डॉक्टर पर विश्वास करें, अन्धविश्वास नहीं


डॉक्टर पर विश्वास करें, अन्धविश्वास नहीं

कहते है डॉक्टर भगवान का रूप होता है क्योंकि वो जिंदगी देता है, बात तो सच ही है हर इंसान यही सोचता है। आप और हम भी तो यही सोचते है न। हम अपने आप को डॉक्टर को सोंपकर निश्चिंत हो जाते हैं जैसा डॉक्टर कहता है वैसा ही करते है इस उम्मीद में कि वही हमारी जिंदगी का रक्षक है और अगर वही रक्षक अपनी ज़रा सी लापरवाही की वजह से हमारी जिंदगी का दुश्मन बन जाए तो?

 

डॉक्टर पर विश्वास करें, अन्धविश्वास नहीं

कहते है डॉक्टर भगवान का रूप होता है क्योंकि वो जिंदगी देता है, बात तो सच ही है हर इंसान यही सोचता है। आप और हम भी तो यही सोचते है न। हम अपने आप को डॉक्टर को सोंपकर निश्चिंत हो जाते हैं जैसा डॉक्टर कहता है वैसा ही करते है इस उम्मीद में कि वही हमारी जिंदगी का रक्षक है और अगर वही रक्षक अपनी ज़रा सी लापरवाही की वजह से हमारी जिंदगी का दुश्मन बन जाए तो?

ऐसी ही एक घटना मेरी जिंदगी में हुई जो मैं आज आपको बता रही हूँ।

आज से तीन साल पहले मेरी एक 19 वर्षीया बहन जो कि बी.ए सेकंड इयर की छात्रा थी। उसके चेहरे पर एक छोटा सा ट्यूमर हो गया था। जिसके लिए हम उसे डॉक्टर के पास ले गए जहा डॉक्टर ने कहा कि कुछ सीरियस नहीं हैं बस छोटा सा ऑपरेशन होगा और ठीक हो जाएगा। ऑपरेशन हो गया हम निश्चिन्त हो गए कि सब ठीक हो गया पर दो महीने बाद उसके चेहरे पर फिर से ट्यूमर हो गया फिर डॉक्टर ने ऑपरेशन किया। जबकि ना कोई टेस्ट किया गया ना कोई रिपोर्ट दी गयी पर हमने भरोसा किया और सोचा सब ठीक ही हो रहा है पर तक़दीर को कुछ और ही मंजूर था।

एक ही महीने बाद फिर से मेरी बहन को ठीक उसी जगह ट्यूमर हो गया जहाँ पहले दो बार हुआ था। अब हमें लगा हमें किसी और डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिये तब हम उसे दिल्ली ले गए। जहां बहुत बड़े हॉस्पिटल में उसका इलाज शुरू हुआ। वहाँ उसके कई सारे टेस्ट हुए जिससे हमे पता चला कि उसे कैंसर हैं। यह सुनते ही हमारे पैरों तले जमीं खिसक गई पूरे परिवार में एक मौन सा छा गया पर जो नियति थी उसे हमे स्वीकार करना ही था। इसी सब के चलते मेरी बहन की पढाई छूट गई। उसके सपनों पर एक ब्रेक सा लग गया।

दिल्ली में एक साल के लम्बे इलाज के बाद वो ठीक हो कर घर आ गई। घर में फिर से खुशियाँ छा गई पर पता नहीं था वो खुशियाँ कितने दिनों की मेहमान हैं। कुछ ही दिनी में उसे फिर से ट्यूमर हो गया। हम फिर से दिल्ली गए जहाँ से हमें बेंगलोर भेजा गया। फिर शुरू हुआ एक नया सफ़र वहां फिर से ऑपरेशन हुआ पर कुछ ठीक नहीं हो पाया कई ऑपरेशन होते रहे निराशा ही हाथ लगी मेरी बहन ने इतनी छोटी से उम्र में इतना कुछ झेल लिया था। वो थक चुकी थी। जो उम्र मौज मस्ती में बिताते है वो उसकी हॉस्पिटल के चक्कर काटने में कट रही थी फिर भी वो खुद हिम्मत करके अपने मम्मी पापा को भी हिम्मत दे रही थी। क्योकि उसमे जीने की आस थी वो जीना चाहती थी पर एक दिन ऐसा आया हम हार गए, नही जीत पाए केन्सर से जब डाक्टर ने कहा वह कुछ ही दिनो की मेहमान है। अब कुछ नहीं हो सकता था पर मम्मी पापा ने फिर भी हार नही मानी वहा से उसे मुम्बई ले गये परन्तु वहा भी कुछ न हो पाया फिर वहा से उसे जयपुर ले गये जहा उसका आयुर्वेदिक इलाज शुरू किया। क्योंकि माता पिता के प्यार के आगे ना तो वक्त मायने रखता है ना पैसा पर प्यार से हम जिन्दगी तो नही जीत सकते ना ? आखिर मे जयपुर में भी हम निराश होकर घर लोट आये हमने किस्मत के आगे घुटने टेक दिये।

हर दिन अब हमारे लिए सज़ा थी, सब की एक ही कोशिश थी कि मेरी बहन की हर इच्छा पूरी करे। उसकी जितनी जिन्दगी बची है उसे खुशीयो से भर दे। कुछ महिनो मे वो वक्त आ गया जब वो हमे हमेशा के लिये छोड कर चली गई ।

मैं पूछती हूँ कौन जिम्मेदार है उसके अधूरे टूटे हुए सपनों का। उन माता पिता के दर्द का जो अपनी बेटी का कन्यादान करके उसे विदा करना चाहते थे कौन जिम्मेदार है उन भाई बहन के सुनेपन का। काश सही वक्त पर उसके टेस्ट होते सही इलाज शुरू हो जाता तो वो आज शायद वो हमारे साथ होती। मैं यह नही कह रही कि सभी डाक्टर एसे होते है मे मानती हूँ डाक्टर भगवान का रूप होते है पर कुछ डाक्टरो की लापरवाही की वजह से हमे जो खोना पडा उसका दर्द तो कभी नही मिट सकता पर हम अपना यह दर्द किसे जाकर कहते, किससे इन्साफ मांगते कोई रास्ता नही था अपने दर्द के साथ जीने के अलावा।

मैं यह बात बताकर कह कर सिर्फ अपना दर्द आपके साथ नहीं बाँट रही हूँ बल्कि मैं यह चाहती हूँ यह जानने के बाद किसी का कोई अपना, डॉक्टर की लापरवाही की वजह से किसी से दूर न हो। हम डॉक्टर पर विश्वास करें परन्तु अन्धविश्वास नहीं।

हम खुद भी सतर्क रहें, डॉक्टर से हर बात में खुलकर बात करके पूरी जानकारी ले। कई डॉक्टर यह नहीं बताते कि बीमारी क्या हैं बस दवाई दे देते है। डॉक्टर को भी मरीज़ को पूरी जानकारी देकर संतुष्ट करना चाहिए। मरीज अगर डॉक्टर में भगवन देखता है तो डॉक्टर को भी उसका रक्षक बनकर उसकी उम्मीद पर खरा उतरना चाहिए। आज विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि हर बीमारी का इलाज संभव है परन्तु अगर यह इलाज हर आम इन्सान तक सही वक्त पर सही तरीके से नही पँहुच पता तो ऐसे विज्ञान का कोई फायदा नही।

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