बड़े ही क्यों छोटों का भी सम्मान करना हमारा कर्तव्य आचार्य डाॅ. शिवमुनि

बड़े ही क्यों छोटों का भी सम्मान करना हमारा कर्तव्य आचार्य डाॅ. शिवमुनि

श्रमणसंघीय आचार्य डाॅ. शिवमुनि ने कहा कि जीवन में शांति यदि चाहते हो तो स्वयं के भीतर अपनी आत्मा का अनुभव करें। भीतर प्रवेश करके सोचो कि मैं एक सिद्ध आत्मा हूं, श्वास आती है, जाती है और उसे महसूस करो, अपने आपको जानो। मन में जो विचार आते हैं आने दो, जो हो रहा है होने दो। यह जगत गृहस्थ से ही चलता है, आप एकाग्रचित्त होकर उन विचारों को स्वीकारो। आत्मा त्रिकाल है, अजर अमर है उसका ध्यान करो। आत्मा को न शस्त्र काट सकता है, न अग्नि उसे जला सकती है, न पानी इसे गला सकता है, आत्मा परम सत्य है, मृत्यु का भी उस पर कोई वश नहीं है, आत्मा का स्वरूप तो अनन्त है। उसी आत्मा का ध्यान करते हुए स्वयं की आत्मा को पवित्र करो।

 

बड़े ही क्यों छोटों का भी सम्मान करना हमारा कर्तव्य आचार्य डाॅ. शिवमुनि

श्रमणसंघीय आचार्य डाॅ. शिवमुनि ने कहा कि जीवन में शांति यदि चाहते हो तो स्वयं के भीतर अपनी आत्मा का अनुभव करें। भीतर प्रवेश करके सोचो कि मैं एक सिद्ध आत्मा हूं, श्वास आती है, जाती है और उसे महसूस करो, अपने आपको जानो। मन में जो विचार आते हैं आने दो, जो हो रहा है होने दो। यह जगत गृहस्थ से ही चलता है, आप एकाग्रचित्त होकर उन विचारों को स्वीकारो। आत्मा त्रिकाल है, अजर अमर है उसका ध्यान करो। आत्मा को न शस्त्र काट सकता है, न अग्नि उसे जला सकती है, न पानी इसे गला सकता है, आत्मा परम सत्य है, मृत्यु का भी उस पर कोई वश नहीं है, आत्मा का स्वरूप तो अनन्त है। उसी आत्मा का ध्यान करते हुए स्वयं की आत्मा को पवित्र करो।

वे आज महाप्रज्ञ विहार स्थित शिवाचार्य समवसरण में श्रद्धालुओं को प्रातःकालीन धर्मसभा में आत्मध्यान कराते हुए बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि आत्मध्यान में यह विचार करो कि सबका भला हो, सभी का मंगल हो, सभी खुश रहें। एक यह आत्मा ही है जो स्वयं को परमात्मा तक ले जाती है। आत्मा से आत्मसात होने का एक मात्र उपाय है ध्यान और ध्यान से ही आत्मा को पवित्र किया जा सकता हैं। आत्मा तो पवित्र होती है लेकिन मनुष्य के बुरे कर्म ओर विचारों के आवरण से वह अपवित्र हो जाती है। बड़े ही क्यों छोटों का भी सम्मान करना, उनका आदर करना भी हमारा कर्तव्य होता है। आचार्यश्री ने करीब आधे घंटे तक श्रावकों को आत्म ध्यान कराया।

युवाचार्यश्री महेंद्र ऋषि महाराज ने श्रावकों को कर्तव्यबोध कराते हुए कहा कि मनुष्य को अपने कर्तव्य का पालन हमेशा करना चाहिये। आप किसी के प्रति कर्तयनिष्ठ होते हैं तो यह आपका उस पर न तो उपकार है और ना ही एहसान। कर्तव्य की पालना करना तो आपका दायित्व होता हैं। जीवन का वास्तविक आनन्द तो कर्तव्य निभानें से ही मिलता है। संसार के सभी कर्तव्यों में से एक अहम कर्तव्य होता है धर्म के प्रति। धर्म की रक्षा करना भी हमारा कर्तव्य है। जो धर्म की रक्षा करता है निश्चत रूप से धर्म भी उसकी रक्षा करता है।

धर्मसभा में श्रीमती अन्तिमा खेतपालिया के 31 उपवास पूर्ण होने पर स्वागत सम्मान किया गया। इसी तरह श्रीमती निर्मला चोरिड़या का भी आठ उपवास पूरे करने पर स्वागत सम्मान किया गया।

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