हम भी आदि हो गए हैं गंदगी, गरीबी और गुंडई के
38वीं ऑल इंडिया सोशियोलॉजिकल कांफ्रेंस में हिस्सा ले रहे समाज वैज्ञानिकों ने माना है कि समाज में बदलाव के पीछे कोई न कोई कारण जरुर है। जो हमारे लिए जरुरी भी है, और हटाना भी जरुरी है। कंटेम्पररी इंडियन सोसायटी : चैलेंज एंड रिस्पांस विषय पर जारी इस कांफ्रेंस के दूसरे एक साथ 24 से अधिक कमरों में तीन तकनीकी सत्रों में 400 पेपर पढ़े गए।
38वीं ऑल इंडिया सोशियोलॉजिकल कांफ्रेंस में हिस्सा ले रहे समाज वैज्ञानिकों ने माना है कि समाज में बदलाव के पीछे कोई न कोई कारण जरुर है। जो हमारे लिए जरुरी भी है, और हटाना भी जरुरी है। कंटेम्पररी इंडियन सोसायटी : चैलेंज एंड रिस्पांस विषय पर जारी इस कांफ्रेंस के दूसरे एक साथ 24 से अधिक कमरों में तीन तकनीकी सत्रों में 400 पेपर पढ़े गए।
“अन्ना हजारे ने जब रिश्वतखोरी के खिलाफ झंडा उठाय तो उन्हें मालूम नहीं था कि हममें से हर कोई रिश्वतखोर है। फिर कौन, किसे, कैसे पकड़ेगा। अन्ना की नजर रिश्वतखोरी खत्म करने पर थी ही नहीं, वे तो रिश्वतखोरों को पकडऩे की बात कर रहे थे”- यह निष्कर्ष निकाले हैं देश भर के समाजशास्त्रीयों ने।
बढ़ी है भावनात्मक दूरियां
कानोरिया पीपी महिला कॉलेज जयपुर की कांता मीणा ने बताया कि आज आधुनिकीकरण एवं वैश्विकरण की प्रक्रियाओं ने जनजातिय विकास की अवधारणा को न केवल विस्तार दिया है, परंतु विवादास्पद भी बनाया है। जहां एक तरफ विकास ने मानव जीवन में गुणात्मक परिवर्तन किए हैं, वहीं जनजातिय लोगों के बीच भावनात्मक दूरियां भी बढ़ाई है। सूचना क्रांति के इस युग ने संचार माध्यमों ने भौगोलिक दूरियां तो समाप्त कर दी है, लेकिन भवनात्मक दूरियां बढ़ा दी है।
खुद को अति पिछड़ा घोषित किया
सुविवि के रिसर्च स्कॉलर वर्दीचंद इरवल कहते है कि वर्तमान में विभिन्न प्रकार की सुविधाएं प्राप्त करने के लिए जातियां मजबूत होती दिख रही है। अखिल भारतीय स्तर पर अधिकतर जातियों ने अपने जातीय संगठनों का निर्माण किया है। जिनकी राज्य, जिले व तहसील स्तर पर विभिन्न शाखाएं हैं। इन संगठनों के माध्यम से जातियों के सदस्य परस्पर संपर्क में रहते हैं तथा अपनी जातियों को मजबूती प्रदान करते हैं। लोक सभा, विधानसभा या पंचायत चुनाव हो जातियां शक्ति प्रदर्शन कर अपने अधिक से अधिक सदस्यों को टिकट दिलवाती है। आरक्षण प्राप्त करने के लिए जातियां अपने आप को अति पिछड़ी घोषित कर देती हैं।
एकल परिवार में बंटे किसान
मुजफ्फरनगर विवि के रणवीर कुमार कहते है कि श्रम की बचत करने की मशीनों के प्रयोग से व्यक्ति को कृषि कार्यों में व्यक्तियों के सहयोग की आवश्यकता नहीं पड़ती। साथ ही मशीनों के प्रयोग से कृषि कार्यों से कम व्यक्तियों की आवश्यकता ने संयुक्त के बजाए एकल परिवारों के महत्व को बढ़ाया है। पहले कृषि कार्यों के ठीक से संचालन के लिए अन्य व्यक्तियेां के सहयोग की आवश्यता पड़ती थी। जिससे ग्रामों में सामूहिकता का महत्व बना हुआ था। अब श्रम की बचत करने की मशीनों के प्रयोग से व्यक्ति को कृषि कार्यों में व्यक्तियों के सहयोग की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
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