झील संरक्षण समिति, चांदपोल नागरिक मंच एवं गांधी मानव कल्याण सोसाइटी द्वारा रविवार को आयोजित पर्यावरण संवाद मे जोशीमठ आपदा पर गहन चिंतन हुआ तथा झील स्वच्छता श्रमदान का आयोजन किया गया।
संवाद मे विद्या भवन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य डॉ अनिल मेहता ने कहा कि जोशी मठ जैसे हादसों से उदयपुर सहित उन सभी पर्यटक स्थलों को सबक लेना होगा जो अपनी धारण क्षमता से अधिक दबाव झेल रहे हैं व जंहा प्राकृतिक स्वरूप से छेड़छाड़ अनवरत जारी है। मेहता ने कहा कि होटल, रिसोर्ट बनाने के लिए पहाडों को काटा जा रहा है, बहुमंजिला कॉम्प्लेक्स निर्माण मे चट्टानों को खोद बेसमेंट बन रहे हैं, झीलों, नदी नालों के किनारे व भीतर सीमेंट कांक्रीट निर्माण हो रहे है। भविष्य मे ये एक गंभीर आपदा लायेंगे।
झील विकास प्राधिकरण के पूर्व सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि सीवरेज से भूजल जहरीला होता जा रहा है। पेयजल की झीलों मे मोटर बोट, स्पीड बोट प्रदूषण फैला रहे हैं। पर्यटन सुविधाओं को बढ़ाने के फेर मे स्थानीय नागरिकों के लिए असुविधा व संकट को बढ़ाना स्वीकार नही है।
गांधी मानव कल्याण सोसाइटी के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने उदयपुर की बिगड़ती वायु गुणवत्ता पर चिंता व्यक्त की। शर्मा ने कहा कि पर्यटक वाहनो की बढ़ती संख्या, लंबे ट्रैफ़िक जाम अस्थमा सहित अन्य श्वसन रोगों की तीव्रता बढ़ाएंगे।
अभिनव संस्थान के निदेशक कुशल रावल ने कहा कि सहनीय क्षमता से अधिक दबाव संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को तहस नहस कर देगा। बेतरतीब निर्माण व पर्यटन जनित कचरे से अस्वस्थकारी स्थितियाँ पैदा हो रही है। झील प्रेमी द्रुपद सिंह ने कहा कि अधिक से अधिक धन कमाने के लालच मे सरकार, प्रशासन , व्यवसाय जगत व कतिपय नागरिक भी प्राकृतिक बसावट व संसाधनों पर कुठाराघात कर रहे है। यह आपदाओं को निमंत्रण देगा।
संवाद से पूर्व झील स्वच्छता श्रमदान कर कचरे, खरपतवार इत्यादि गंदगी को हटाया गया।
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