अटल जी के सानिध्य में अविस्मरणीय क्षण
राजनीति के शिखर पुरूष भारत अटल बिहारी वाजपेयी के सानिध्य के क्षण मेरे जीवन के अविस्मरणीय क्षण थे। उनकी सहजता आत्मीयता व सहृदयता से मैं अभिभूत हूँ। ऐसे कुछ संस्मरण आज भी मुझे रोमांचित कर देते है।
राजनीति के शिखर पुरूष भारत अटल बिहारी वाजपेयी के सानिध्य के क्षण मेरे जीवन के अविस्मरणीय क्षण थे। उनकी सहजता आत्मीयता व सहृदयता से मैं अभिभूत हूँ। ऐसे कुछ संस्मरण आज भी मुझे रोमांचित कर देते है।
हवाई अड्डे का नामकरण:-
प्रातःस्मरणीय महाराणा प्रताप के 400वें पुण्यतिथि वर्ष के अवसर पर 19 जनवरी 1997 मा. अटल जी चावण्ड में कार्यक्रम के निमित्त आये थे। वहां पुल के लोकार्पण अवसर पर मैनें अपने साथी पार्षद मनोहर चौधरी के साथ उनसे मुलाकात कर महाराणा प्रताप की स्मृति में उदयपुर के डबोक हवाई अड्डे का नामकरण ‘महाराणा प्रताप हवाई अड्डा’ करने का अनुरोध किया और इस सम्बन्ध में अनुरोध पत्र सौपा।
अटल जी ने गंभीरतापूर्वक बात सुने के बाद कहा अभी हम सरकार से बाहर है, हमसें क्या अपेक्षा है।’’ मैंने निवेदन किया आप इस सम्बन्ध में प्रधानमंत्री आई.के. गुजराल व नागरिक उड्डयन मंत्री सी.एम. इब्राहिम को अपना पत्र भिजवा देवें, तो कृपा होगी मा. अटल जी ने कहा कि बस इतनी सी बात में पत्र भिजवाकर प्रति भी तुम्हे भिजवा दूंगा।
उन्होंने अपना वादा निभाया, कुछ ही दिनों में मनोहर चौधरी के पते पर अटल जी के पत्र की प्रति मिली, जो उन्होने सरकार को भेजी थी। फलस्वरूप केन्द्रीय मंत्रीमण्डल में जून 1997 में उदयपुर के डबोक हवाई अड्डे का नामकरण ‘महाराणा प्रताप हवाई अड्डा’ करने का निर्णय लिया।
अटल जी से साक्षात्कार:-
बात दिसम्बर 1996 की है, जब मैं जय राजस्थान दैनिक में संवाददाता था। अटल जी वर्षान्त की छुट्टियाँ बिताने उदयपुर आये थे। पुनः दिल्ली रवाना होते समय मैं, प्रातःकाल दैनिक के वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश शर्मा व छायाकार जुल्फीकार अली तत्कालीन सभापति किरण माहेश्वरी के द्वारा साक्षात्कार का अनुरोध किया, वे तुरन्त तैयार हो गये।
अटल जी ने कहा ‘भाई मैं भी बुनियादी तौर पर पत्रकार हूँ, आपसे बातचीत क्यों नहीं? अटल जी के साक्षात्कार प्रकाशन से मुझे बहुत लोगों की बधाईयाँ मिली।
वो मीठी झिड़की – बात तब की है, जब मैं स्कूली विद्यार्थी था। 1986 में अकाल राहत कार्यों का जायजा लेने उदयपुर जिले के दौरे पर आये। दिन भर दौरे के बाद रात्रि को बापू बाजार बैंक तिराहे पर उन्होने आमसभा ली। रात्रि विश्राम सर्किट हाऊस में था। मैंने तय किया प्रातः सर्किट हाऊस जाकर अटल जी को माला पहनानी चाहिये। इस बहाने कमसे कम उनके पास जाने का अवसर तो मिलेगा। मैं माला लेकर सर्किट हाउस पहुँचा।
