वर्ल्ड कैंसर डे स्पेशल | सकीना बानू & दुर्रिया कपासी – एक आदर्श सास-बहु और कैंसर सर्वाइवर

वर्ल्ड कैंसर डे स्पेशल | सकीना बानू & दुर्रिया कपासी – एक आदर्श सास-बहु और कैंसर सर्वाइवर

जब किसी घर में सास और बहु दोनों ही कैंसर से लड़ कर जीते हो तो उस घर में सहस और सकारात्मकता का ऐसा बोल बाला होता है कि निराशा, मायूसी और नकारात्मकता जैसे तत्व दूर ही रहते है ऐसी ही कहानी है सकीना बानू और उनकी बहु दुर्रिया कपासी की।

 
वर्ल्ड कैंसर डे स्पेशल | सकीना बानू & दुर्रिया कपासी – एक आदर्श सास-बहु और कैंसर सर्वाइवर

कैंसर एक रोग कम और मृत्यदंड ज्यादा समझा जाता है और जो इस मृत्युदंड से झूज के जीवित निकल जाता है वह दूसरो के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन जाता है, परन्तु जब किसी घर में सास और बहु दोनों ही कैंसर से लड़ कर जीते हो तो उस घर में सहस और सकारात्मकता का ऐसा बोल बाला होता है कि निराशा, मायूसी और नकारात्मकता जैसे तत्व दूर ही रहते है ऐसी ही कहानी है सकीना बानू और उनकी बहु दुर्रिया कपासी की।

65 वर्षीया सकीना बानू का जीवन बड़ा कठोर रहा है, युवा अवस्था में अपने पति को खोने के बाद दो मासूम बच्चो की जिम्मदारी और अपनी अध्यापिका की नौकरी के साथ साथ कई तरह की सामाजिक और आर्थिक मुश्किलो से लड़ते हुए अचानक एक दिन पता चला कि कैंसर ने भी उनको चैलेंज कर दिया है। उन दिनों सिमित संसाधन होते हुए भी बड़ी हिम्मत से उन्होंने कैंसर का सामना किया और आखिरकार कैंसर को शिकस्त दे दी। सकीना बानू को फर्स्ट स्टेज ब्रैस्ट कैंसर था।

आज सकीना बानू सेवा निवृत है और अपने परिवार के साथ बच्चो का मार्ग दर्शन करती है।


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अब कहानी दुर्रिया कपासी की, वह रिश्ते में सकीना बानू की बहु है और यह एक इत्तेफ़ाक है कि सास की ही तरह बहु भी साहस और प्रेरणा का बहुत बड़ा उदहारण है।

दुर्रिया, तंज़ानिया (ईस्ट अफ्रीका) के दार-ए-सलाम शहर से है, शादी के बाद वे उदयपुर आई। किताब पढने का शौक तो बचपन से ही था और उदयपुर आकर नोवेल लिखने का शौक शुरू हुआ, जब वे अपनी पहली किताब लिख रही थी तभी एक दिन उन्हें अपने गर्दन पर एक छोटी सी गाँठ महसूस हुई जो एक होज्किंस लिम्फोमा नाम का कैंसर था। एक बार तो सारे सपने चकनाचूर होने लगे परन्तु अपनी हिम्मत और ईश्वर पर अटूट विश्वास ने बल दिया और लगभग एक साल के ट्रीटमेंट के बाद उन्होंने कैंसर को चकनाचूर कर दिया।

आज दुर्रिया कपासी की दूसरी किताब भी पब्लिश हो चुकी है, और वे एक निजी स्कूल में बच्चो को क्रिएटिव राइटिंग भी सिखाती है, समाज सेवा करती है और कैंसर निवारण के क्षेत्र में काम करना चाहती है।

सकीना बानू और दुर्रिया कपासी दोनों ही साधारण महिलाएं है, परन्तु इनका आत्मविश्वास असाधारण है जिसके बल पर आज तक यह हर मुसीबत का डटकर सामना करती आई है और करती रहेंगी, दोनों सास बहु एक दुसरे की हिम्मत है और हम सभी के लिए अनुकरणीय उदाहरण।

आज वर्ल्ड कैंसर डे पर उदयपुर टाइम्स दुर्रिया और सकीना जैसे कई कैंसर सरवाय्वर्स को सलाम करता है।

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