दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का समापन


दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का समापन

महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस तथा सरकार के साथ-साथ आमजन की भी है जब तक समाज अपना नजरिया नहीं बदलेगा तब तक महिलाओं की स्थिति में बदलाव नहीं लाया जा सकता।

 

दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का समापन

महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस तथा सरकार के साथ-साथ आमजन की भी है जब तक समाज अपना नजरिया नहीं बदलेगा तब तक महिलाओं की स्थिति में बदलाव नहीं लाया जा सकता।

आजादी के 67 वर्ष बाद भी भारत वर्ष में महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान ओर आदर नहीं दिला सके जबकि अन्य हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश श्रीलंका चीन मंे महिलाओं की स्थिति बेहतर है।

आज भी भारत में सामाजिक आर्यकताओं तथा एन.जी.ओ. ने सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, नरेगा, शिक्षा तथा स्वास्थ्य, महिलाओं के अधिकार तथा कानून के बारे में ग्रामीण जन-जीवन में जन चेतना फैलाई।

आज भी लड़के व लड़की दोनों में विभेद में अलग-अलग देखा जाता है दोनों के रहन-सहन उनके वातावरण में भेद करने हम स्वयं जिम्मेदार है।

यह विचार शनिवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक उदयपुर स्कुल ऑफ सोशल वर्क की ओर से ‘‘समाज कार्य का लिंग भेद एवं कार्य स्थल पर शोषण में हस्तक्षेप’’ विषयक पर दो दिवसीय सेमीनार के समापन सत्र के अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में पूर्व जस्ट्सि के.जी. बालकृष्णनन सुप्रीम कोर्ट तथा वर्तमान अध्यक्ष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कही। अ

ध्यक्षता करते हुए प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत नेे कहा कि महिला सशक्तिकरण सामाजिक विकास की पूंजी है हमे महिला विकास एवं जेंडर समानता पर पूरा ध्यान देना होगा।

वर्तमान समय में समाज की सोच में बदलाव की आवश्यकता हैं समारोह के विशिष्ठ अतिथि राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ. लाड कुमारी जैन ने कहा कि महिलाओं को सही मायने में सम्मान मिलना चाहिए। हम सौ साल से महिला सशक्तिकरण पर चेतना, महिला दिवस, नुक्कड नाटक, रेलियां आदि कार्य कर रहे है फिर भी महिला वही की वही।

अतः हमे उनकी सोच मंें बदलाव लाना होगा तभी इसकी सार्थकता हो सकेगी। उन्होंने कहा कि हमारा समाज कन्या जन्म का स्वागत करें ओर महिलाओं को सम्मान तथा पहचान मिलें।प्रो. एन.एस. राव, प्रो. एस.के.मिश्रा, प्रो. सी.पी. अग्रवाल ने भी विचार व्यक्त किये।

इन विषयों पर हुआ मंथन:-

दो दिवसीय सेमीनार की समन्वय डॉ. वीणा द्विवेदी ने बताया कि भारतीय परिप्रेक्ष्य में लेंगिक समानता एवं महिला अधिकारों के प्रति जागरूकता, स्कूलों में महिलाओं के अधिकार, भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण के हल के लिए एक चुनौतीपूर्ण काम, महिलाओं की आवश्यकता एवं चुनोतिया, महिला सशक्तिकरण् आज की आवश्यकता, पंचायतीराज में महिला सशक्तिकरण एवं आरक्षण, विषय पर गंभीर विचार विमर्श किया गया।

कार्य स्थल पर महिलाओं का शोषण तथा इसमें समाज कार्य का हस्तक्षेपकरण , टूरिज्म एवं होटल प्रबन्धन में हो रहे लिंग विभेदीकरण, महिलाओं को जमीन एवं सम्पत्ति अधिकार से वंचित रखा जाना शामिल है।

पत्र वाचन – आयोजन सचिव डॉ. वीणा द्विवेदी ने बताया कि शनिवार को दो तकनीकी सत्रों में पॉंच समानान्तर सत्रों में कुल 40 विद्वानों ने अपना पत्र वाचन किया जिसमें डॉ. के.के.सिंह, डॉ. जहॉं आरा बानो, प्रो. एन.के.भट्ट, ममता जेटली, प्रो. लवकुश मिश्रा, प्रो. के.के.जेकब, डॉ. अंजु ओझा, डॉ. आनन्द त्रिपाठी, शिल्पा सेठ, डॉ. देवेन्द्र सिंह, डॉ. सुमन पामेचा, डॉ. सुनील चौधरी, डॉ. लालाराम जाट एवं डॉ. सीता गुर्जर ने पत्र वाचन किया।

स्कूल आफ सोशल वर्क के प्राचार्य प्रो. एस.के.मिश्रा ने दो दिवसीय संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। धन्यवाद डॉ. मनीष श्रीमाली ने ज्ञापित किया।

समारोह में प्रो. एन.एस. राव, प्रो. सी.पी. अग्रवाल, डॉ. हरीश शर्मा, प्रो. जी.एम. मेहता, डॉ. मनीष श्रीमाली, डॉ. हेमशंकर दाधीच, डॉ. युवराज सिंह, डॉ. सीता गुर्जर, प्रो. सुंमन पामेचा, डॉ. शशि चितौडा, डॉ. राजन सूद, प्रो. प्रदीप पंजाबी, प्रो. अनिता शुक्ला, डॉ. सुनील चौधरी, डॉ. लाला राम जाट सहित के अनेक छात्र एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।

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