कटाई के उपरान्त तकनीक पर आयोजित कार्यशाला संपन्न


कटाई के उपरान्त तकनीक पर आयोजित कार्यशाला संपन्न

कटाई के उपरान्त तकनीकी पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की 4 दिवसीय कार्यशाला का का समापन गुरुवार को हुआ। इस 29वीं कार्यशाला को महाराणा प्रताप कृषि व प्रो. वि. वि. उदयपुर के संघटक प्रौद्योगिकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय में में आयोजित किया गया था।

 

कटाई के उपरान्त तकनीकी पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की 4 दिवसीय कार्यशाला का का समापन गुरुवार को हुआ। इस 29वीं कार्यशाला को महाराणा प्रताप कृषि व प्रो. वि. वि. उदयपुर के संघटक प्रौद्योगिकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय में में आयोजित किया गया था।

कार्यशाला के आयोजन सचिव डॉ. एन.के.जैन ने बताया कि, इस संगोष्ठी में देश के ख्याति प्राप्त 100 से अधिक वैज्ञानिकों एवं अनुसंधान विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। खाद्य प्रंसस्करण की उचित सुविधाएं एवं उपरोक्त तकनीकी द्वारा नुकसान को कम किया जा सकता है, साथ ही इससे खेतों के आसपास इन ईकाइयों के लगने से रोजगार की अपार संभावनाएँ है एवं इसके द्वारा किसानों की उद्यमिता विकास एवं इससे ग्रामीण खुशहाली संभव है। वर्तमान समय में देश में अब प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थो का बहुत बड़ा बाजार विकसित हो  रहा है। कार्यशाला में आठ तकनीकी रखे गये। विभिन्न तकनीकी सत्रो में उद्यानिकी फसलों, फल- सब्जियों, खाद्यानो, पशुधन उत्पादों, गुड़ आदि क्षेत्रो के प्रसंस्करण एवंमूल्य संवर्धन परदेश भर में हो रहे अनुसंधानों का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। विगत दो वर्षो में कटाई उपरान्त तकनीकी परियोजना में बहुत से यंत्र एवं तकनीकी विकसित किये गये।

समापन सत्र कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रौद्योगिकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा.बी.पी. नन्दवाना़ ने कहा कि आने वाला समय खाद्य प्रंसस्करण तकनीकी का है और इसी दिशा में 12वीं पंचवर्षीय योजना में खाद्य प्रंसस्करण द्वारा मूल्य वृद्धि को द्वितीय कृषि के रूप में लिया गया हैं। आवश्यकता सिर्फ तकनीकी द्वारा उच्च गुणवत्ता के खाद्य पदार्थो को विकसित करने की है। पिछले 60 वर्षो मेंखाद्य उत्पादन में अपेक्षित वृद्धि से हमने आधी लड़ाई तो जीत ली है लेकिन अब खाद्य प्रंसस्करण से 18 फीसदी नष्ट होने वाले फल/सब्जी को बचाने की लडाई अभी बाकी है। उन्होनें कहा कि देश के पारम्परिक खाद्य पदार्थो को विकसित कर पश्चिम देशों में निर्यात की असीमित संभावनाओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है।  खाद्य प्रसंस्करण की नवीन तकनीकी में अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ एवं खाद्य प्रसंस्करण तकनीकी द्वारा गुणवत्ता एवं कीमत वृद्धि, तथा ग्रामीण स्तर पर उद्यमिता विकास द्वारा ग्रामीण समृद्धि पर केन्द्रित रखे जाये।  इस क्षेत्र में क्षमता विकास के लिये देश में खाद्य प्रंसस्करण केन्द्रो के स्थापना की जरूरत है। इससे खासकर फल- सब्जियाँ तथा दूध को नष्ट होने से बचाया जा सकता है।

कार्यशाला के दौरान अनाज पफिंग मशीन, प्याज बीज निशकाष्क, पशु आहार ब्रिकेटिंग मशीन, कद्दू से चेरी बनाने की तकनीक व पाइलट प्लांट, लघु ग्वारपाठा गूदा निशकाष्क, हरे चने(लीलवे) की प्रसंस्करण तकनीक, मूंगफली दाने से छिलका हटाने की मशीन, केला छीलक यंत्र, गाजर सफाई मशीन, सेव से बीज निकालने के औजार, वेजिटेबल पैक हाऊस, सैना पत्ती निकालने का औजार, सूरजमुखी तेल शोधक इकाई, टमाटर किण्वित पेय, आम से गूठली निकालने की मशीन, आम की गूठली से गिरी निकालने की मशीन, अमरुद की टाफी, साबूदाना से होली पाऊडर, जामुन स्नेक्स, कैण्डी, पेक्टिन उत्पाद तकनीक, बार्नयार्ड (जंगोरा) मिलेट से प्रोबायोटिक दही व कुरकुरे बनाने के यन्त्र विकसित किये गए।

विभिन्न सत्रों में गहन चर्चा के बाद फल- सब्जियाँ, खाद्यान्न, दलहन, तिलहन उत्पादों,पशुधन उत्पादों को खराब होने से बचाने एवं गुणवत्ता वृद्धि द्वारा स्थानीय स्तर पर ग्रामीण खुशहाली के लिये आगामी कार्यक्रमों हेतु निम्न सुझाव निकल कर आये –

  • प्रसंस्करण हेतु उपयोगी यंत्रो व तकनीकी पर शोध हो जिससे उत्पादन क्षेत्रों में ही फसल मूल्य सर्वद्धन हो सके, रोजगार उपलब्ध हो सके तथा शहरी क्षेत्रो की ओर पलायन कम हो सके।
  • वर्तमान परिपेक्ष्य में स्थानीय फल एवं सब्जी उत्पादों के प्रसंस्करण की अपार संभावनाएं है। कटाई उपरान्त फसलो के नुकसान को कम करने के लिये इनकी हर स्तर पर उचित देखभाल की जरूरत है, ताकि उचित सफाई, श्रेणीकरण एवं पैकिंग हो सके। कृषि उत्पाद क्षेत्रों में अस्थायी ठण्डे एवं अन्य भण्डारण सुविधाएं मुहैया करने की जरूरत है, ताकि किसानों द्वारा उत्पादित उत्पाद को खराब होने से बचा सकेगा एवं अच्छे बाजार भाव भी प्राप्त होगा।
  • विश्वविद्यालयों एवं कृषि केन्द्रों के बीच सूचना तंत्र विकसित हो जो छोटे एवं मंझले किसानों को मौजूदा बाजार के अनुसार फल एवं सब्जियां उगाने एवं उनकी प्रसंस्करण, मूल्य वृद्धि की उचित जानकारी दे सके। अनुसन्धान संस्थानों द्वारा विकसित फसल कटाई उपरान्त कई यंत्र आदि उपलब्ध है, उनका व्यापक प्रचार व उत्पादन क्षेत्रो में  उपयोग हो।

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