उदयपुर को बंजर धरती व बंजर इंसानों का शहर बनने से रोकना होगा
पेड़, पहाड़, जंगल, झील, तालाब, पशु, पक्षी व समस्त जलीय जीव हमारे स्वस्थ व समृद्ध जीवन के आधार हैं। इनको समाप्त कर हम स्वयं का वर्तमान व भविष्य संकट में डाल रहे हैं। यह विचार विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर झील मित्र संस्थान, झील संरक्षण समिति व गांधी मानव कल्याण सोसाइटी द्वारा आयोजित संवाद में व्यक्त किये गए।
उदयपुर, 28 जुलाई 2019, पेड़, पहाड़, जंगल, झील, तालाब, पशु, पक्षी व समस्त जलीय जीव हमारे स्वस्थ व समृद्ध जीवन के आधार हैं। इनको समाप्त कर हम स्वयं का वर्तमान व भविष्य संकट में डाल रहे हैं। यह विचार विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर झील मित्र संस्थान, झील संरक्षण समिति व गांधी मानव कल्याण सोसाइटी द्वारा आयोजित संवाद में व्यक्त किये गए।
डॉ अनिल मेहता ने कहा कि पॉलीथिन व प्लास्टिक से हवा, पानी, मिट्टी सब प्रदूषित हो रहे हैं। उदयपुर के पानी व मिट्टी में यह प्रदूषण खतरनाक सीमा तक है। वंही पानी मे दवाइयां व अन्य विषैले रासायनिक तत्व घुल रहे हैं। यदि यह नियंत्रित नही हुआ तो यह शहर बंजर धरती व बंजर इंसानों का शहर बन जायेगा।
तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि सीवरेज की गंदगी से झील जल व भूजल, दोनों प्रदूषित हैं। झीलों से मछलियों की कई प्रजातियां खत्म हो गई है। यह एक गंभीर संकट है। उदयपुर की झीलों में मछ्ली प्रजातियों की विविधता को पुनः स्थापित करना जरूरी है।
नंदकिशोर शर्मा ने कहा कि उदयपुर व आसपास पहाड़ों की कटाई को रोकना जरूरी है। पहाड़ो के बचने से ही उदयपुर अनेक प्राकृतिक विपदाओं से बचा रह सकता है। द्रुपद सिंह व कुशल रावल ने कहा कि उदयपुर की जल व्यवस्था को बनाये रखने वाले व मौसम अनुकूलन करने वाले छोटे तालाबों को बचाना बहुत जरूरी है।
रमेश चंद्र राजपूत, रामलाल गहलोत व कृष्णा कोष्ठी ने कहा कि झीलों व आयड़ नदी के किनारों पर सड़के व भवन बनाने से देशी व प्रवासी पक्षियों के आवास खत्म हो रहे है। इस अवसर पर झील स्वच्छता श्रमदान का भी आयोजन हुआ।
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