चिरंजीवी योजना, एक वरदान के साथ कुछ समस्याएं भी


चिरंजीवी योजना, एक वरदान के साथ कुछ समस्याएं भी

समस्याओं के बारे में विस्तार से जानकारी और डॉ शंकर बामनिया(उदयपुर CMHO) से बातचीत

 
Pros and Cons of Chiranjeevi Yojna rajasthan health insurance scheme udaipur complains on chiranjeevi scheme
धरातल पर क्या यह योजना लोगो को पूरी तरह फायदा पहुंचा पा रही है, या अब भी लोग इस की कुछ शर्तों से नाखुश है।

राजस्थान सरकार द्वारा चलाई जा रही चिरंजीवी योजना के तहत मिलने वाली सुविधाओं ने राज्य में चिकित्सा के क्षेत्र में एक क्रांति सी ला दी है। पहले बीमारियों के महंगे इलाज के चलते कई गरीब परिवार इलाज से वंचित रह जाते थे, लेकिन चिरंजीवी योजना जनता के लिए ख़ास कर गरीब परिवारों के लिए एक वरदान की तरह साबित हो रही है, क्योंकि इस योजना के तहत जनता को निःशुल्क इलाज उपलब्ध हो रहा रहा है।

लेकिन धरातल पर क्या यह योजना लोगो को पूरी तरह फायदा पहुंचा पा रही है, या अब भी कुछ लोग ऐसे है जो इस की कुछ शर्तों से नाखुश है। उदयपुर टाइम्स की टीम ने जब इस बारे में पता किया तो सामने आया की भले ही इस योजना के तहत लोगो को निशुल्क इलाज, दवाइयां और सभी सुविधाएँ मिल रही हैं, लेकिन इस योजना के अंतर्गत कुछ शर्ते ऐसी भी है, जो इलाज के लिए आने वाले लोगो को नाराज़ कर रही है और उन्हें न चाहते हुए भी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है।

बगैर किसी चिकित्सा के दिनों दिन तक भर्ती कर के रखना

मुख्य दुविधा दरअसल यह है कि इलाज के लिए हॉस्पिटल में आने वाले मरीजों को बगैर किसी चिकित्सा के दिनों दिन तक भर्ती कर के रखना। लोगो का कहना है इस योजना के तहत अगर कोई इलाज करवाने आए तो उन्हें उपचार वाले दिन के पहले हॉस्पिटल में बिना जरुरत के न रखा जाए। उनका कहना है की कोरोना के मामलों में फिर से उछाल आया है ऐसे में फिर बढ़ते संक्रमण के खतरे के बीच ज़ीरो इम्युनिटी मरीज़ को कोरोना का खतरा ज्यादा रहता है, ऐसे में उन्हें कई कई दिनों तक हॉस्पिटल में भर्ती रखा जाना ठीक नहीं है। चिरंजीवी योजना के तहत आए मरीज़ो को एक कॉमन वार्ड  में रखा जाता है, जहाँ दुसरे मरीज़ भी होते हैं और उनके परिजन भी होते हैं। ऐसे में मरीज़ों को दुसरे इन्फेक्शन का भी दर रहता है।

सिरोही से अपने पिता की पथरी का इलाज करवाने के लिए उदयपुर के एक निजी अस्पताल में आए महेंद्र सेन का कहना है की इलाज के लिए अपने पिता को वो यहाँ लाये थे, जहाँ जांचे की गई और फिर उनके पिता को 3 दिन के लिए हॉस्पिटल में भर्ती कर लिया गया। फिर तीन दिनों के बाद डिस्चार्ज कर दिया, वो इस योजना के तहत मिलने वाली सभी निशुल्क सुविधाओं से संतुष्ट तो है, लेकिन अगर मरीज को हॉस्पिटल में भर्ती रखने के समय को कम कर दिया जाए तो दुसरे संक्रमण में उनको खतरा कम हो जाएगा।

वहीं बड़ी सादड़ी चित्तोड़गड से उसी निजी हॉस्पिटल में अपने परिजन का ह्रदय रोग का इलाज करवाने उदयपुर आए सेवनिवृत शिक्षक अशोक कुमार का कहना है इस योजना में उन्हें कई कमियां दिखती है, जेसे की जब वो अपने परिजन को ले कर उदयपुर के इस निजी हॉस्पिटल में आए थे तो आते ही उन्हें जाँच करवाने को कहा गया, जिसका पूरा खर्चा उन्होंने खुद उठाया, जांचो में उनका कुल 6 हज़ार रूपए खर्च हुआ, जो की रिफंड होगा या नहीं इसका उनको अभी तक नहीं पता चल पा रहा है, यही नहीं इलाज के बाद जब दवाई लेने की बारी आई तो हॉस्पिटल में केवल एक ही दवा का केंद्र बने होने की वजह से भी काफी असुविधा का सामना करना पड़ा।

उनका भी मानना है की अगर इस योजना के तहत हॉस्पिटल में आने वाले मरीजों को वहां भर्ती न करके उनकी जाँच पूरी होने और उनके इलाज के दिन तक अपने घर जाने की अनुमति दे दी जाए तो इस से उन्हें बड़ी रहत मिलेगी।

गंभीर मरीज़ जैसे की कैंसर वगैरह जैसी बिमारियों से ग्रस्त मरीजो की स्थिति तो और भी बुरी है। पहले तो कैंसर जैसी बीमारी ने उन्हें ज़ीरो इम्युनिटी की स्थिति में पुहंचा दिया और जब थेरेपी के लिए 7-8 दिन तक न चाहते हुए भी हॉस्पिटल में रहना पड़े तो संक्रमण का खतरा और बढ़ जाता है। ऐसे कई लोग है जो प्रशासन से भी इस बारे में गुजारिश करना चाहते है की उनकी इस स्थिति के बारे में विचार किया जाए।

यही नहीं इस योजना के तहत मिलने वाली निशुल्क दवाइयों पर भी मरीज और उनके परिजन ऊँगली उठा रहे है। जब मरीज़ अस्पताल जाता है और चिरंजीवी के तहत उपचार करवाना चाहता है, तो उसे बता दिया जाता है की योजना के अंतर्गत दवा की क्वालिटी और आम दवाओं में फर्क है, इसीलिए सोच समझ के इस योजना के तहत भारती होवें।

इस बारे में जब मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ अधिकारी (सीएम्एचओ) डॉ शंकर बामणिया से बात की गई तो उन्होंने ने कहा की ऐसी बात पहले भी सामने आई है, जहाँ इस योजना के तहत ईलाज के लिए आने वाले लोगो को 5-7 दिनों तक भर्ती कर के रखा जाता है। इसके बारे में एक्सपर्ट से बात की जाएगी और यह जाना जायेगा की क्या वास्तव में उनका हॉस्पिटल में भर्ती रहना जरुरी है या नहीं? क्यों की इस कोरोना के मामले जब चल रहे हैं, और ऐसे में अनावश्यक संक्रमण के चांस बढ़ जाएंगे, अगर उनके ट्रीटमेंट के प्रोटोकोल में एसी कोई बाध्यता नहीं है तो ऐसे लोगो को हॉस्पिटल में रोकने के लिए मना करेंगे और जब भी उनका नंबर आए तभी उन्हें बुलाया जाए। डॉ बामणिया ने इस क्रम में आवश्यक कार्यवाही करने की बात कही।

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