फ्रंटियर इन सेल एण्ड माल्यूक्यूलर बायोलोजी विषयक दो दिवसीय कार्यशाला प्रारंभ
इंडियन इंस्टीटयूट आफ सार्इंस एज्यूकेशन व रिसर्च के वैज्ञानिक शशिधर ने कहा कि बदलते परिवेश में जीवन के हर क्षेत्र में वैज्ञानिक सोच की जरूरत है यह सिर्फ विज्ञान की प्रयोगशाला तक सीमित नहीं है। प्रशासकों, राजनीतिज्ञों को कहीं ज्यादा गंभीर वैज्ञानिक सोच व दृषिटकोण वाला होना जरूरी है क्योंकि अगर वो कोर्इ गलती करते हैं तो उसकी व्यापक हानि होती है।
इंडियन इंस्टीटयूट आफ सार्इंस एज्यूकेशन व रिसर्च के वैज्ञानिक शशिधर ने कहा कि बदलते परिवेश में जीवन के हर क्षेत्र में वैज्ञानिक सोच की जरूरत है यह सिर्फ विज्ञान की प्रयोगशाला तक सीमित नहीं है। प्रशासकों, राजनीतिज्ञों को कहीं ज्यादा गंभीर वैज्ञानिक सोच व दृषिटकोण वाला होना जरूरी है क्योंकि अगर वो कोर्इ गलती करते हैं तो उसकी व्यापक हानि होती है।
वैज्ञानिक शशिधर गुरूवार को विधा भवन सोसायटी एवं इंडियन नेशनल साइन्स एकेडमी द्वारा आयोजित फ्रंटियर इन सेल एण्ड माल्यूक्यूलर बायोलोजी विषयक दो दिवसीय कार्यशाला के प्रथम सत्र में बोल रहे थे। उन्होंने वैज्ञानिक सोच को परिभाषित करते हुए कहा कि सवाल करना, गहरार्इ से अलग-अलग पहलुओं पर सोचना, विश्लेषणात्मक एवं तार्किक होना वैज्ञानिक सोच हैं। शिक्षा में इन्हीं को बढ़ावा देना चाहिए।
भारत में 50 से 70 प्रतिशत विधार्थियों को विज्ञान में भागीदारी का अवसर नहीं मिलता। बावजूद इसके देश में विज्ञान और तकनीकी में जो प्रगति की है उससे प्रभावित होकर दुनिया के विभिन्न देश भारत में निवेश करना चाहते हैं। देश की आर्थिक प्रगति वैज्ञानिक सोच एवं विभिन्न समस्याओं की समाधान परक दृषिट पर निर्भर हैं।
शशिधर ने कहा कि वैज्ञानिक शोधों व प्रयोगों को संख्यात्मक एवं गुणात्मक दोनों रूप से बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने दावे से कहा कि मोबाइल तकनीकी विकास व उपयोग में भारत की सिथति दुनिया में तुलनात्मक रूप से बेहतर एवं सस्ती है।
शशिधर ने कहा कि देश में ज्ञान के उत्पादन व शोध की गुणवत्ता बढ़ाने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में उन्होंने सरकार की इंस्पायरयोजना की जानकारी दी। शशिधर ने कहा कि विधालयों व महाविधालयों में विधार्थियों की उनकी सोचने की प्रखरता के मापदण्ड पर मूल्यांकित किया जाना चाहिए, एक औपचारिक परीक्षा पद्धति पर आधारित मूल्यांकन वाले तरीके से नहीं। इसके लिए शिक्षक प्रशिक्षण की विधियों व प्रकि्रयाओं में सुधार एवं इसमें वैज्ञानिकों को जोड़ने की आवश्यकता है।
शशिधर ने जैव तकनीकी की उपयोगिता व फायदों का उल्लेख करते हुए कहा कि पहले मधुमेह के उपचार के लिए जरूरी इंसुलिन को बहुत से जानवरों को मारकर प्राप्त किया जाता था परंतु जैव प्रोधोगिकी ने इंसुलिन कुछ बेकिटरिया की मदद से डीएनए में परिवर्तन करके सस्ते व सुलभता से मुहैया करा दिया है।
नेशनल सेंटर फार बायलोजीकल सार्इंसेस की संस्था इन स्टेम के प्रो. आकाश गुलियानी ने कहा कि विज्ञान की किसी भी शाखा के विधार्थी सेल्यूलर बायोलोजी विषय से जुड़ कर अपना भविष्य बना सकते हैं। उन्होंने कहा कोशिकाओं की एक नियंत्रित एवं नियमित गति होती है और जब यह गति और व्यवस्था बिगड़ जाती है तो कैंसर जैसी बीमारियां होती है। उन्होंने चिकित्सा विज्ञान की खोज एमआरआर्इ जांच के बारे में कहा कि यह शरीर की कोशिकाओं की गति एवं वृद्धि के बारे में एक जासूस की तरह पुख्ता सूचना देती है।
प्रो. गुलियानी ने कहा कि डीएनए एक आनुवाशिक पदार्थ है और यह जीवन की संभावनाओं को बताता है। आरएनए एक संदेश वाहक होता है और अंतोत्गत्वा प्रोटिन एक हीरो की तरह शरीर में होने वाली सभी क्रियाओं पर नियंत्रण रखता है।
इंडियन इंस्टीटयूट आफ सार्इंस एज्यूकेशन एंड रिसर्च के उदयपुर निवासी प्रो. फरहत हबीब ने अपने सत्र को संबोधित करते हुए विज्ञान में डीएनए में होने वाली विभिन्न शोधों का तकनीकी रूप से उपयोगों पर प्रकाश डाला।
इससे पूर्व प्रारंभ में विधा भवन सोसायटी के अध्यक्ष रियाज तहसीन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विज्ञान में हो रहे परिवर्तनों पर प्रकाश डालते हुए आशा जतार्इ कि यह कार्यशाला दक्षिणी राजस्थान के विज्ञान, चिकित्सा, तकनीकी क्षेत्र के विधार्थियों, प्राध्यापकों, शोधकर्ताओं में एक समग्र दृषिटकोण विकसित करने में सहायता करेगी एवं केरियर के नए आयाम स्थापित करेगी। ।
कार्यशाला के दूसरे दिन 15 फरवरी को नोबल पुरूस्कार विजेता मार्टिन शाल्फी, लास्कर पुरूस्कार विजेता रौन वैले, कैलिफार्निया यूनिवर्सिटी की टूली हैसलिग, इस्पेन निवासी भारत के वैज्ञानिक विवेक मल्होत्रा, यूनिवर्सिटी आफ पिटसबर्ग के रिचर्ड लासिक एवं अन्य विभिन्न सत्रों को संबोधित करेंगे।
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