर्श है नहीं, अमूर्त-अरूपी है, उन्हें इन्द्रियों और मन नहीं जाना जा सकता।

बुद्धि तो तीक्ष्ण मिली परन्तु उसका उपयोग आप शरीर, इन्द्रियां, भोग, भोग साधन में ही लगाते है वह दुर्बुद्धि है कुबुद्धि, उल्टी बुद्धि है, कुमति है। उसी बुद्धि को स्वयं को जानने में लगाओं तो समुति प्रकट होती है।

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