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नगर नियोजन एवं नागरिकता पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला सम्पन्न

जन सहभागिता के बिना कोर्इ भी योजना सफल नहीं हो सकती। जनता की योजना निर्माण के पश्चात सुझावों के लिए नहीं वरन योजना निर्माण में भागीदार होनी चाहिए। यू.आर्इ.टी. जनता की मदद की जगह नहीं वरन व्यवसाय का स्थान बन गया है। किसानों से कम दर पर जमीन लेकर उधोगों को अधिक दर पर बेचकर पैसा कमा रही है।

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नगर नियोजन एवं नागरिकता पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला सम्पन्न

जन सहभागिता के बिना कोर्इ भी योजना सफल नहीं हो सकती। जनता की योजना निर्माण के पश्चात सुझावों के लिए नहीं वरन योजना निर्माण में भागीदार होनी चाहिए। यू.आर्इ.टी. जनता की मदद की जगह नहीं वरन व्यवसाय का स्थान बन गया है। किसानों से कम दर पर जमीन लेकर उधोगों को अधिक दर पर बेचकर पैसा कमा रही है।

एक गरीब, साधारण नौकरी पैशा व्यकित मकान का निर्माण एक दिवास्वप्न बन गया है। उक्त विचार विधाभवन सोसायटी द्वारा आयोजित शहरीकरण एवं नागरिकता विषयक दो दिवसीय सेमीनार में विधायक एवं पूर्व गृहमंत्री गुलाब चन्द कटारिया ने व्यक्त किए।

कटारिया ने कहा कि योजना एवं बजट का विकेन्द्रीकरण होना चाहिए। जिला स्तर पर योजना का निर्माण वहां की आवश्यकताओं के परिपेक्ष्य में होना चाहिए। बढ़ते नगरीकरण को रोकने के लिए यातायात व्यवस्था सुगम एवं बहुत किफायती होनी चाहिए। शिक्षा संस्थान, विश्वविधालय, उधोग आदि शहरों में नहीं वरन गाँवों में लगने चाहिए। ओधौगिक क्षेत्र बसाने से पहले उससे होने वाले कचरे के निस्तारण की व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए। शहर के मास्टर प्लान के संदर्भ में कटारिया ने कहा कि उदयपुर की सड़कें यहां के यातायात को सहन करने की स्थिति में नहीं है।

शहर के चौराहे ठीक नहीं है। उदयपुर की सिवरेज, जलनिकासी और पार्किंग व्यवस्था भी ठीक नहीं है। प्रशासनिक लापरवाही के कारण अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है। भूमाफियाओं के दबाव में विश्वविधालय मार्ग से पुलां तक 100 फीट रोड़ सीधी की जगह सर्पाकार बन गयी। विभागों मे आपसी समन्वयन नहीं होने के कारण उदयपुर की सड़कें बदहाली का शिकार है।

कटारिया ने कहा राजनेता सभी विषय के विशेषज्ञ हों यह जरूरी नहीं है। अत: हर मंत्रालय में विशेषज्ञों की एक कमेटी होनी चाहिए। जो अधिकृत व शक्ति सम्पन्न हो। वर्तमान विकास की धारा दोषपूर्ण है। आयोजना ऐसी होनी चाहिए कि आम जनता की आजीविका व आर्थिक स्थिति मजबूत हो। ग्राम सशकितकरण और जनता को शक्ति दिये बिना व्यवस्था का दुरस्त करना बहुत मुश्किल हैं।

नगर नियोजन एवं नागरिकता पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला सम्पन्न

कार्यशाला के प्रात: कालीन सत्र में सेवानिवृत अधीक्षण अभियन्ता ज्ञान प्रकाश सोनी ने अपने प्रस्तुतिकरण में सन 2003 में स्वीकृत मास्टर प्लान और सन 2013 के ड्राफट मास्टर प्लान तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते हुए यह बताया कि स्वीकृत मास्टर प्लान की अवधि पूर्ण होने से पूर्व ही नवीन मास्टर प्लान बनाने का जस्टीफिकेशन बढ़ती जनसंख्या का आधार नये मास्टर प्लान में दिये गये आंकड़ों से असत्य सिद्ध होता है क्योंकि विधमान प्लान में सन 2011 की अनुमानित आबादी 5.99 लाख आंकी गयी थी। जो नवीन प्लान में 5.75 लाख बतायी गयी है। इसी तरह पूर्व स्वीकृत प्लान में सन 2022 की आबादी 8.30 लाख आंकी गयी थी जबकि प्रस्तावित प्लान में सन 2021 की संभावित 7.59 लाख आंकी गयी है।

