उदयपुर 20 दिसंबर 2024। शिल्पग्राम महोत्सव में शनिवार को मुक्ताकाशी मंच पर कश्मीर का रौफ और गुजरात का तलवार रास लोक नृत्य अपनी खास पहचान ही नहीं रखते, बल्कि दर्शकों के दिलो दिमाग पर अपनी अलग ही छाप छोड़ते हैं।
तलवार रास
इस लोक नृत्य में चाहे ‘रास’ यानी ‘रस’ जुड़ा हो, लेकिन इसके मायने ‘वीर रस’ से है। यह डांस अंग्रेजों के खिलाफ दिए गए क्रांतिकारियों के बलिदान की याद दिलाता है। बताते हैं पोरबंदर के पास बाडो पर्वत की तलहटी के वीर मानेक ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजाया था। उन्होंने अपनी छाेटी सी वीरों की टुकड़ी से अंग्रेजों से युद्ध किया और विजय प्राप्त की। इस युद्ध में उन्होंने तलवार और ढाल का इतने कौशल से प्रयोग किया कि अंग्रेजों को घुटने टेकने पड़े। यह युद्ध साल 1591 में भूचर मोरी में हुआ था।
इस युद्ध में शहीद हुए राजपूत वीरों का कौशल प्रदर्शित करने के लिए तलवार-ढाल लेकर लोक नृत्य किया जाता है। यह तलवार रास नृत्य कहलाता है। इसमें 10 डांसर युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते हैं। इन डांसर्स की वेशभूषा में केडिया (लहंगा), मेहर पगड़ी, खेस (कंधे पर दुपट्टा) और हाथ में तलवार और ढाल होते हैं।
रौफ यानी बुमरो-बुमरो श्याम रंग बुमरो
बॉलीवुड का हिट गाना बुमरो-बुमरो श्याम रंग बुमरो, हर कला प्रेमी देख-सुन चुका है। रौफ डांस को यह लोक गीत खूब लोकप्रिय बना रहा है। टीम लीडर गुलजार अहमद बट बताते हैं, ‘कश्मीर का यह फोक डांस खुशी के मौकों पर पेश करने की परंपरा है यानी दिवाली, बैसाखी, ईद सहित तमाम खुशी के मौकों पर यह डांस पेश किया जाता है।’ इसमें बुमरो का अर्थ है भंवरा है, यह श्याम रंग के भंवरे पर यह गीत है।
गुलजार ने बताया कि यह डांस सिर्फ युवतियां करती हैं। वेशभूषा में कश्मीरी फहरन, ज्वेलरी, सलवार आदि पहनती हैं। इसमें खास वाद्ययंत्रों- रबाब, सारंगी, तुमबकनारी, नूट (मटना), हारमोनियम और संतूर का प्रयोग होता है।
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