उदयपुर को खल रही गोताखोरों की कमी
लेकसिटी उदयपुर को भले ही झीलों के शहर के नाम से जाना जाता हो और इन झीलों में समय समय पर दुर्घटनाओं के होने के बाद भी उदयपुर में अब तक स्थायी गोताखोरों की नियुक्ति नहीं की गई है। आज भी शहर की झीलों या तालाबों में किसी के डुबने पर पुश्तेनी गोताखोरों की ही सहायता ली जाती है।
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लेकसिटी उदयपुर को भले ही झीलों के शहर के नाम से जाना जाता हो और इन झीलों में समय समय पर दुर्घटनाओं के होने के बाद भी उदयपुर में अब तक स्थायी गोताखोरों की नियुक्ति नहीं की गई है। आज भी शहर की झीलों या तालाबों में किसी के डुबने पर पुश्तेनी गोताखोरों की ही सहायता ली जाती है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने बजट के दौरान प्रत्येक संभाग मुख्यालयों पर 10-10 गोताखोरों की नियुक्ति करने की घोषणा की थी, जो महज अब कागजों तक ही सीमित रह गई है, ना तो उस पर भर्ती प्रकिया प्रारम्भ की गई है और ना ही किसी प्रकार की कोई व्यवस्था की गई है।
नगर निगम व प्रशासन के द्वारा अब तक अस्थाई काम कर रहे गोताखोरों को आवश्यक संसाधन भी उपलब्ध नहीं करवाये गये हैं। संसाधनो की कमी के चलते इन अस्थाई गोताखोरों को डुबे हुये व्यक्ति को ढुंढने में काफी वक्त लगता है।
वर्तमान में अस्थाई रूप से गोताखोरी का कार्य कर रहे प्रतिनिधि मण्डल ने गुरूवार को नगर निगम आयुक्त सत्यनारायण आचार्य से मुलाकात की। मुलाकात के दौरान निगम द्वारा गोताखोरो की भर्ती को शीघ्र करवाने की मांग की। अस्थाई रूप से कार्यरत गोताखोरों को आवश्यक साधन उपलब्ध कराने की मांग भी की गई।
इस दौरान आयुक्त सत्यनारायण आचार्य ने शहर के लिए गोताखोरों की भर्ती को आवश्यक बताया। राज्य सरकार को इस अवाश्यकता पर पत्र लिखने की बात कही और जल्द ही स्थाई गोताखरों की नियुक्ति की उम्मीद जताई।
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