'आडावळ' राजस्थान साहित्य महोत्सव का शुभारंभ

'आडावळ' राजस्थान साहित्य महोत्सव का शुभारंभ

सरकार की आवाज, राजस्थानी भाषा की मान्यता के साथ

 
'आडावळ' राजस्थान साहित्य महोत्सव का शुभारंभ
राजस्थानी भाषा की मान्यता के साथ मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने किया शुभारंभ

राजस्थान की विरासत सभ्यता, संस्कृति को पूरी दुनिया मानती है, अपनी जिम्मेदारी उस परंपरा को जिंदा रखने की है। उक्त विचार 'आडावळ' राजस्थान साहित्य महोत्सव के उद्घाटन अवसर पर सरकार के कबीना मंत्री एवं उदयपुर के प्रभारी मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने कही। मंत्री खाचरियावास ने समारोह की वर्चुअल शुरुआत करी ।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजस्थान फाउंडेशन के चेयरमैन धीरज श्रीवास्तव ने कहा कि राजस्थान की संस्कृति में अनेक रंग है तथा अशोक गहलोत जी की सरकार राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता एवं राजस्थानी सिनेमा के विकास हेतु सहयोग तथा निरंतर प्रयासरत है।

'आडावळ' के निदेशक डॉ शिवदान सिंह जोलावास ने महोत्सव की संकल्पना पर विचार रखते हुए बताया कि 10 करोड़ कंठो की आवाज बनने का सपना लेकर 'आडावळ' खड़ा हुआ है।  'आडावळ' जैसे कार्यक्रम आने वाली पीढ़ी के लिए मार्गदर्शन का काम करेंगे। बीज भाषण के रूप में ज़ी टीवी स्टेट हेड मनोज माथुर ने कहा, राजस्थानी के कार्यक्रम सबसे ज्यादा लोकप्रिय होते हैं। इनकी माँग मीडियो को समझते हुए समाचार प्रकाशन और प्रसारण करना चाहिये ।

'बंतळ' सत्र में मुंबई से निशांत भारद्वाज ने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में भी 'आडावळ' इस लड़ाई को लड़ रहा है। उन्होंने राजस्थानी सिनेमा के लिए सरकार से अपेक्षाओं को रखा। उन्होंने कहा कि प्रदेश के बाहर गया आदमी अपनी भाषा बोलता है, लेकिन हम यहां रहकर इसे नजरअंदाज कर रहे हैं। इससे आने वाली पीढ़ी के लिए नुकसान होगा। राजस्थानी की लोक कला के महत्वपूर्ण पक्ष को एनएसडी के पूर्व निदेशक डॉ अर्जुन देव चारण ने रखा, उन्होंने राजस्थानी कला के भेद, आदि स्वरूप को बताया। कठपुतली प्रदर्शन के साथ लाइक हुसैन ने इस विधा पर अपने कला की बारीकियों पर प्रकाश डाला। मालिनी काले ने वागड़ के भी लोकगीतो को गाकर, इन गीतों की बारीकियों और इसके उद्भव के रहस्यों को बताया । संचालन डॉक्टर करुणा दशोरा ने किया ।

कोलकाता से पर्यटन अधिकारी हिंगलाज दान रत्नू ने अपने बीच भाषण में कहा कि सरकार प्रदेश की सीमाओं से परे जाकर संस्कृति को बचाने का प्रयास कर रही है। जाजम सत्र में कथा और कथेतर साहित्य पर वक्ताओं ने कहा कि भाषा की मान्यता एक पक्ष है, लेकिन हर नागरिक का धर्म इसे जिंदा रखने का है । सत्र की अध्यक्षता दूरदर्शन के पूर्व निदेशक नंद भारद्वाज ने करी । बिज्जी की कथा के अनुवादक विशेष कोठारी एवं अरविंद आशिया ने कथा गायकी की परंपरा एवं गद्य साहित्य को उदाहरण सहित रखा। उन्होंने भी भाषा को शिक्षा से जोड़ने की जरूरत पर बल दिया। संचालन संतोष चौधरी ने किया।

'समेळो' सत्र में राजस्थानी काव्य का संचालन सूत्रधार चूरू से डॉ घनश्याम नाथ काछवा ने किया । पाली से राजस्थानी की कवित्री कविता किरण, कोलकाता के जयप्रकाश सेठिया, बीकानेर से डॉक्टर संजीव श्रीमाली, गंगानगर से राज बिजारणिया, जयपुर से विराज सिंह शेखावत आदि ने डिंगल के छंद के साथ अतुकांत कविताओं को पढ़कर राजस्थानी की अलग-अलग शैलियों को रखा और समा बांध दिया।शनिवार को होंने वाले सत्रों में चौपाल, हेमाणी, थाती और घूमर के विभिन्न सत्र होंगे।  जिसमें श्रोता लोकरंग एवं लोकसंगीत से सरोबार होंगे ।उक्त जानकारी कार्यक्रम के निदेशक डॉ अनुज श्री राठौड ने दी। 

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