यशोदा देवी: प्रथम विधानसभा की प्रथम महिला विधायक
राजस्थान में आजादी के बाद गठित पहली विधानसभा का कार्यकाल सन 1952-1957 का रहा। इस दौरान सन् 1952 में पहली बार जो चुनाव हुए उसमें राज्य की किसी भी महिला ने जीत दर्ज नहीं कराई लेकिन बाद में हुए उपचुनाव में प्रथम महिला के रूप में बांसवाड़ा विधानसभा की सामान्य सीट से यशोदा देवी खड़ी हुई और अपनी जीत दर्ज कराई।
राजस्थान में आजादी के बाद गठित पहली विधानसभा का कार्यकाल सन 1952-1957 का रहा। इस दौरान सन् 1952 में पहली बार जो चुनाव हुए उसमें राज्य की किसी भी महिला ने जीत दर्ज नहीं कराई लेकिन बाद में हुए उपचुनाव में प्रथम महिला के रूप में बांसवाड़ा विधानसभा की सामान्य सीट से यशोदा देवी खड़ी हुई और अपनी जीत दर्ज कराई।
1952 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान से केवल चार महिलाओं ने चुनाव लड़ा; इनमें फागी विधानसभा सीट से के. एल. पी. पार्टी की चिरंजी देवी, जयपुर शहर विधानसभा क्षेत्र ए से समाजवादी पार्टी की वीरेन्द्रा बाई, उदयपुर शहर निर्वाचन क्षेत्र से शांता देवी (निर्दलीय) तथा सोजत मेन विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से जनसंघ की रानीदेवी ने चुनाव लड़ा। यह दुर्भाग्य ही रहा कि ये चारों महिलाएं 1952 के प्रथम आम चुनाव में पराजित घोषित की गई।
यशोदा देवी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर खड़ी हुई थी। इन्हें राज्य की प्रथम विधानसभा की प्रथम महिला बनने का गौरव प्राप्त हुआ। इसी विधानसभा में जो दूसरी महिला पहुंची वह कमला बेनीवाल थीं। यशोदा 1953 में पहुंची वहीं कमला 1954 के उप चुनाव में जीतकर विधायक बनी।
यशोदा देवी का जन्म मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले के नागदा में सन्ï 1927 में हुआ। उप चुनाव में यशोदा देवी को 14 हजार 862 मत मिले। इनके प्रतिद्वंद्वी इंडियन नेशनल कांग्रेस के नटवरलाल को मात्र 8 हजार 451 मत प्राप्त हुए। इस तरह यशोदा देवी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी नटवरलाल को 6 हजार 411 मतों से पराजित किया।
उल्लेखनीय है कि 1953 का यह उप चुनाव एस. एस. पी. पार्टी के भेलजी का चुनाव अवैध घोषित होने के कारण करवाया गया। इसमें यशोदा देवी ने 63.75 फीसदी मत अपने पक्ष में लिए जबकि कांग्रेस के नटवरलाल को मात्र 36.25 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए।
मध्यप्रदेश के झाबुआ जिला पत्रकार संघ के अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा ने बताया कि यशोदा देवी की शिक्षा वनस्थली विद्यापीठ तथा भील आश्रम बामनिया में हुई। विधायक बनने के बाद उन्हें 1956 में सभापति तालिका सदस्य भी बनाया गया। वे विशेषाधिकार समिति की सदस्य भी रहीं।
महिला जागृति के लिए वे सदैव प्रयत्नशील रहीं। अप्रेल 2003 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत ने उन्हें आदर्श नारी के अलंकरण से विभूषित किया।
यशोदा देवी आजीवन शराबबन्दी, लगानबन्दी एवं महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य करती रहीं। उन्होंने मामा बालेश्वर दयाल के साथ मिलकर रियासत तोड़ो आंदोलन में नामचीन भूमिका निभाई।
वे अखिल हिन्दू वनवासी महिला पंचायत की सभापति व महासचिव भी रहीं एंव अन्य अनेक महिला संगठनों से भी वे जुड़ी रहीं। उनका 3 जनवरी 2004 को निधन हो गया।
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