उन्होंने यह भी बताया कि  एक तरफ तो झीलों के जलांचल में निर्माण निषेध क्षेत्र प्रस्तावित है फिर भी कोडियात ए व बी गाँव को नये मास्टर प्लान के क्षेत्र ले लिया गया है। इसी तरह पर्यटकों की बढ़ती संख्या को भी नये मास्टर प्लान बनाने का एक कारण बताया गया है। लेकिन इसी प्लान की तालिका 11 के अनुसार सन 2000 में जहां 8,12,507 पर्यटक उदयपुर आये थे वहां सन 2009 में 7,12,312 व 2010 में 7,55,313 पर्यटक ही उदयपुर आए। इस तरह या तो पर्यटकों की संख्या का आंकड़ा गलत है या फिर मास्टर प्लान को नया बनाने का आधार अनुचित है। मास्टर प्लान जिन आंकड़ों पर आधारित है उनमें से कर्इ आंकड़े पुराने मास्टर प्लान से ज्यों के त्यों नकल कर लिए गए है।

उदाहरण के लिए शहरकोट के भीतर के क्षेत्र में 2003 के मास्टर प्लान में 445 व्यकित प्रति एकड़ का घनत्व बताया गया था और 2013 के मास्टर प्लान में भी इसी आंकड़े को दोहरा दिया गया है। जबकि शहरकोट के अंदर दुमंजिले मकान तिमंजिले हो चुके हैं; और आबादी में पिछले 10 वर्षों में निश्चित तौर वृद्धि हुर्इ है और शहरकोट के अंदर का क्षेत्रफल वही का वही है तो जनसंख्या घनत्व बढ़ना निशिचत है। कच्ची बस्तियों से संबंधित आंकड़ों व भाषा में 2003 के मास्टर प्लान और 2013 के प्रस्तावित मास्टर प्लान में कोर्इ अन्तर नहीं बताया गया है।

10 वर्ष पूर्व 51 कच्ची बस्तियां थी और इन में 1,18,500 व्यकित निवास कर रहे थे और प्रस्तावित मास्टर प्लान के अनुसार भी आज भी 51 कच्ची बस्तियां है और इनमें 1,18,500 व्यकित ही निवास कर रहे है। अस्पतालों के मामले में स्थिति और भी गंभीर है क्योंकि 2003 के मास्टर प्लान में जनरल हासिपटल में 1585 पलंग व आयुर्वेदिक अस्पताल में 165 पलंग थे जो 2013 के प्रस्तावित प्लान के अनुसार घटकर क्रमश: 1146 व 75 पलंग ही रह गये है।

इसी तरह शहर में 2003 के मास्टर प्लान के अनुसार 45 निजी चिकित्सालय व 550 पलंग थे और 2013 के प्रस्तावित मास्टर प्लान में भी 45 निजी चिकित्सालय व 550 पलंग है।

आश्चर्य यह है कि पिछले 10 वर्षों में या तो एक भी निजी चिकित्सालय नया नहीं बना इसे सही माने या इन आंकड़ों को गलत माने शिक्षा क्षेत्र में 2003 के मास्टर प्लान में 13 महाविधालय बताये गये थे और नये प्रस्तावित मास्टर प्लान में भी 13 ही महाविधालय बताये गये हैं। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि नये मास्टर प्लान को बनाने वाले कन्सलटेंट ने आंकड़े जुटाने में वांछित प्रयास नहीं किये है और विभागीय स्तर पर भी इसकी कोर्इ जाँच किसी भी कार्यालय में नहीं हुर्इ है।

पुराने मास्टर प्लान को स्वीकृत करते समय जो प्रस्तावना मुख्य नगर नियोजक ने लिखी है। उसके अनुसार उस समय 326 आपतितयाँ एंव सुझाव प्राप्त हुए थे। जिसमें से सिर्फ 43 सुझाव जो अधिकांशत: नगर विकास प्रन्यास द्वारा सुझाये गये थे उन्हें ही स्वीकृति योग्य पाया गया शेष पर कोर्इ कार्यवाही अपेक्षित नहीं पायी गयी। इस आधार पर यह विचारणीय है कि प्रस्तावित मास्टर प्लान पर जो सुझाव मांगे जा रहे है उनका क्या हश्र होने वाला है।

