जो करो, प्रज्ञा की तुला पर पहले तोलो


जो करो, प्रज्ञा की तुला पर पहले तोलो

यह सत्य है जीवन जीने के लिये अनेक साधनों की जरूरत पड़ती है,लेकिन किस प्रकार के साधन अपना रहे है, इस पर अवश्य चिंतन होना चाहिये। विश्व में अनन्त वस्तुएं है किन्तु वे सभी वे सभी उपयोगी नहीं होती न ही वे सभी हमें प्राप्त होती है। जो प्राप्त है उनमें भी सभी हित स्वरूप नही हो सकती। उनकी भी समीक्षा होनी चाहिये।

 

यह सत्य है जीवन जीने के लिये अनेक साधनों की जरूरत पड़ती है,लेकिन किस प्रकार के साधन अपना रहे है, इस पर अवश्य चिंतन होना चाहिये। विश्व में अनन्त वस्तुएं है किन्तु वे सभी वे सभी उपयोगी नहीं होती न ही वे सभी हमें प्राप्त होती है। जो प्राप्त है उनमें भी सभी हित स्वरूप नही हो सकती। उनकी भी समीक्षा होनी चाहिये।

उक्त विचार श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने पंचायती नोहरा में आयोजित विशाल धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये। मुनि ने बताया कि आज जन जीवन में जितनी व्याधियंां और विडम्बनाएं व्याप्त है उनके पीछे मानव का अविचारित उपयोग है। किसी वस्तु को प्राप्त करने का मानव मन में एक आवेग होता है कभी कभी आवेग इतना तीव्र हो जाता है कि व्यक्ति अपने देह के सामाथ्र्य को भी भूलकर प्राप्य वस्तु को पालना चाहता है। परिणाम क्या होगा वह सोचता नही।

मुनि ने बताया कि जब भारतीय संस्कृति भौतिकता और अध्यात्म चरम पर थी तब पाश्चात्य संस्कृतियों का कोई अस्तित्व भी नही था। मानव पशु की तरह जी रहे थे। सामूहिकता के साथ जीने की पद्धति पश्चिम में बड़ी देरी से प्रकाश में आई। भारतीय संस्कृति पूर्ण विकसित है। संगोपान सिद्धान्तों से परिमंडल और संपुष्ट है। कार्यक्रम का संचालन मंत्री हिम्मत बड़ाला ने किया व स्वागत अध्यक्ष वीरेन्द्र कुमार डंागंी ने किया।

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