पिछोला में बैक्टिरिया को जमा करनेवाली क्लेडोफोरा खरपतवार की अप्रत्याशित वृद्धि
चांदपोल नागरिक समिति, झील संरक्षण समिति व डॉ मोहन सिंह मेमोरियल ट्रस्ट की और से रविवार को पिछोला पूर्वी छोर पर श्रमदान का आयोजन किया गया। बी एन कॉलेज की वैज्ञानिक डॉ प्रवीणा राठोड ने झील में भारी मात्रा में फैल रहे खरपतवारो का नमूना लिया तथा प्रयोगशाला मे
चांदपोल नागरिक समिति, झील संरक्षण समिति व डॉ मोहन सिंह मेमोरियल ट्रस्ट की और से रविवार को पिछोला पूर्वी छोर पर श्रमदान का आयोजन किया गया। बी एन कॉलेज की वैज्ञानिक डॉ प्रवीणा राठोड ने झील में भारी मात्रा में फैल रहे खरपतवारो का नमूना लिया तथा प्रयोगशाला में परीक्षण किया।
इस अवसर पर झील से पोलिथिन, प्लास्टिक,मांस के सड़े टुकड़े, सब्जिया, शराब की बोतले, पुराने कपडे, घरेलु कचरा , हवन पूजन सामग्री , नारियल व जलीय घास निकाली गयी। श्रमदान में दीपेश स्वर्णकार,रमेश चन्द्र राजपूत,मोहन सिंह चौहान, रामलाल गेहलोत ,अम्बालाल नकवाल ,राजू हेला ,कैलाश खटीक,मदन गमेती , तेज शंकर पालीवाल , अनिल मेहता , नन्द किशोर शर्मा सहित कई नागरिको ने भाग लिया।
वैज्ञानिक डॉ प्रवीणा राठोड ने बताया कि झील में मुख्य रूप से क्लोरेला ,क्लेमाईडोमोनास , हाईड्रेला ,वेलिसनेरिया की मौजूदगी है। लेकिन क्लेडोफोरा तथा कारा जलीय घासों का फैलाव झील तंत्र एवं मानव स्वास्थ्य के लिए खतरे का सूचक है। इनकी मौजूदगी जीवाणुओ , विषाणुओं व कृमियों का सूचक है।
चांदपोल नागरिक समिति के तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि क्लेडोफोरा तथा कारा घास घाटो के किनारो पर बहुतायत में हो गयी है। इनका फैलाव विगत एक वर्ष में बहुत ज्यादा हुआ है। पहले इतनी मात्रा में इन घासों को कभी नहीं देखा गया है। पिछोला के पूर्वी व पश्चिमी किनारो पर जलीय खरपतवार तापक्रम साथ और बढ़ेगी तथा खतरा पैदा करेगी। खरपतवार काटने वाली डिविडिंग मशीन इन्हे निकालने में पूरी तरह से नाकारा व अनुपयोगी है।
झील संरक्षण समिति के अनिल मेहता ने कहा कि क्लेडोफोरा एलगी तथा कारा घासे झील में भारी मात्रा में जा रहे मलमूत्र , डिटर्जेंट व कार्बनिक गन्दगी के कारण पनप रही है। क्लेडोफोरा पर पेट व आंत की बीमारिया,टायफाईड इत्यादि पैदा करने वाले जीवाणु करोडो अरबो की तादात में इकठ्ठा रहते है। इन घासों के बीच नहा रहे तथा नहाते वक़्त मुह में पानी ले रहे लोगो का स्वास्थ्य गंभीर खतरे में है।
डॉ मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के सचिव नन्द किशोर शर्मा ने कहा कि खतरनाक बनती जा रही इन खरपतवारो का यांत्रिक व जैविक विधि से नियंत्रण जरुरी है। झीलों में गन्दगी के विसर्जन पर रोकथाम के साथ ही ग्रासकार्प नामक मछली को छोड़ने से इन घासों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
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