राजस्थान सरकार का यू-टर्न: काले कानून का बिल वापिस लिया

राजस्थान सरकार का यू-टर्न: काले कानून का बिल वापिस लिया

राजस्थान सरकार ने आज का यू-टर्न लेते हुए अफसरों नेताओ को बचाने वाला काले कानून का बिल वापिस लिया। आखिर सरकार को इस मामले में मीडिया और भारी जनविरोध के चलते झुकना पड़ा। सोमवार को सीएम ने विधानसभा के बजट सत्र में लोकसेवकों यानि अफसर और नेताओ के खिलाफ केस दर्ज कराने से पहले सरकार से मंजूरी लेने संबंधी बिल को वापस ले लिया। विधानसभा के पिछले सत्र में 23 अक्टूबर को ये बिल विधानसभा में रखा गया था, लेकिन भारी विरोध के कारण 24 अक्टूबर को इसे प्रवर समिति को सौंप दिया गया था।

 
राजस्थान सरकार का यू-टर्न: काले कानून का बिल वापिस लिया

राजस्थान सरकार ने आज का यू-टर्न लेते हुए अफसरों नेताओ को बचाने वाला काले कानून का बिल वापिस लिया। आखिर सरकार को इस मामले में मीडिया और भारी जनविरोध के चलते झुकना पड़ा। सोमवार को सीएम ने विधानसभा के बजट सत्र में लोकसेवकों यानि अफसर और नेताओ के खिलाफ केस दर्ज कराने से पहले सरकार से मंजूरी लेने संबंधी बिल को वापस ले लिया। विधानसभा के पिछले सत्र में 23 अक्टूबर को ये बिल विधानसभा में रखा गया था, लेकिन भारी विरोध के कारण 24 अक्टूबर को इसे प्रवर समिति को सौंप दिया गया था।

बिल को वापस लेते हुए सीएम ने कहा कि वे इस बिल को वापस ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये राजस्थान दंड विधियां संशोधन विधेयक बना ही नहीं था, इसलिए इसे सरकार वापस लेती है। उल्लेखनीय है की इस बिल के विरोध में जनता, विपक्षी पार्टी कांग्रेस और यही नहीं बल्कि सत्ता पक्ष भारतीय जनता पार्टी के घनश्याम तिवाड़ी जैसे नेताओ ने राज्य सरकार के खिलाफ मुहीम छेड़ रखी थी। राजस्थान के मुख्य अख़बार राजस्थान पत्रिका समूह ने भी ‘जब तक काला, तब तक ताला’ नामक अभियान चलाया था।

उल्लेखनीय है कि गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने इस बिल के लिए 7 सदस्यीय प्रवर समिति का गठन किया था। इसमें 4 सदस्य सत्तापक्ष व 3 सदस्य विपक्ष से रखे गए थे। इस बिल को लेकर संसदीय कार्यमंत्री राजेंद्र राठौर ने बजट सेशन की शुरुआत में ही प्रवर समिती को इस बिल पर चर्चा के लिए वक्त बढ़ाने की मांग की थी। जिसका भाजपा के ही घनश्याम तिवाड़ी समेत विपक्ष के कई नेताओं ने विरोध किया था।

बिल के दायरे में अफसरों के साथ ही नेता भी हैं। सरकार ने इस बिल से पहले जारी किए अध्यादेश में लोकसेवक का दायरा बढ़ा दिया। इसके तहत किसी भी कानून के तहत लोकसेवक कहलाने वाले इसमें शामिल कर दिए। यानी कि पंच-सरपंच से लेकर विधायक तक पर सरकार की मंजूरी के बिना केस दर्ज नहीं हो पाएगा।

बिल में क्या थे प्रोविजंस

सरकार दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में संशोधन कर धारा 228 बी जोड़ने के लिए बिल ला रही थी। लोकसेवक के खिलाफ केस दर्ज कराने के लिए सरकार से अभियोजन मंजूरी लेनी होती जिसकी सीमा 180 दिन तय की गई थी। सरकार से मंजूरी के बिना पुलिस किसी लोकसेवक के खिलाफ मामला दर्ज नहीं कर सकती। कोर्ट भी इस्तगासे से जांच के आदेश नहीं दे सकती। अब तक सिर्फ गजटेड ऑफिसर को ही लोक सेवक माना गया था, लेकिन इस अध्यादेश में सरकार ने यह दायरा बढ़ा दिया था। सरकार से अभियोजन मंजूरी मिलने से पहले दागी लोकसेवक का नाम और पहचान उजागर करने पर दो साल तक की सजा का प्रावधान किया गया था ।

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