यहां पर राजस्थान नगरीय विकास अधिनियम 1959 की धारा तीन पर यदि ध्यान दे तो राजकीय मंशा यह है कि सभी इच्छुक व्यकित अपने सुझाव दे सके और इसके लिए आवश्यक हो तो 30 दिन की समय सीमा को आगामी 30 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है। वर्तमान हालत यह रही है कि कर्इ गणमान्य व्यकित प्रयास करने पर भी प्रस्तावित प्लान की प्रतिलिपि काफी विलम्ब से प्राप्त कर सके है।

यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि जो प्लान लगभग 2 साल की अवधि में सरकार ने तैयार किया है तो उसका गंभीरतापूर्वक अध्ययनकर अपने सुझाव देने के लिए क्या मात्र 30 दिन की अवधि पर्याप्त है?

प्रस्तावित मास्टर प्लान में कुछ प्रावधान ऐसे है कि जो इसके लिखित भाग में नहीं बताये गये है किन्तु नक्शों में इस तरह से दर्शाये गये है कि उन पर आसानी से नजर न पड़े। सार्इफन के पास के शैक्षणिक क्षेत्र को बैंगनी रंग में दर्शाया गया है और उसके अंदर एक सड़क काले रंग से दर्शायी गयी है। नीमचमाता के पास नहर के मुहाने पर एक क्षेत्र को नक्शे में लाल रंग से वाणिजियक दिखाया गया है जो झील की परिधि पर है जबकि लिखित भाग में यह बताया गया है कि झील के 500 मीटर दूरी तक कोर्इ निर्माण नहीं करना प्रस्तावित है।

महापौर रजनी डांगी ने कहा कि मास्टर प्लान में जनता के सुझावों के लिए 15 दिन का समय बढ़ाया जा सकता है। मास्टर प्लान पर चर्चा करते हुए महापौर ने कहा कि पर्यटक उदयपुर के हेरिटेज, झीलें आदि को देखने आते है; अत: निर्माण एवं सुधार में यहां का जो हेरिटेज लुक है उसे बनाये रखने की कोशिश की जानी चाहिए। शादी के गार्डन्स का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसकी जो व्यावहारिक कठिनार्इयां है उन्हें भी दृष्टिगत रखना चाहिए।

महापौर ने बताया कि विकेन्द्रीकरण की चर्चा तो हर स्तर पर की जाती है किन्तु 74वें संविधान संशोधन में जो शकितयां स्वायत शासन निकायों, नगर निगम को दी गयी है वे अब तक उनके पास नहीं है; तथा विकेन्द्रीकरण की बात थोथी है। महापौर ने उदयपुर में किये गये अपने कार्यों को भी बतलाया। उन्होंने विभागीय तालमेल के अभाव  का उदाहरण देते हुए बताया कि हम सड़क बनाते है और कोर्इ उसे खोद देता है जिसका पता मुझे या मेरे कार्यालय को नहीं है।

जिला आयोजना अधिकारी सुधीर दवे ने कहा कि जनसंख्या विस्तार से ज्यादा ग्रोथ शहरीकरण की है। उदयपुर में पिछले एक दशक में 200 प्रतिशत वाहनों की संख्या बढ़ी है। मास्टर प्लान में जनभागीदारी होनी चाहिए। और जनता इसे अपना प्लान माने वैसी संकल्पना बननी चाहिए। अध्यक्षता करते हुए विधाभवन के उपाध्यक्ष अजय एस. मेहता ने कहा कि शासन में नैतिक नेतृत्व होना चाहिए। 74वें संविधान संशोधन में प्रदत्त शक्तियां मिल भी जाए तब भी नैतिकता व मूल्यों का अभाव रहा तो लाभ नहीं मिलने वाला।

मेहता ने कहा कि शहरीकरण बढ़ने से शासन पर जो भार बढ़ रहा है उसमें नागरिक और नागरिक संस्थाएं किस तरह मददगार हों इस पर सोचने की जरूरत है। उन्होंने प्रश्न किया कि जिन सामान्य लोगों की बातें योजनाओं में की जाती है? क्या उनका योजना के निर्माण में गरिमामय भागीदारी सुनिशिचत की जा सकती है?

