बुरी संगत हो चाहे बुरा काम हो नतीजा दोनों का एक ही होता है बुरा


बुरी संगत हो चाहे बुरा काम हो नतीजा दोनों का एक ही होता है बुरा

बुरी संगत हो चाहे बुरा काम हो नतीजा दोनों का एक ही होता है बुरा। जैसा बोएंगे वैसा ही काटेंगे। माता- पिता को चाहिये कि बच्चों मेें बचपन से ही अच्छे संस्कार का बीजारोपण करना चाहिये। बाल्यावस्था में बच्चों की हर हरकत पर मा- पिता को नजर रखनी चाहिये। क्योंकि बचपन ही वह उम्र होती है उसमें बच्चे को जिधर ढालना चाहे ढल जाता है। अगर वह बुरी संगत में पड़ गया तो समझो फिर उसका जीवन ही बिगड़ गया। इसलिए यह माता- पिता का दायित्व होता है कि उसमें बचपन से ही अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करें। बच्चे का मतल

 
बुरी संगत हो चाहे बुरा काम हो नतीजा दोनों का एक ही होता है बुरा

बुरी संगत हो चाहे बुरा काम हो नतीजा दोनों का एक ही होता है बुरा। जैसा बोएंगे वैसा ही काटेंगे। माता- पिता को चाहिये कि बच्चों मेें बचपन से ही अच्छे संस्कार का बीजारोपण करना चाहिये। बाल्यावस्था में बच्चों की हर हरकत पर मा- पिता को नजर रखनी चाहिये। क्योंकि बचपन ही वह उम्र होती है उसमें बच्चे को जिधर ढालना चाहे ढल जाता है। अगर वह बुरी संगत में पड़ गया तो समझो फिर उसका जीवन ही बिगड़ गया। इसलिए यह माता- पिता का दायित्व होता है कि उसमें बचपन से ही अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करें। बच्चे का मतलब ही होता है बचाना। सिर्फ उसके बचपन को या उसे हर तरह की बीमारियों से बचाना ही नहीं उसे बुरी संगत और गतल संस्कारों से भी बचाना है। आज अच्छी संगत के अभाव में कई युवा सद्मार्गी के बजाए उन्मार्गी ज्यादा बनते जा रहे हैं। उक्त विचार आचार्य सुनीलसागरजी महाराज ने गुरूवार को हुमड़ भवन में आयोजित प्रात:कालीन धर्मसभा में उपस्थित श्रावकों के समक्ष व्यक्त किये।

आचार्यश्री ने कहा कि ऐसा नहीं है कि बचपन में बच्चों को अच्छे संस्कार दो और बुरी संगति से बचाओ तो वह बच्चा बड़ा होकर के संस्कारवान और श्रेष्ठजन ही बन कर रहेगा। कई बार बड़े होने के बाद भी गलत दोस्तों की संगत के कारण वह कई तरह के अनैतिक कामों में लिप्त हो जाता है। ऐसा होने पर सिर्फ उसका जीवन ही खराब नहीं होता है, सारा परिवार दुखी हो जाता है। उसकी गलत आदतें चाहे कोई नशा हो या कोई और गन्दी आदत उसे छुड़ाने में या उसका इलाज कराने में घर- बार तक बिक जाते हैं। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि जब गुटखे तम्बाकू और सिगरेट के पैकेट पर साफ लिखा होता है कि यह खाने से या इसके पीने से कैंसर हो सकता है तो फिर युवा उसे खाते क्यों हैं। समझदार होने के बाद तो ऐसी चीजों से तो बचना चाहिये।

आचार्यश्री ने कहा कि अगर आप साधु की संगत में आएंगे तो यह तो निश्चित है कि आप अच्छी बातें ही लेकर जाएंगे और एकआध गुन्दी आदत का त्याग करने का संकल्प ही लेकर जाएंगे। बुरे व्यक्ति की संगत में रहेंगे तो एक दो गन्दी आदतें निश्चत तौर पर आपमें भी आ जाएंगी जो कि जीवन ही खराब करेगी। उन्होंने कहा कि एक पत्थर मन्दिर में लगता है तो उसकी पूजा होती है और वही पत्थर बाथरूम में लगता है तो क्या होता है। अच्छा बनने के लिए साधु- सन्त, गुरू जैसे अच्छे लोगों के पास जाना पड़ता है, उन्हें ढूंढना पड़ता है और उनसे ज्ञानार्जन करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। अग्रि को भी जब लोहे की संगत मिलती है तो उसे भी पिटना ही पड़ता है। इसलिए अच्छे बनो, नेक बनो जिससे खुद का जीवन तो सुधरेगा ही आपका परिवार भी सुखी रहेगा।

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