रत्नों की अद्भुत दुनिया


रत्नों की अद्भुत दुनिया

हमारी पूरी पृथ्वी पर हजारों तरह के मिनरल्स उपलब्ध हैं। परंतु उनमें से कुछ एक को ही जेमस्टोन्स की कैटेगरी में डाला जाता है। किसी भी मिनरल को जेमस्टोन का स्थान देने से पूर्व उस में कुछ विशेषताओं का होना बेहद जरुरी है। जेमस्टोन्स की सुंदरता कलर ,कट, क्लैरिटी, लस्टर और कुछ बेहद स्पेशल ऑप्टिकल इफेक्ट से आंकी जाती है, जिससे विश्व बाजार में उनकी वैल्यू तय होती है। आम तौर पर जेम स्टोन्स को प्रेशस और सेमी- प्रेशस स्टोन्स की कैटेगरी में बांटा जाता है । परंतु वर्ल्ड ज्वेलरी कन्फेडरेशन ने इन्हें कलर स्टोन्स, डायमंड और पर्ल कैटेगरी में बांटा है ताकि इन का उचित वर्गीकरण किया जा सके। दुनिया भर के ट्रेड एसोसिएशन इसे ही सही मानते हैं।

 
रत्नों की अद्भुत दुनिया
हमारी पूरी पृथ्वी पर हजारों तरह के मिनरल्स उपलब्ध हैं। परंतु उनमें से कुछ एक को ही जेमस्टोन्स की कैटेगरी में डाला जाता है। किसी भी मिनरल को जेमस्टोन का स्थान देने से पूर्व उस में कुछ विशेषताओं का होना बेहद जरुरी है। जेमस्टोन्स की सुंदरता कलर ,कट, क्लैरिटी, लस्टर और कुछ बेहद स्पेशल ऑप्टिकल इफेक्ट से आंकी जाती है, जिससे विश्व बाजार में उनकी वैल्यू तय होती है। आम तौर पर जेम स्टोन्स को प्रेशस और सेमी- प्रेशस स्टोन्स की कैटेगरी में बांटा जाता है । परंतु वर्ल्ड ज्वेलरी कन्फेडरेशन ने इन्हें कलर स्टोन्स, डायमंड और पर्ल कैटेगरी में बांटा है ताकि इन का उचित वर्गीकरण किया जा सके। दुनिया भर के ट्रेड एसोसिएशन इसे ही सही मानते हैं।
जहां ब्यूटी जेम स्टोन्स को डिजायरेबल बनाती है वहीं रेयरिटी यानी उपलब्धता में कमी उसे दुनिया में एक कदम और आगे ले जाती है ।आजकल सिंथेटिक जेमस्टोन्स बाजा़र में बहुत अधिक प्रचलित हैं परंतु असली जेम्स स्टोन्स की वैल्यू कई अधिक है।
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कैसे बनते हैं जेम स्टोन्स ?
ज़्यादातर जेमस्टोन्स जियोलाजिकल प्रोसेस से रॉक के रूप में धरती के गर्भ में बनते हैं। यह खुद रॉक या फिर रॉक के भाग हो सकते हैं या रॉक बनते समय बचे हुए केमिकल्स से बन सकते हैं। इसके अतिरिक्त एक रॉक जब दूसरी रॉक में बदलती है तब भी जेम्स स्टोन्स बनते हैं।जहां डायमंड और पेरिडॉट जैसे जेमस्टोन मैग्मा के ठंडा होकर जमने पर सीधे रॉक के भाग की तरह बनते हैं वहीं दूसरी ओर मैग्मा से बची हुई गैसेस और दूसरे केमिकल्स आस-पास की रॉक्स या  कैविटीज़ में जमा होकर एमराल्ड, एक्वा मरीन , टोपाज़, तुर्मलिन जैसे जेम स्टोन बनाते हैं। एमराल्ड क्वार्ट्ज और ब्लैक तुर्मलिन एक दूसरे से एसोसिएटेड मिनरल्स हैं। कुछ जेम्स जैसे पर्ल,शैल, एंबर, कोरल,मूंगा आदि बायोलॉजिकल प्रोसेसेस से बनते हैं ।
रत्नों की अद्भुत दुनियाकैसे की जाती है जेम स्टोन माइनिंग