स्वागत कक्ष से कमरा नम्बर पूछकर कमरे तक चला गया। चाय लेकर कमरे में जाते वेटर के साथ मैंेने नाम की पर्ची भेजी, अटल जी ने इन्तजार करने का संदेश भिजवा दिया। काफी देर तक इंतजार के बाद मेरे बाल सुलभ मन में विचार आया, शायद में भूल गये हो। उत्साह के अतिरेक मैं मुझे सामान्य शिष्टाचार का निर्वाह करने में असावधानी हो गयी। किसी विशिष्ट व्यक्ति से व्यक्तिशः मिलने का मेरा पहला अवसर था।
मैने बिना दरवाजा खटखटाये अटल जी के कमरे का दरवाजा खोल दिया। अटल जी ने चौंककर कहा – कौन? मैनें सहजता से कहा मैं कब से बाहर प्रतीक्षा कर रहा हूँ। अटल जी की नाराजगी स्वाभाविक थी। उन्होंने कहा कैसे कार्यकर्ता हो, अन्दर आने से पहले पूछ भी नहीं सकते। अटल जी की चढ़ी त्यौरी देखकर मैं सकपका गया। मैं उल्टे पाव बाहर लौट आया। मै, निराश भाव से कमरे के बाहर गलियारे में लगी बैंच पर माला हाथ में लिये बैठा था।
तभी पास के कमरे से वरिष्ठ नेता मा. ललित किशोर चतुर्वेदी बाहर निकले, मुझे पूछा कैसे बैठे हो। मैनें कहा अटलजी से मिलने आया हूँ। ललित जी बाहर ही माला पहना दूंगा। ललित जी ने कहा तुम मेरे साथ चलो मैं मिलवाता हूँ। एक बार मुझे फिर कमरे में देखकर अटल जी मुस्कुराये बिना नहीं रहे। कहा-ललित जी को साथ लाये हो। अब ललित जी आश्चर्यचकित उन्हें कुछ माजरा समझ नहीं आया, तो अटल जी ने कहा – ललित जी, ये जवान सुबह से धरना दिये बैठा है पता नहीं इसे क्या चाहिये?
मैंने मात्र आपका आशीर्वाद’ कहते हुए माला अटल जी को पहना दी और चरण छूए’। उन्होनें मेरा नाम पूछा। फिर अटल जी अपनी चिर परिचित मुद्रा में आ गये एक तो विजय ओर विप्लवी भी।
कार्यकर्ता की साधारण जीप में ही बैठे रहे –
सन् 1991 के लोकसभा चुनाव में अटल जी उदयपुर में आमसभा सम्बोधित करने आये। पार्टी ने जिन पदाधिकारियों को अटल जी को हवाई अड्डे से लाने की जिम्मेदारी दी, वो समय पर नहीं पहुंचे। वहां मौजूद डबोक के कार्यकर्ता शंकरलाल पालीवाल ने उनका स्वागत किया और उन्हें अपनी साधारण जीप से ही उदयपुर चलने का आग्रह किया।
अटल जी जीप में बैठे ही थे, तभी जिम्मेदार पदाधिकारी मंहगी कारें लेकर पहुंचे और कार में बैठने का आग्रह किया। अटल जी ने साफ मना कर दियां उन्होंने कहा सबसे पहले इसने मेरा स्वागत करके जीप में बिठाया, अब जीप से नहीं उतरूगा। ऐसे सर्वस्पर्शी जीवन के कारण अटलजी कार्यकर्ताओं के हृदय सम्राट बने।
हे शिखर। हे पूर्णकाम। सबके प्रणम्य, आपको प्रमाण।। हे राष्ट्र के, तारणहार। आपको वन्दन , बार-बार।।
-विजय प्रकाश विप्लवी
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