geetanjali-udaipurtimes

"डाॅ. असगर अली इंजीनियर लाईफ टाईम अचीवमेंट अवार्ड" आनंद पटवर्धन को प्रदान किया गया

आनंद पटवर्धन एक प्रसिद्ध फ़िल्मकार है जो सार्थक सिनेमा के लिए जाने जाते है
 | 

उदयपुर 11 दिसंबर 2025: 10 दिसंबर 2025 बुधवार को ’’6th डाॅ. असगर अली इंजीनियर लाईफ टाईम अचीवमेंट अवार्ड’’ समारोह शहर के महाराणा कुंभा संगीत सभागार में सम्पन्न हुआ। इस वर्ष का प्रतिष्ठित अवार्ड ख्यातनाम फिल्मकार एवं प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता आनंद पटवर्धन को प्रदान किया गया।

सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ दाऊदी बोहरा कम्युनिटी के चेयरमेन कमांडर मंसूर अली बोहरा ने बताया कि सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ दाउदी बोहरा कम्युनिटी, बोहरा यूथ संस्थान, इंस्टीट्यूट ऑफ़ इस्लामिक स्टडीज और सेंटर फाॅर स्टडी ऑफ़ सोसायटी एण्ड सेक्युलरिज्म की ओर से प्रतिष्ठित "डाॅ. असगर अली इंजीनियर लाईफ टाईम अचीवमेंट अवार्ड" समाज सेवा, मानवाधिकार, सामाजिक एवं साम्प्रदायिक सौहार्द्र के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वालों को प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है। इससे पूर्व यह अवार्ड एडवोकेट एवं प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता इंदिरा जयसिंह, दक्षिण भारतीय मलयाली साहित्यकार के पी रमानुन्नी, रिटायर्ड जस्टिस होस्बेट सुरेश, उर्दू साहित्यकार अब्दुस सत्तार दलवी, एवं डाॅ. फलेविया एग्निस को दिया जा चुका है।

कौन है आनंद पटवर्धन

सेंटर फाॅर स्टडी ऑफ़ सोसायटी एण्ड सेक्युलरिज्म के निदेशक इरफ़ान इंजीनियर ने बताया कि 18 फ़रवरी 1950 को मुंबई में जन्मे आनंद पटवर्धन एक प्रसिद्ध फ़िल्मकार है जो सार्थक सिनेमा के लिए जाने जाते है। सार्थक सिनेमा के क्षेत्र में कदम रखते हुए 1971 में उनकी पहली फिल्म 'क्रांति की तरंगे' (Waves of Revolutions) रिलीज़ हुई थी। इसके बाद उन्होंने 'हमारा शहर'-(Bombay:Our city), राम के नाम (In the name of God), पिता, पुत्र और धर्मयुद्ध (Father, Son and Holy War), जय भीम कामरेड (Jai Bhim Comrade) और 2023 में बनाई फिल्म 'The World is family) जैसी सशक्त फिल्मो का निर्माण किया। उनकी फिल्मो में दबे कुचले वर्ग, महिलाओ और वंचित वर्ग के लिए आवाज़ उठाई। 

Anand Patwardhan

फ़िल्मकार आनद पटवर्धन को उनकी फिल्मो के कारण कई कोर्ट केसेज़ का सामना करना पड़ा और कई प्रकार की सख्तियां झेलनी पड़ी लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने मिशन में वह आगे बढ़ते रहे।

डॉ. असगर अली इंजीनियर मेमोरियल लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, 2024 लेते हुए आनंद पटवर्धन ने कहा "जब इरफ़ान भाई ने मुझे फ़ोन करके बताया कि मुझे असगर अली इंजीनियर मेमोरियल लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किया गया है, तो मुझे बहुत गर्व हुआ लेकिन मैं झिझका क्योंकि मैं भारत में ऐसे कई एक्टिविस्ट को जानता हूँ जो इस अवॉर्ड के मुझसे कहीं ज़्यादा हक़दार हैं। आख़िरकार जिस चीज़ ने मुझे इसे स्वीकार करने पर मजबूर किया, वह थी उस व्यक्ति के लिए मेरे मन में सम्मान जिसकी याद में यह अवॉर्ड दिया जाता है।

