नाम तो दिया हैं तुमने इसको कन्यादान, और दान दे दिया एक कन्या की जान का


नाम तो दिया हैं तुमने इसको कन्यादान, और दान दे दिया एक कन्या की जान का

आज के इस बदलते दौर में न तो बाल विवाह कोई अर्थ रखता है और ना ही दहेज जैसी कुप्रथाएं, लेकिन फिर भी देश के कोने-कोने में कथित सामाजिक रस्म के नाम पर हजारों बच्चों को विवाह के बंधन में बांधने की कोशिश होती रहती है।

 

आज के इस बदलते दौर में न तो बाल विवाह कोई अर्थ रखता है और ना ही दहेज जैसी कुप्रथाएं, लेकिन फिर भी देश के कोने-कोने में कथित सामाजिक रस्म के नाम पर हजारों बच्चों को विवाह के बंधन में बांधने की कोशिश होती रहती है।

समाज के ठेकेदार इसे पुण्य मानकर पूरा करने की कोशिश करते है, और सरकार कानून के डंडे के बल पर रोकने की। कुछ जगह समाज के ठेकेदार कामयाब हो जाते है, पर उदयपुर कि एक बेटी समाज के इस दस्तूर को ठोकर मारते हुए अपनी जिन्दगी सवारने पहुच गई बाल कल्याण समिति न्यायपीठ कि शरण में।

गोरतलब है कि घासा निवासी सविता पाठक (नाम परिवर्तित) की उम्र अभी 17 वर्ष 2 माह है। उसका विवाह 14 वर्ष 5 माह की उम्र में गांव के एक किशोर से कर दिया गया था। सविता साधारण परिवार की है और उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है। सविता कि माँ उसे ससुराल भेजने के लिए दबाव डालने लगी, जिससे बचने के लिए घर से निकलकर वह दो माह अपनी भुआ के पास रही, बाद में अपनी सहेली के पास मुम्बई चली गई।

इस दौरान सविता के परिजनों ने काफी खोजबीन के बाद बालिका कि उम्र 21 बताते हुए थाने में अज्ञात युवक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई, इसकी जानकारी मिलते ही बालिका प्रतापनगर थाने जा पहुंची थी। प्रताप नगर पुलिस ने बालिका कि सुनवाई करते हुए कानूनी प्रक्रिया पूरी कर उसे चित्रकूट स्थित बालिका गृह भिजवा दिया, जहां सी डब्ल्यू सी ने धारा 31 जेजे एक्ट की शक्ति का प्रयोग कर बाल विवाह अमान्य कराने की ख्वाहिश करने वाली किशोरी के जीवन की सुरक्षा, संरक्षा, पुनर्वास व शिक्षा का जिम्मा उठाया है।

बाल विवाह का सम्बन्ध आमतौर पर भारत के कुछ समाजों में प्रचलित सामाजिक प्रक्रियाओं से जोड़ा जाता है, जिसमें एक युवा बच्ची (आमतौर पर 15 वर्ष से कम आयु की लडकी) का विवाह एक वयस्क पुरुष से किया जाता है। बाल विवाह की दूसरे प्रकार की प्रथा में दो बच्चों (लड़का एवं लड़की) के माता-पिता भविष्य में होने वाला विवाह तय करते हैं। इस प्रथा में दोनों व्यक्ति (लड़का एवं लड़की) उनकी विवाह योग्य आयु होने तक नहीं मिलते, जबकि उनका विवाह सम्पन्न कराया जाता है।

क़ानून के अनुसार, विवाह योग्य आयु पुरुषों के लिए 21 वर्ष एवं महिलाओं के लिए 18 वर्ष है। आज भी कई बच्चे इस रुढ़िवादी परम्परा के शिकार है। इस साहसी बालिका के इस कदम से, समाज में डर से जबान बंद कर बैठे बच्चे भी अपनी आवाज उठा पाएगे।

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