जेम्स दो तरह के डिपॉजिट से माइन किए जाते हैं। 1. प्राइमरी डिपाजिट 2. सेकेंडरी डिपाजिट, पहले तरीके को हार्ड रॉक माइनिंग व दूसरे को प्लेसर माइनिंग भी बोलते हैं ।
हार्ड रॉक माइनिंग में बड़े रॉक्स को  ड्रिल और ब्लास्ट कर जेम बियरिंग रॉक्स निकाले जाते हैं जिन्हें क्रश कर छोटा किया जाता है फिर उसमे से जेम्स स्टोंस छांटे जाते हैं । यह तरीका एमराल्ड के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। उसी तरह ओपन कास्ट माइनिंग व टेरेस माइनिंग,मरीन माइनिंग द्वारा भी इन्हें निकाला जाता है । इसके बाद क्रशिंग की जाती है ताकि बड़े रॉक से छोटे जेमस्टोन निकालना आसान हो जाए ।क्रशिंग के बाद वाशिंग की जाती है। क्रश किए गए रॉक स्टोन एक्सट्रैक्शन के लिए भेजे जाते हैं। एक्सट्रैक्शन- छलनी में जेम्स स्टोन और दूसरे मिनरल्स जो नीचे बैठ जाते हैं, उन्हें हाथों से छांटकर अलग किया जाता है। जेम्स स्टोन्स वाले छोटे हार्ड रॉक के टुकड़ों को भी हाथ से अलग करते हैं। इन छोटे टुकड़ों को हथौड़ी से तोड़कर जेम्स स्टोन्स निकाले जाते हैं। इन क्रिस्टल्स को साइज़, शेप व क्वालिटी के हिसाब से अलग छांट लिया जाता है।
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कटिंग प्रोसेसिंग व पालिशिंग के लिए इन्हें जेम प्रोसेसिंग केंद्र में भेजा जाता है। राजस्थान में भी जेम्स स्टोन्स का कारोबार काफी उच्च पैमाने पर किया जाता है। यहां जयपुर स्थित विशेष जेम प्रोसेसिंग केंद्र में रत्नों को भेजकर इनकी प्रोसेसिंग, कटिंग व पॉलिशिंग कराकर बाजार में बेचने के लिए तैयार किया जाता है।
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राजस्थान में मिलने वाले रत्नों में प्रमुख रूप से बेरिल श्रेणी के अंतर्गत आने वाले जेमस्टोन्स हैं। रत्न जितना बड़ा और खूबसूरत होगा तथा उसकी पॉलिशिंग के बाद रेयरिटी तय करती है कि वह कितने ऊंचे भाव में बाजार में बेचा जाएगा। जेम की ड्यूरेबिलिटी , हार्डनेस(उसकी खरोंच सहने की क्षमता), ब्रिटलनेस(टूट फूट सहने की क्षमता), क्लीवेज(फटने की आसानी) या फिर केमिकल्स और हीट का असर सहने के गुण से जज करते हैं। जो जेम स्टोन इन विशेषताओं पर खरे नहीं उतरते ,वे पहनने की जगह कलेक्शन के लिए ही कट और पालिश किये जाते हैं। ड्यूरेबल स्टोन्स को ही ज्वेलरी बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।
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आजकल जेम स्टोन्स से बनी ज्वेलरी बहुत प्रचलित है। सिंथेटिक की तुलना में नेचुरल स्टोन्स की वैल्यू ज़्यादा होती है। इसके पीछे फिल्मी सितारों का रत्नों के प्रति लगाव भी उत्तरदायी है। आम जनता उनकी पसंद को देखकर ही ऐसी ज्वेलरी की डिमांड करती है। तभी आजकल यह उद्योग बहुत फल-फूल रहा है।

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