गलत दिशा के गलत ही मिलेंगे परिणाम
जीवन एक गति मान तत्व है। श्रम और पुरूषार्थ जीवन जीने की अनिवार्य शर्त है। प्रत्येक प्राणी को पुरूषार्थ तो करना ही होता है, किन्तु वह पुरूषार्थ अनेक बार सम्यक् दिशा में नही होकर गलत दिशा में प्रयुक्त हो जाता है उसका परिणाम होता जीवन का पतन, निराशा और संक्लेश।
जीवन एक गति मान तत्व है। श्रम और पुरूषार्थ जीवन जीने की अनिवार्य शर्त है। प्रत्येक प्राणी को पुरूषार्थ तो करना ही होता है, किन्तु वह पुरूषार्थ अनेक बार सम्यक् दिशा में नही होकर गलत दिशा में प्रयुक्त हो जाता है उसका परिणाम होता जीवन का पतन, निराशा और संक्लेश।
यह विचार श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने पंचायती नोहरा में आयोजित विशाल धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए प्रकट किये।
उन्होंने कहा कि संक्लेश पैदा होने पर श्रम तो व्यर्थ हो ही जाता है किन्तु जीवन में जो उलझने पैदा कर देता है, उन्हे जीवन भर सुलझाना कठिन हो जाता है, अत: पुरूषार्थ और श्रम का प्रयोग करने के पहले उसकी दिशा का निर्धारण सुस्पष्ट हो जाना चाहिये। यदि दिशा गलत है तों परिणाम दु:खद ही आयेगे। आप की कल्पना चाहे कैसी भी क्यों न हो। अपने पुरूषार्थ कि दिशा सर्जनात्मक होनी चाहिये। जीवन की शक्ति है पुरूषार्थ, उसका अपव्यय जीवन के सर्वस्व का अपव्यय है।
मुनिश्री का कहना था कि हिंसा अत्याचार दुव्र्यसन तोड़ फोड़ दुराचार आदि गलत दिशा में किया गया श्रम जीवन के सर्वस्व को गटर में बहाने जैसा है। तन धन और जीवन सभी की बरबादिया दुष्कार्यो में निहित है। स्वयं अपने जीवन में अपने हाथो आग लगाने जैसा है। अत: प्रत्येक व्यक्ति के लिये यह समझना आवश्यक है कि उसका पुरूषार्थ सही दिशा में प्रयुक्त हो। नैतिकता से प्राप्त उपलब्धियां ही सच्चा उपार्जन है।
अत: अपना श्रम नैतिक मूल्यो पर आधारित होना चाहिये। मुनि ने बताया कि धर्म और अध्यात्म के महकते पुष्प नैतिकता के धरातल पर ही खिलते है। आत्म शान्ति पूर्ण विकास की धरा नैतिक पुरूषार्थ के माध्यम से आगे बढ़ती है तो आने वाली अनेक पीडिय़ो को प्रभावित कर दिया करती है। कार्यक्रम का संचालन मंत्री हिम्मत बड़ाला ने किया। प्रारम्भ में स्वागत अध्यक्ष वीरेन्द्र कुमार डंागंी नें किया।
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