सियासत और ताकत की दौड़


सियासत और ताकत की दौड़

- उदयपुर निवासी शिफा दाहोद 

 
war

ये कविता (wars) के विषय मे लिखी गयी हैं।  केसे देश एक दूसरे से लड़ते है और ऐसी सियासी लड़ाइयों से मासूम लोगों की जान चली जाती है।  कितने ही परिवार बिखर जाते है, कितने ही सपने टूट जाते है। अपनी ही आँखों के सामने अपने प्यारे मार दिए जाते है। क्या ये ताकत हासिल करना और क्या ये बड़ा बनना इतना ज़रूरी है कि हम हमारे अंदर की इंसानियत को ही मार दे?

कविता

सियासत और ताकत की दौड़ में,

अपने जैसों से ही खुद को ऊंचा दिखाने की दौड़ में,

क्यूँ मासूमियत को मारते हो तुम

वो माँ जिसका कोई सपना था,

जिसकी गोद में खेलता कोई अपना था क्यूँ उस मासूम की लोरियों को मारते हो तुम,

वो भाई जिसकी एक बहन बाकी थी,

सब चल बसे बस साँस लेती एक राखी थी,

क्यूँ उन दोनों के आखिरी सहारे को मारते हो तुम

एक बच्चा जिसने अभी घोड़ी घिसना जाना,

जिसके बाबा को था उसे चलना सिखाना,

क्यूँ पैरों पर उठने से पहले ही, उसके बाप को मारते हो तुम

जिसका चल रहीं थीं शादी की तैयारी,

जिसकी जवानी पर थी उसकी माँ वारि,

क्यूँ उस सेहरे को बंधने से पहले ही मारते हो तुम

नानी की कहानिया, दादी का प्यार,

नाना की हसी, दादा का दुलार,

क्यूँ इन छोटी छोटी खुशियो को मारते हो तुम। 

ये दुनिया जो फानी है,

अंत में मरना सबकी कहानी है,

 यह मोह जो मिट् जाएगा,

ये माया जो जल जाएगी,

जिस्म के मिटने से पहले,

क्यूँ अपने अंदर की इंसानियत को मारते हो तुम। 

To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on   GoogleNews |  Telegram |  Signal