झीले-तालाब-पहाड़ नही बचाये तो उदयपुर बन जायेगा मरुस्थल


झीले-तालाब-पहाड़ नही बचाये तो उदयपुर बन जायेगा मरुस्थल

पिछोला झील के अमरकुण्ड क्षेत्र में झील प्रेमियों द्वारा श्रमदान कर झील क्षेत्र से भरी मात्रा में कूड़ा करकट, पॉलीथिन व शराब पानी की बोतले, नारियल, सडी गली खाद्य सामग्री, मरे हुए परिंदे तथा जलीय खरपतवार निकाली गई। श्रमदान में मोहन सिंह चौहान, पल्लव दत्ता, राम लाल गहलोत, दुर्गा शंकर पुरोहित, द्रुपद सिंह, विनोद पालीवाल, केशव कांत, अनूप, मधु सूदन, तेज शंकर पालीवाल, डॉ अनिल मेहता व नन्द किशोर शर्मा ने भाग लिया।

 
झीले-तालाब-पहाड़ नही बचाये तो उदयपुर बन जायेगा मरुस्थल

पिछोला झील के अमरकुण्ड क्षेत्र में झील प्रेमियों द्वारा श्रमदान कर झील क्षेत्र से भरी मात्रा में कूड़ा करकट, पॉलीथिन व शराब पानी की बोतले, नारियल, सडी गली खाद्य सामग्री, मरे हुए परिंदे तथा जलीय खरपतवार निकाली गई। श्रमदान में मोहन सिंह चौहान, पल्लव दत्ता, राम लाल गहलोत, दुर्गा शंकर पुरोहित, द्रुपद सिंह, विनोद पालीवाल, केशव कांत, अनूप, मधु सूदन, तेज शंकर पालीवाल, डॉ अनिल मेहता व नन्द किशोर शर्मा ने भाग लिया।

श्रमदान पश्चात आयोजित संवाद में सीवर मैनहोल के लीकेज व झरिया मार्ग से बर्बाद होते पानी पर पुनः चिंता व्यक्त की गई। स्थानीय जलवायु संतुलन में झीलों तालाबों की भूमिका पर विचार विमर्श किया गया।

जल विज्ञानी डॉ अनिल मेहता ने कहा कि उदयपुर घाटी में तापक्रम नियंत्रण व खुशनुमा मौसम के लिए तालाबो – झीलों का होना जरूरी है। ये तालाब झीले नष्ट हुए या सिकुड़ते रहे तो उदयपुर मरुस्थल व असहनीय गर्मी का क्षेत्र बन जायेगा। साथ ही पहाड़ियों को कटने से बचाते हुए उन पर जंगल विकसित करना चाहिए।

झील प्राधिकरण के सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि झील तालाब को बचाने के साथ ही उनसे पानी की बर्बादी को भी रोकना होगा। स्वरुप सागर पाल झरिया मार्ग, मीट मार्केट व खटीक समाज के मंदिर से निकाल कर लाखों लीटर तालाब का पानी सिवर लाईन में मिलकर बरबाद हो रहा है। पुर्व काल में यह पानी कच्चे नाले में बहकर भू जल भरण करता था। अब यह पानी सिवर लाईन में मिलकर बरबाद हो रहा है। झीलों में अब देवास का पानी भी आता है। यह पानी बारह माह बहकर बरबाद होगा नगर निगम को चाहिए कि इन तीनो जगह के पानी को मिलाकर प्राकृतिक प्रवाह से सार्वजनिक चिकित्सालय में पेड़ पोधो की सिंचाई व अन्य कार्य में उपयोग किया जाय। इन्ही तीनों जगह के पानी से बिना बिजली खर्च किए देहली गेट के फव्वारे भी चल सकते है।

गांधी मानव कल्याण सोसायटी के निदेशक नन्द किशोर शर्मा ने कहा कि शहर की झीले शहर की बड़ी आबादी की आजीविका व पेयजल् का स्त्रोत है। इन्हें छोटा करने व डस्टबीन बनाने की आदत से निजात पानी होगी।

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