आनंद पटवर्धन ने कहा की डॉ. असगर अली न सिर्फ़ सांप्रदायिक सद्भाव के लिए भारत के जाने-माने योद्धाओं में से एक थे, एक इस्लामिक विद्वान और अपने समुदाय में एक क्रांतिकारी सुधारवादी थे, बल्कि मेरे और उनके आस-पास इकट्ठा हुए सभी युवा साथियों के लिए, वह एक समझदार और मिलनसार टीचर भी थे। उनमें एक सच्चे इंसान होने के साथ-साथ विनम्र दिखने की ज़बरदस्त काबिलियत थी। शायद सबसे बड़ी तारीफ़ यह थी कि उन पर हिंदू और मुस्लिम दोनों कट्टरपंथियों ने हमला किया था।

उन्होंने आगे बताया कि मैं उन लोगों के सामने ज़्यादा नहीं बोलूंगा जो मुझसे बेहतर जानते हैं कि डॉ. इंजीनियर कौन थे और अपनी ज़िंदगी में उन पर हुए जानलेवा हमलों के बावजूद उन्होंने क्या किया। उनका काम उनके बाद भी ज़िंदा है और आज भी यहां दिखता है।

anand patwardhan

आनंद पटवर्धन के बताया कि जिसका हम आज सामना कर रहे हैं। यह एक ऐसा भारत है जिसके बारे में शायद डॉ. असगर अली ने भी नहीं सोचा होगा कि ऐसा हो सकता है। उन्होंने 1992-93 की बाबरी के बाद हुई हिंसा का शानदार तरीके से जवाब दिया था। उनके नेतृत्व में हमने सांप्रदायिक सद्भाव बनाने के लिए एकता बनाई थी और हम उन शहरों और छोटे कस्बों से गुज़रे जो दंगों से बुरी तरह प्रभावित हुए थे। लेकिन 1992-93 का भारत आज के भारत से बहुत अलग है। उस समय सांप्रदायिक ताकतें अभी भी अपनी कहानी बना रही थीं और उनके तीखे संदेश हमेशा लोगों के कानों तक नहीं पहुंचते थे। उनकी अभी तक स्टेट पावर पर पूरी पकड़ नहीं थी। मेनस्ट्रीम मीडिया उनकी जेब में नहीं था। सोशल मीडिया और स्मार्ट फोन अभी तक नहीं आए थे और फेक न्यूज़ फैलाना आसान नहीं था। पैसे की ताकत किसी एक पार्टी की तरफ नहीं गई थी, कोर्ट ने मिलकर अपनी कमर नहीं खोई थी और चुनावों में कागजी कार्रवाई होती थी जिसे आसानी से इलेक्ट्रॉनिक तरीके से मैनेज नहीं किया जा सकता था। हाँ, 2002 में गुजरात में दंगा हुआ, टॉप लीडरशिप सज़ा से बच गई और 9/11 के बाद, इस्लामिक जिहाद का डर पश्चिमी दुनिया और बेशक भारत में भी फैल गया।

1990 में बाबरी विध्वंस कैंपेन ने पहले ही अलग-अलग समुदायों के बीच नफ़रत और हिंसा की कहानी तय कर दी थी। 2002 के गोधरा के बाद के “दंगे” और देश भर में हुए बम धमाकों और एनकाउंटर्स का नतीजा 26/11 के मुंबई हमले के रूप में सामने आया। 

उन्होंने कहा कि यह कतई मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि अल्पसंख्यक धार्मिक ग्रुप्स की तरफ से हिंसा और नफ़रत नहीं थी। असल में, ताली बजाने के लिए आमतौर पर दो हाथ लगते हैं और माइनॉरिटीज़ में बढ़ती इनसिक्योरिटी सच में एक ऐसा रिएक्शन भड़का सकती है जो अक्सर ठीक वैसा ही होता है जैसा असली गुनहगार चाहता है।

आनंद पटवर्धन के कहा कि हमारे सामने असली सवाल यह है, और मैं पहले यह साफ़ कर दूं कि "हम" से मेरा क्या मतलब है। मेरा मतलब हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख या बौद्ध से नहीं है। मैं उस जाति के ऊंच-नीच की बात भी नहीं कर रहा हूं जिसने हमें सदियों से बांटा है। हमसे मेरा मतलब उन सभी से है जिन्होंने अभी तक आज़ादी से सोचने की काबिलियत नहीं खोई है। हम जो खुद को सबसे पहले इंसान के तौर पर देखते हैं, ऐसे समय में जब जिस धरती पर हम रहते हैं, वह जंग और लालच की वजह से बड़े बदलावों से गुज़र रही है। हम परिवार हैं और हमें एक-दूसरे की रक्षा और देखभाल करनी है। मैं और कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि मैं कोई स्पीकर या राइटर नहीं हूं, बल्कि अपने समय का डॉक्यूमेंटर हूं, इसलिए मैं अपनी फिल्मों के ज़रिए बोलना पसंद करता हूं।

