त्रिपथ गामिनी गंगा है मानव की बुद्धि


त्रिपथ गामिनी गंगा है मानव की बुद्धि

यह मानव की विशेषता है कि वह जैसा चाहे, वैसा जी सकता है। पशु पक्षियों की तरह वह किसी ढर्रे से बंधा हुआ नहीं है। मानव की इस विशेषता को समझकर ही सिद्धान्तों और व्यवस्थाओं का जन्म हुआ है। धर्म भी इसीलिये आविष्कृत है कि मानव चाहे तो इसे अपना सकता है।

 

यह मानव की विशेषता है कि वह जैसा चाहे, वैसा जी सकता है। पशु पक्षियों की तरह वह किसी ढर्रे से बंधा हुआ नहीं है। मानव की इस विशेषता को समझकर ही सिद्धान्तों और व्यवस्थाओं का जन्म हुआ है। धर्म भी इसीलिये आविष्कृत है कि मानव चाहे तो इसे अपना सकता है।

नैतिक नियमों के लिए भी यही बात समझना चाहिये। यदि मानव खुद को बदल ही नहीं पाता होता तो फिर मानव के लिये किसी सिद्धान्त और मान्यता का आविष्कार ही नहीं होता।

ये विचार श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने पंचायती नोहरा में धर्मसभा में व्यक्त किये।

मुनि श्री ने बताया कि मानव अपने विगत समय की घटनाओ को स्मृति पट पर लोैट कर उनकी समीक्षा करने की क्षमता रखता है। वर्तमान में वह क्या है और क्या कर सकता है इसे अच्छी तरह तौल सकता है भविष्य में उसे किस तरह बढऩा इसका निर्धारण भी व्यक्ति वर्तमान में कर सकता है। ऐसी है मानव कि बुद्धि त्रिपथ गामिनी गंगा जैसी। तीनों कालों का अवधारण करने की क्षमता रखती है। मानव को ऐसी विशेषता दृश्यमान प्राणी जगत में कहीं दिखाई नहीं देती।

अब तो यह मानव पर ही निर्भर करता है कि अपनी इन अद्भुत क्षमता का वह उपयोग कैसे करे ? मानव यदि अपनी चिन्ताओं, वृत्तियों और अपेक्षाओं की समीक्षा करे तो उसे अपनी समस्त जीवन प्रक्रियाओं में बहुत कुछ परिवर्तन करने की अपेक्षा स्वत: स्पष्ट हो जाएगी। तत्व ज्ञान, सिद्धान्त, धर्म और नैतिकता ऐसे ही समय उपयोगी होंगे और वे मानव पथ का प्रदर्शन कर सकेंगे। जो उद्देश्यों और अपेक्षाओ को बदलना चाहेगा उसे सद्ज्ञान से वह प्रकाश मिलेगा कि उसका सोद्देश्य किया गया परिवर्तन सफलता के शिखर तक पहुंच जाये। मुनि श्री ने बताया कि हैवान, शैतान, इन्सान और भगवान के रूप में मानव जो यहां अपना निर्माण कर सकते है जो जीवन प्रक्रिया में उच्च परिवर्तन कर लिये वे इन्सान या भगवान के रूप में पूज्य और सम्माननीय हो गये। जिन्होने अपने जीवन में नकारात्मक परिवर्तन किया वे हेवान और शैतान की श्रेणी में पहुंच गये। आप भी मानव है। अपने आप में परिवर्तन लाने की क्षमता आप में भी विद्यमान है आप भी चाहें तो अपने को एक उच्चस्तर प्रदान कर सकते है और वह भी बड़ी सरलता के साथ।

मुनि श्री का कहना था कि हम भारतवासी जन्म के साथ ही किसी न किसी धर्म के साथ जुड़ते ही हैं। जीवन भर हम धर्म विशेष के अनुयायी का झंडा ऊंचे से ऊंचा लहराने के लिए बड़े से बड़ा हिंसाकांड तक रच सकते हैं। जो व्यक्ति कट्टर सम्प्रदायवाद को पोषते है, उन्हें यह तो कोई पूछे कि वे अपनी धर्म संम्प्रदाय के निर्धारित न्यूनतम सिद्धान्तो और आदेशों का पालन भी आप करते हैं क्या? सच्चाई तो यह कि हम धर्म के नाम पर कट सकते हैं और काट सकते हैं। धर्म का पालन कर पाएं, यह अत्यन्त कठिन है। संचालन हिम्मत बड़ाला ने किया।

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