क्या कारगर सिद्ध होगी नवीन परीक्षा प्रणाली ?
शिक्षा प्रणाली में समय-समय पर आवश्यकतानुसार परिवर्तन वांछनीय होता है। परीक्षा पद्धति शिक्षण प्रक्रिया पर गहरा प्रभाव डालती है अत: इसमें बदलाव और भी महत्वपूर्ण हो जाता है
शिक्षा प्रणाली में समय-समय पर आवश्यकतानुसार परिवर्तन वांछनीय होता है। परीक्षा पद्धति शिक्षण प्रक्रिया पर गहरा प्रभाव डालती है अत: इसमें बदलाव और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने हाल ही में परीक्षा सुधार प्रक्रिया के अंतर्गत एक पैनल बनाया। केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल के चेयरमैन विनीत जोशी की अधयक्षता में कुछ पश्चिमी देशो में प्रचलित परीक्षा प्रणाली का अध्ययन किया गया। उद्देश्य था नये प्रस्तावों को प्रासंगिक, स्वीकार्य तथा अधिक विद्यार्थी-हितकारी बनाना और वर्तमान की रटन्त आधारित शिक्षा प्रणाली के स्थान पर छात्रों में उच्च स्तरीय चिन्तन का विकास करना। हम चाहें हमारे यहाँ इंजीनियरों और डाक्टरों की बढती संख्या पर गर्व करें परन्तु वर्तमान प्रणाली मे रटने की प्रवृति के अत्यधिक महत्व के कारण शेक्षिक स्तर में निरन्तर गिरावट आ रही हैं।
हाल ही में विश्व के 73 देशों में प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट द्वारा किए गये अध्ययन से पता लगता है कि शिक्षा के स्तर में हमारा स्थान नीचे से दूसरा है। केवल क्रिगिस्तान का स्थान हम से नीचा हैं। विश्व के बदलते परिवेश में हमें हमारी शिक्षा को अधिक रचनात्मक, तार्किक तथा मानसिक रूप से आनंद दायक बनाना होगा।
केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल का मानना है कि शायद खुली पुस्तक परीक्षा में छात्रों का परीक्षा हॉल में पुस्तकें तथा अन्य सामग्री ले जाने का प्रस्ताव कुछ राज्यों को मान्य नहीं हो। अत: इसके स्थान पर प्री अनाउंसड टेस्ट(पी ए टी) योजना पर विचार किया जा रहा है।
इसके अन्तर्गत छात्रों को परीक्षा से कुछ माह पूर्व परीक्षा मे पूछे जाने वाले संभावित विषय दे दिये जायेंगे। इसका लाभ यह होगा कि उनके पास इन क्षेत्रों का गहन अध्ययन करने और घिसेपिटे प्रश्नों के स्थान पर तार्किक प्रश्नों के उत्तर देने की तैयारी करने का पर्याप्त समय होगा। इस प्रकार छात्रों में पठन सामग्री की गहन समझ, तार्किक क्षमता, मौलिक मौलिक दृष्टिकोण, भिन्न प्रकार की सामगी में अन्तरसम्बन्ध स्थापित करना तथा इस प्रकार की अन्य क्षमताएं विकसित की जा सकेगी।
प्रीअनाउंसड टेस्ट योजना कक्षा दस की सभी विषयों तथा कक्षा बारह के मुख्य विषयों में सत्र 2013-14 से लागू करने का प्रस्ताव है। आशा की जा रही है कि इस योजना के परिणाम स्वरुप ऐसी पास बुक, गाइड बुक आदि से छुटकारा मिल जायेगा जो विषय सामग्री को प्रश्नोंतरी का रूप देकर छात्रों के ज्ञान को सीमित कर उन्हें सोचने का अवसर नहीं देती।
शिक्षा, ज्ञान और समझ दोनों को ही विकसित करती है। ज्ञान प्राप्ति के लिए सूचनाऐ एकत्र करनी होती हैं और इस प्रक्रिया में स्मरण रखने की क्षमता भी कुछ सीमा तक सहायक होती है। विषय की समझ का भी अपना महत्व है। समस्या का समाधान करने हेतु उसे पहले समझ कर उससे जुड़ी अवधारणा या सिद्धान्त की गहराई तक जाना होता है। अन्त में इस ज्ञान और समझ के आधार पर उसे दैनिक जीवन में लागू किया जाता है। इस प्रक्रिया में ज्ञान ही उच्च स्तर की क्षमताओं का आधार बनता है। अब प्रश्न उठता है कि क्या नई पद्धति में ज्ञान के परिक्षण की पूर्ण रूप से उपेक्षा करना वांछनीय है?
इस विषय में एम.डी.एस विद्यालय के शैलेन्द्र सोमानी कहते है कि हमारे देश में जो सुधार किए जाते हैं वे प्राय: विदेश की परिस्थितियों पर आधारित होते है और उन्हें ऊपर से थोप दिया जाता है। यह बात नई परीक्षा प्रणाली पर भी लागू होती है। होना यह चाहिए कि पहले प्रत्येक स्तर पर व्यापक रूप से विचार विमर्श हो। शिक्षकों, छात्रों, उनके अभिभावकों और शिक्षाविदों से उनकी स्पष्ट राय मांगी जाये कि हमारे विद्यालयों में उनकी क्रियान्विती में क्या समस्याऐ आएंगी और उन्हें कैसे हल किया जायेगा।
सेंट्रल पब्लिक स्कूल की अलका शर्मा की राय में इस विषय में कुछ अन्य बिंदु भी विचारणीय हैं। खुली पुस्तक परीक्षा प्रणाली में छात्र समय से पूर्व ही स्वंय को विषय सामग्री से अवगत कराने का प्रयास नहीं करेगा क्योंकि परीक्षा के समय वह उसे उपलब्ध होगी।
जब परीक्षा में पूछे जाने वाली संभावित विषयवस्तु छात्रों को चार माह पूर्व ही ज्ञात हो जायेगी तो वे उसके अतिरिक्त और सामग्री क्यों पढ़ेगे? इस प्रकार पूरे पाठ्यक्रम का अध्ययन किये बिना भी छात्र अच्छे अंक प्राप्त कर लेंगे। क्या पासबुक और गाइडबुक के प्रकाशक तुरत-फुरत संभावित सामग्री पर पुस्तकें तैयार कर इस प्रणाली की मूल भावना को समाप्त कर देंगे? क्या इस स्तर की क्षमताओं का परिक्षण करने वाले अच्छे प्रश्नों का निर्माण करने वाले शिक्षक पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं या उन्हें इस कार्य के लिए प्रशिक्षित करने की कोई योजना तैयार है? क्या इस नई प्रणाली में आ सकने वाली अन्य समस्याओं का आकलन कर उसका समाधान का प्रयास किया है? ऐसे प्रश्नों पर विचार करना वांछनीय है।
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