सिटी पैलेस में आन-बान-शान से पूजे गए अश्व
शुक्रवार को जब नवमी के भगवान सूर्यनारायण पलायन कर रहे थे तभी सिटी पैलेस में नक्कारे साथ शहनाई गूंजी और बैंड बाजों पर रजवाड़ी गीत के साथ शाही बग्घी में सवार होकर लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ माणक चौक पहुंचे और उन्होंने परंपरानुसार अश्वों का पूजन किया।
शुक्रवार को जब नवमी के भगवान सूर्यनारायण पलायन कर रहे थे तभी सिटी पैलेस में नक्कारे साथ शहनाई गूंजी और बैंड बाजों पर रजवाड़ी गीत के साथ शाही बग्घी में सवार होकर लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ माणक चौक पहुंचे और उन्होंने परंपरानुसार अश्वों का पूजन किया।
यह नजारा मेवाड़ की उस सालों पुरानी परंपरा का था जब स्थानीय सेना में पदाति सैन्य बल, गजाति के साथ ही अश्व बल को पर्याप्त महत्व दिया गया था। दशहरे की पूर्व संध्या पर अश्व बल को सम्मान के रूप में उनके पूजन की परंपरा चली। इस खास आयोजन के लिए माणक चौक, नगीनाबाड़ी, नाहरों का दरीखाना आदि को राजसी अंदाज में सजाया गया था।
पारंपरिक पहनावे में गणमान्य नागरिक ही नहीं, विदेशी मेहमान भी यहां आमंत्रित थे। महाराणा ऑफ मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन की ओर से यह पूजा उत्सव रखा गया। राजपरिवार के पुरोहित, कर्मांत्री और ज्योतिषियों ने नख-शिख आभूषणों, कांठी, सुनहरे छोगों, मुखभूषण, लगाम आदि से सज्जित पांच अश्वों राजतिलक, राजरूप, तरंगिणी, अश्वराज और राजस्वरूप को पायगा की हथणी की नाल तक लाने का आह्वान किया। ठुमकते हुए अश्व पूजन स्थल पर पहुंचे।
यहां पर राजसी वेश में महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन उदयपुर के ट्रस्टी लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ बैठे थे। वे फाउण्डेशन के अध्यक्ष एवं प्रबंध न्यासी श्रीजी अरविन्द सिंह मेवाड़ की पारंपरिक तलवार के साथ वहां बिराजे। उनकी बग्घी 4 घोड़े वाली रॉयल लान्डाऊ फॉर इन हैण्ड्स थी।
उन्होंने अक्षत, कुंकुम चढ़ाकर अश्वों की आरती की। नए आभूषण, वस्त्रादि अर्पित किए और आहार दिया, ज्वार धारण करवाई। बाद में, उपस्थित मेहमानों ने लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ को नजराना पेश किया। उन्होंने बैंड वादकों, पैलेस गार्ड की सलामी भी ली। इसके अलावा इस समारोह में 21 अन्य घोड़ेे भी लाए गए। इस समारोह में मेवाड़ के पूर्व ठिकानेदार एवं विदेशी मेहमान उपस्थित थे। समारोह का संचालन नेहा श्रीवास्तव ने किया।
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