दर्शनशास्त्र की दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न


दर्शनशास्त्र की दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

‘विवेकानन्द, दयानन्द सरस्वती एवं ज्योतिबा फूले में सामाजिक मुक्ति विमर्श’ पर संवाद की प्रासंगिकता अभी भी बनी हुई है। वर्तमान में हमारे समाज में पाये जाने वाले वैचारिक सामाजिक अंतर्विरोधों, अन्तद्वंदों, विडम्बनाओं एवं विरोधाभासों को समझने में इन तीनों चिन्तकों के विचार अभी भी हमें आधार दृष्टि व चेतना सूत्र प्रदान करते हैं”। - ये विचार अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली के प्रो. बजरंगबिहारी तिवारी ने दर्शनशास्त्र की दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में विचार रखे।

 

‘विवेकानन्द, दयानन्द सरस्वती एवं ज्योतिबा फूले में सामाजिक मुक्ति विमर्श’ पर संवाद की प्रासंगिकता अभी भी बनी हुई है। वर्तमान में हमारे समाज में पाये जाने वाले वैचारिक सामाजिक अंतर्विरोधों, अन्तद्वंदों, विडम्बनाओं एवं विरोधाभासों को समझने में इन तीनों चिन्तकों के विचार अभी भी हमें आधार दृष्टि व चेतना सूत्र प्रदान करते हैं”। – ये विचार अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली के प्रो. बजरंगबिहारी तिवारी ने दर्शनशास्त्र की दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में विचार रखे।

अध्यक्षता करते हुए डॉ. आलोक टंडन ने कहा कि मानव की सामाजिक आजादी, स्वाधीनता एवं इंसानी समाज के निर्माण का सपना अभी भी अधूरा है और मुक्तिगामी जन अभी भी प्रयासरत है। इन प्रयासों को दिशा देने में, आगे बढ़ाने में तीनों चिन्तकों व समाज सुधारकों का महत्वपूर्ण स्थान है।

संगोष्ठी के दूसरे दिन वर्ग, जाति, धर्म, विज्ञान, संस्कृति, समाज, लिंगभेद, हिंसा की जगह जैसे मुद्दों पर विवेकानन्द, दयानन्द एवं ज्योतिबा फूले के विचारों पर ‘विशेषज्ञ संवाद’ रखा जिसमें भोपाल से ईश्वर दोस्त, नारनोल से प्रो. हेमेन्द्र चण्डालियाद्व नांदेड़ से दिलीप चवैन ने अपना दृष्टिकोण रखा।

संगोष्ठी में विवेकानन्द, दयानन्द एवं ज्योतिबा फूले के विचारों में ‘समानता व भिन्नता’ पर विभिन्न तकनीकी सत्रों में पर्चे पढ़े गये; जिसमें पंजाब से ललन बाघेल, सिद्धार्थ, दिल्ली से कविता अग्रवाल, बम्बई से डॉ. ललिता धरा, लखनऊ से सुप्रिया मीना, गुजरात से दिलीप चारन, जबलपुर से प्रो. भरत कुमार तिवारी, डॉ. श्याम कुमावत इत्यादि थे। धन्यवाद संगोष्ठी संयोजक डॉ. सुधा चौधरी ने दिया।

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