दो दिवसीय संगोष्ठी के संयोजक पालिटेकिनक महाविधालय के प्राचार्य अनिल मेहता ने संगोष्ठी की मुख्य सिफारिशे बतलाते हुए कहा कि

  • झीलों के संरक्षण : निर्माणों को रोकना लेकिन फतहसागर के किनारे कम्पनी विशेष को होटल बनाने की मंजुरी देना चिन्ताजनक है। बड़ी रोड़ पर सरकारी कार्यालय शिफ्ट करने से यातायात जन दबाव बढ़ेगा परिणामत: झीलों पर पर्यावरणीय संकट होगा।
  • छोटे तालाबों के संरक्षण का मास्टर प्लान में उल्लेख है लेकिन सभी छोटे तालाबों के नामों का उल्लेख नहीं है तथा छोटे तालाबों में पानी लाने व ले जाने वाले प्राकृतिक नालों का जिक्र नहीं है।
  • पहाडि़यों के संरक्षण के लिए मानचित्र पर पहाडि़यों का अंकन नहीं है।
  • भूजल की सिथति व टोपोग्राफी का सर्वेक्षण किये बिना प्लान बनाना उचित नहीं है।
  • सेटेलार्इट पशु चिकित्सालय बनने चाहिए मौजुदा पशु चिकित्सालय नहीं हटना चाहिए।
  • अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम बनाया जाए।
  • राष्ट्रीय आपदा विकास प्राधिकरण की अनुशंषाओं व कानूनी प्रावधानो का मास्टर प्लान में स्थान नहीं है।
  • शहर में मौजूदा लगभग 100 पार्कों में कर्इ कूड़ेदान बन गए है। इन्हें विकसित कर हरियाली बढ़ायी जाए। गुलाब बाग का स्वरूप नहीं बदले।
  • भूमाफियाओं के दबाव में आर.सी.ए. तथा विधाभवन से सड़कें नहीं निकाली जाए। गुलाब बाग, आर.सी.ए. एवं  विधाभवन शहर के आक्सीजन सिलेण्डर है।
  • आयड़ नदी के किनारे सुविकसित, व्यवसिथत शवदाह गृहों का निर्माण हो।
  • महाराणा भूपाल चिकित्सालय में ट्रोमा व आपात चिकित्सा वार्ड सबसे आगे हो ताकि मरीज सीधे पहुंच सके।
  • शहर का एक स्वरूप निशिचत हो। एक रंग के मकान हो और भवनों का बाहरी स्वरूप हेरिटज लुक लिए हों। सिवरेज व्यवस्था का पुख्ता प्रावधान होना चाहिए। सड़कों के किनारे पेड़ लगे। झीलों के प्राकृतिक किनारे समाप्त न हो इनकों बचाने के प्रावधान हो।
  • मास्टर प्लान में सम्मिलित गाँवों के लोगों की राय जानी जाए।
  • सिवरेज व्यवस्था का पुख्ता प्रावधान होना चाहिए।
  • सड़कों के किनारे पेड़ लगे। गाजरघास का उन्मूलन हो। झीलों के प्राकृतिक किनारे समाप्त न हो इनकों बचाने के प्रावधान हो।
  • वर्तमान में शहर में स्थिति जनसुविधाओं को अन्यत्र स्थानान्तरित नहीं किया जाए। नर्इ व अतिरिक्त सुविधाऐं विकसित की जाए।

राजस्थान आवास विकास लि. के प्रबंध निदेशक वी. के. दाधीच एवं जयपुर स्थित वरिष्ठ नगर नियोजक एस. के. विजयवर्गीय ने राजस्थान सरकार की अफोर्डेबल हाउसिंग पोलिसी के बारे में बतलाया। नगर के वरिष्ठ वास्तुविद बी.एल. मंत्री ने कहा कि मास्टर प्लान होता कुछ है और  क्रियान्वन में दिखता कुछ और है।

विधाभवन के अध्यक्ष रियाज तहसीन ने कहा कि टाउन प्लानर को दूरदृष्टि रखनी चाहिए। चर्चा में एस.के. वर्मा, डा. सतीश शर्मा, डा. आर.एम. लोढ़ा, एच.आर. भाटी, प्रो. आर.एस. राठौड़, अनिल नेपालिया, एस.एल. गोदावत, भंवर सेठ, आर.सी. कविया डा. अरूण जकारिया, डा. विनया पेण्डसे, प्रो. एम.पी. शर्मा तथा डा. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के नन्दकिशोर शर्मा ने भाग लिया। धन्यवाद विधाभवन सोसायटी के व्यवस्था सचिव एस.पी. गौड़ ने ज्ञापित किया।

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