आजीविका व पोषण सुरक्षा पर कृषि नवोन्मेषी परियोजना पर कार्यशाला
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय के संरक्षण में संचालित विश्व बैंक व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा वित्त पोषित कृषि नवो
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय के संरक्षण में संचालित विश्व बैंक व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा वित्त पोषित कृषि नवोन्मेषी परियोजना पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन निदेशालय के प्रज्ञा हॉल में किया गया। यह परियोजना प्रदेश के जनजाति बाहुल्य चार जिलों में समेकित कृषि पद्धति एवं प्रौद्योगिकी के मॉडलस् द्वारा आजीविका एवं पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये संचालित की जा रही है। यह परियोजना वर्ष 2007 से संचालित है।
कार्यशाला के मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ओ.पी.गिल के कहा कि इस परियोजना के तहत जनजाति क्षेत्रों के पिछड़े एवं सुविधाहीन कृषकों की आर्थिक समृद्धि एवं खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित कर इस परियोजना के तहत प्रशंसनीय कार्य किया गया है। इस परियोजना को राष्ट्रीय स्तर पर न केवल सराहा गया वरन् विश्व बैक दल ने भी इसकी प्रशंसा की है।
राज्यपाल मारग्रेट आल्वा ने भी बांसवाड़ा व डूंगरपुर में परियोजना की गतिविधियों का अवलोकन किया। उन्होंने कहा कि इस परियोजना को राष्ट्रीय स्तर पर एक आदर्श परियोजना दर्जा मिला है जो कि विश्वविद्यालय के लिये गौरव की बात है उन्होंने कहा कि इस परियोजना के द्वारा किसानों को कृषि उत्पादन, खाद्यान्न फसलों, दालों, तिलहन, सब्जियों के बढ़े हुए उत्पादन के साथ ही अत्याधुनिक कृषि तकनीकों एवं उपकरणों का लाभ मिला है। साथ ही इन क्षेत्रों के किसानों को पशुपालन एवं दुग्ध व्यवसाय से आर्थिक सम्बल भी मिला है परियोजना के नवाचारेां के कारण इस क्षेत्र के पिछड़े एवं जनजातिय कृषकों की आर्थिक व सामाजिक स्थिति में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। परियोजना से जुड़े किसानों के चेहरों पर आज खुशी देखी जा सकती है। वे अपने बच्चों को अच्छे विद्यालयों में भेज रहे हैं, मोबाइल एवं अच्छे वाहनों का प्रयोग कर रहे हैं एवं उनकी आय बढने से उनके घर में भी खुशहाली है यह हमारे लिये सबसे बडी उपलब्धी है। इस परियोजना के नवाचारों को वृहद् स्तर पर बढ़ाने की आवश्यकता है।
परियोजना के मुख्य अन्वेषक एवं प्रसार शिक्षा निदेशक प्रो. आई.जे.माथुर ने इस परियोजना के विभिन्न आयामों से सदन को परिचित कराया उन्होंने कहा कि इस परियोजना का मूल उद्देश्य समेकित कृषि पद्धति एवं उन्नत प्रौद्योगिकी द्वारा जनजाति परिवारों की आजीविका सुनिश्चित करना है।
परियोजना का प्रारम्भ 20 अक्टूबर, 2007 को किया गया। परियोजना के अन्तर्गत उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा व सिरोही जिले के 90 गांवों में 16000 से अधिक परिवारों को लाभान्वित किया गया। परियोजना के प्रारम्भ में इन परिवारों की औसत आय 25000 रूपये से कम थी आज यह आय 72000 रूपयों से अधिक हो गई है।
यह कार्यशाला आयोजित करने का उद्देश्य यह है कि परियोजना से जो मॉडल निकल कर आया है उस पर विस्तृत चर्चा कर उसको अन्य क्षेत्रों में भी ले जाया जाये जिससे अन्य क्षेत्रों के किसानों को भी लाभान्वित कर उनकी आजीविका को सुनिश्चित किया जा सके।
इस कार्यशाला में परियोजना से जिले विभिन्न प्रगतिशील कृषकों, कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिकों, स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों, कृषि एवं पशुपालन विभाग, राजस्थान के अधिकारियों, अनुसंधान निदेशालय के डॉ. एस.के.शर्मा, क्षेत्रीय निदेशक बांसवाड़ा डॉ. जी.एस.आमेटा, अधिष्ठाता डॉ. एस.आर.मालू, डॉ. बी.पी.नंदवाना एवं डॉ. ए.के.सांखला के साथ ही राजस्थान कृषि महाविद्यालय एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय के विभिन्न विभागाध्यक्षों एवं परियोजना से सीधे जुड़े हुए अधिकारियों – डॉ. सुनील इन्टोदिया, डॉ. एस.के.अग्रवाल इत्यादि ने भाग लिया। कार्यशाला का संचालन डॉ. लतिका व्यास ने किया एवं धन्यवाद डॉ. इन्टोदिया ने दिया।
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