जीएम खाद्य पदार्थों के विनियमित करने वाले मसौदे का विरोध, जानें राकेश टिकैत ने क्या कहा

जीएम खाद्य पदार्थों के विनियमित करने वाले मसौदे का विरोध, जानें राकेश टिकैत ने क्या कहा

 
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नई दिल्ली।  देश में जीएम खाद्य पदार्थों पर एक बार फिर चर्चा शुरु हो गई है। जीएम खाद्य पदार्थों को विनियमित करने वाले सरकार के एक मसौदे पर नागरिक संगठनों के विरोध स्वर तेज हो गए हैं। संयुक्त नागरिक संगठनों का कहना है कि भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं नियामक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) का यह मसौदा न सिर्फ लोगों की सेहत को जोखिम में डालेगा बल्कि यह व्यावसायिक हितों को साधने वाला है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं नियामक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) की ओर से 15 नवंबर, 2021 को जीएम खाद्य पदार्थों के विनियमन का मसौदा जारी किया था। इस पर 15 जनवरी, 2022 तक आम लोगों की टिप्पणी और सुझाव मांगा गया है। इस पर सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई है। सोशल मीडिया साइट कू पर एक यूजर के पोस्ट पर रिप्लाइ करते हुए किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि कुछ सर्वेक्षणों के साथ-साथ बीटी बैंगन और एचटी सरसों की सार्वजनिक बहस से यह बहुत स्पष्ट है कि भारत में जीएम खाद्य फसलों की अस्वीकृति है। एफएसएसएआई जैसा खाद्य सुरक्षा नियामक असुरक्षित खाद्य पदार्थों को हमारी खाद्य श्रृंखला में क्यों लाना चाहता है?

फसल के नुकसान का खतरा भी 
कृषि विशेषज्ञों की माने तो बीटी कॉटन और बीटी बैंगन जैसे फसलों के बीजों को जेनेटिक इंजीनियरिंग के जरिए तैयार किया गया था। इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक थी और कीड़े लगने का खतरा नहीं था। बंपर फसल हुई और किसानों की चांदी हो गई, लेकिन कुछ ही हफ्तों में देखा गया कि बीटी कॉटन की फसलों के पत्ते खाकर करीब 1600 भेड़ें मर गईं और कई दूसरे जानवर दृष्टिहीन हो गए।

जानें- क्या है जीएम फूड
जेनेटिक इंजीनियरिंग या जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) फूड को यदि आसान भाषा में समझा जाए तो इसका मतलब है कि किसी पेड़-पौधे या जीव के आनुवांशिक या प्राकृतिक गुण को बदलना। इसके तहत डीएनए या जीनोम कोड को बदला जाता है। बायोटेक्नोलॉजी के अंतर्गत जेनेटिक इंजीनियरिंग एक महत्वपूर्ण शाखा मानी जाती है। जेनेटिक इंजीनियरिंग या जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) फूड का मुख्य मकसद आनुवांशिक गुणों को बदलकर ऐसे गुण लाना है जिससे मानव सभ्यता को फायदा हो।

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