इससे पूर्व समारोह की शुरुआत तिलावत ए कुरआन से की गई उसके पश्चात् सेंटर फाॅर स्टडी ऑफ़ सोसायटी एण्ड सेक्युलरिज्म के निदेशक इरफ़ान इंजीनियर ने मरहूम डॉ असगर अली इंजीनियर को श्रद्धांजलि देते हुए बताया की डॉ असगर अली इंजीनियर की पहचान न सिर्फ सुधारवादी बोहरा समाज के नेता और अग्रणी के रूप में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में एक इस्लामिक स्कॉलर के रूप में जाने जाते थे। डॉ असगर अली इंजीनियर ने इस्लामिक स्कॉलर और धर्मनिरपेक्षता पर उल्लेखनीय कार्य करते हुए 78 किताबे लिखी है इसके अतिरिक्त उनके आर्टिकल नियमित रूप से टाइम्स ऑफ़ इंडिया जैसे प्रतिष्ठित अखबारों में छपते थे।

anand patwardhan

वहीँ कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि उदयपुर फिल्म सोसाइटी के संस्थापक प्रोफेसर हेमेंद्र चंडालिया ने डॉ असगर अली इंजिनियर को श्रद्धांजलि देते हुए उपस्थित समूह को आनंद पटवर्धन का जीवन परिचय दिया। प्रोफेसर हेमेंद्र चंडालिया ने आनंद  पटवर्धन का परिचय करवाते हुए घोषणा की, कि अगला UFF पटवर्धन की फिल्मों के बारे में होगा। इस  उन्होंने कहा कि हम अंधेरे युग में जी रहे हैं लेकिन रोशनी जलती रहनी चाहिए। ख्वाजा अहमद अब्बास फाउंडेशन के साथ अपने जुड़ाव का ज़िक्र करते हुए कहा कि ख्वाजा अहमद अब्बास और अनंत पटवर्धन के कामों में समानताएं है। सामाजिक जागरूकता की कई फिल्मों का ज़िक्र किया 

कार्यक्रम का सफल संचालन नासिर जावेद ने किया जबकि धन्यवाद की रस्म सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ दाऊदी बोहरा कम्युनिटी के चेयरमेन कमाण्डर मंसूर अली बोहरा ने अदा की। इस अवसर पर उनकी फिल्म पिता, पुत्र और धर्मयुद्ध (Father, Son and Holy War) की स्क्रीनिंग भी की गई। 

anand patwardhan

इस अवसर पर सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ दाऊदी बोहरा कम्युनिटी के संरक्षक आबिद अदीब, सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ दाऊदी बोहरा कम्युनिटी के चेयरमैन कमांडर मंसूर अली बोहरा, सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ दाऊदी बोहरा कम्युनिटी के कोषाध्यक्ष यूनुस बालू वाला, सेंटर फाॅर स्टडी ऑफ़ सोसायटी एण्ड सेक्युलरिज्म के निदेशक इरफ़ान इंजीनियर, दाऊदी बोहरा जमाअत के अध्यक्ष इक़बाल हुसैन रस्सा वाला, सचिव फ़िरोज़ हुसैन टीन वाला, बोहरा यूथ संस्थान के सचिव युसूफ आरजी के अलावा प्रोफेसर हेमेंद्र चंडालिया, समता संदेश के हिम्मत सेठ, पीयूसीएल, ऐपवा, उदयपुर फ़िल्म फेस्टिवल, तालीम ओ तरबीयत फाउंडेशन, जनवादी आंदोलन, जनतांत्रिक विचार मंच के पदाधिकारियों के साथ साथ सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता उपस्थित थे।

#AnandPatwardhan #AsgharAliEngineerAward #UdaipurNews #RajasthanNews #DocumentaryCinema #SocialActivism #CommunalHarmony #DawoodiBohraCommunity #UdaipurEvents #IndiaHumanRights