उदयपुर 11 मार्च 2025 । झीलों की नगरी उदयपुर के आयड़ क्षेत्र में हर साल आंवला एकादशी के मौके पर मटकियों का अनोखा मेला आयोजित किया जाता है। इस ऐतिहासिक मेले की शुरुआत महाराणा संग्राम सिंह के समय हुई थी और अब इसे 300 से अधिक वर्ष हो चुके हैं। माना जाता है कि इस मेले के बाद ही मेवाड़ में गर्मियों की शुरुआत होती है। इस मेले में मिट्टी की मटकियों की खास खरीदारी होती है।
उदयपुर संभाग के विभिन्न इलाकों से लोग मिट्टी से बनी पारंपरिक वस्तुएं खरीदने के लिए आते हैं। इनमें मटकियां, हंडिया, दही जमाने के बर्तन, मिट्टी के तवे और बोतलें शामिल हैं। खासतौर पर इन पारंपरिक उत्पादों को गर्मियों में इस्तेमाल करने की परंपरा है, जिससे इनकी मांग काफी ज्यादा रहती है।
सर्दियों में बनाई जाती हैं मटकियां
मेले में मिट्टी के बर्तन बेचने आए कुम्हार महेंद्र ने बताया कि ये मटकियां सर्दियों में तैयार की जाती हैं और इस मेले के लिए विशेष रूप से सहेजकर रखी जाती हैं। सालभर की मेहनत के बाद कुम्हार इस मेले में अपना स्टॉक बेचने आते हैं।
हर साल यहां से ही खरीदारी करती हैं महिलाएं
मेले में पहुंची महिला लीला ने बताया कि वह हर साल यहीं से मटकियां खरीदती हैं। उन्होंने कहा "इस मेले की मिट्टी की मटकियां बेहद टिकाऊ और पानी को ठंडा रखने में बेहतरीन होती हैं।
परंपरा और संस्कृति से जुड़ा यह मटका मेला मेवाड़ की परंपरा और संस्कृति से गहराई से जुड़ा हुआ है। आंवला एकादशी के दिन इसे लगाने के पीछे धार्मिक मान्यता भी है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन से गर्मियों की शुरुआत होती है, इसलिए लोग मिट्टी के बर्तनों की खरीदारी कर घरों में उनका उपयोग शुरू करते हैं। यह ऐतिहासिक मटका मेला न केवल व्यापार का केंद्र है, बल्कि मेवाड़ की परंपराओं और संस्कृति को जीवित रखने का भी एक जरिया है। उदयपुर के लोग इसे अपनी आस्था और परंपरा से जोड़कर मनाते हैं, जिससे यह मेला हर साल और भी भव्य होता जा रहा है।
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